गीता 18:76  

गीता अध्याय-18 श्लोक-76 / Gita Chapter-18 Verse-76

प्रसंग-


इस प्रकार अतिदुर्लभ गीताशास्त्र के सुनने के महत्त्व को प्रकट करके अब संजय[१] अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए उस उपदेश की स्मृति का महत्त्व प्रकट करते हैं-


राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् ।
केशवार्जुनयो: पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहु: ।।76।।



हे राजन् ! भगवान् श्रीकृष्ण[२] और अर्जुन[३] के इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अद्भुत संवाद को पुन:-पुन: स्मरण करके मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ ।।76।।

Remembering, over and over, that sacred and mystic conversation between Bhagavan Sri Krishna and Arjuna, O King! I rejoice again and yet again.(76)


राजन् = हे राजन्; केशवार्जुनयो: = श्रीकृष्ण भगवान् और अर्जुन के; इमम् = इस रहयुक्त; पुण्यम् = कल्याण कारक; अद्भुतम् = अद्भुत; संवादम् = संवाद को; संस्मृत्य = पुन: पुन: स्मरण करके मैं; मुहुर्मुह: = बारम्बार; हृष्यामि = हर्षित होता हूं



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संजय धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
  3. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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