गीता 18:14  

गीता अध्याय-18 श्लोक-14 / Gita Chapter-18 Verse-14

प्रसंग-


अब उन पाँच हेतुओं के नाम बतलाये जाते हैं-


अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् ।।14।।



इस विषय में अर्थात् कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण एवं नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाएँ और वैसे ही पाँचवाँ हेतु दैव कहा गया है ।।14।।

The following are the factors operating towards the accomplishment of action-xhrs, viz., the seat of action-xhr and the agent, the organs of different kinds and the separate movements of divergent types; and the fifth is Daiva or destiny. (14)


अत्र = इस विषय में ; अधिष्ठानम् = आधार ; च = और ; कर्ता = कर्ता ; विविधा: = नाना प्रकार की ; पृथक् = न्यारी न्यारी ; चेष्टा: = चेष्टा (एवं) ; तथा = वैसे ; च = तथा ; पृथग्विधम् = न्यारे न्यारे ; करणम् = करण ; च = और ; एव = ही ; पच्चमम् = पांचवां हेतु ; दैवम् = दैव (कहा गया है) ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

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अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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