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गीता अध्याय-2 श्लोक-15 / Gita Chapter-2 Verse-15
प्रसंग-
इस श्लोक में भगवान् नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन की रीति बतलाने के लिये दोनों के लक्षण बतलाते हैं-
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।15।।
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क्योंकि हे पुरुष श्रेष्ठ ! दु:ख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रियाँ और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है ।।15।।
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Arjuna, the wise man to whom pain and pleasure are alike, and who is not tormented by these contacts, becomes eligible for immortality.(15).
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हि = क्योंकि ; पुरुषश्रेष्ठ ; समदु:खसुखम् = दु:खसुखको समान समझनेवाले ; यम् = जिस ; धीरम् = धीर ; पुरुषम् = पुरुषको ; एते = यह (इन्द्रियों के विषय) ; न व्यथयन्ति = व्याकुल नहीं कर सकते ; स: = वह ; अमृतत्वाय: = मोक्षके लिये ; कल्पते = योग्य होता है ;
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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