गीता 3:26  

गीता अध्याय-3 श्लोक-26 / Gita Chapter-3 Verse-26

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसंगिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन् ॥26॥



परमात्मा स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिये कि वह शास्त्र विहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात् कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किंतु स्वयं शास्त्र विहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवावे ॥26॥

A wise man established in the Self, should not unsettle the mind of the ignorant attached to action-xhr, but should get them to perspan all their duties, duly perspan ing his own duties.


विद्वान् = ज्ञानी पुरुष (को चाहिये कि) ; कर्मसग्डिनाम् = कर्मोंमें आसक्तिवाले ; अज्ञानाम् = अज्ञानियोंकी ; बुद्धिभेदम् = बुद्धिमें भ्रम अर्थात् कर्मोंमें अश्रद्धा ; न जनयेत् = उत्पन्न न करे (किन्तु स्वयं); युक्त: = परमात्माके स्वरूपमें स्थित हुआ (और) ; सर्वकर्माणि = सब कर्मोको ; समाचरन् = अच्छी प्रकार करता हुआ (उनसे भी वैसे ही) ; जोषयेत् = करावे ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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