रम्यकवर्ष
रम्यकवर्ष पौराणिक भूगोल के वर्णन के अनुसार जंबूद्वीप का एक भाग था, जिसके उपास्य देव वैवस्वत मनु थे। 'विष्णुपुराण'[१] में इसे जंबूद्वीप का उत्तरी वर्ष कहा गया है-
'रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्येवानु हिरण्यमयम्, उत्तरा: कुरवश्चेव यथा वै भारतं तथा।'
- महाभारत, सभापर्व[२] से जान पड़ता है कि अर्जुन ने उत्तर दिशा की दिग्विजय यात्रा के समय यहां प्रवेश किया था-
'तथा जिष्णु रतिक्रम्य पर्वतं नीलमायतम्, विवेशरम्यकं वर्ष संकीर्णं मिथुनै शुभैः।'
- यह देश सुंदर नर-नारियों से आकीर्ण था। इसे जीतकर अर्जुन ने यहां से कर ग्रहण किया था-
'तं देशमथजित्वा च करे च विनिवेश्य च।'
- उपर्युक्त उद्धरणों से रम्यकवर्ष की स्थिति उत्तर कुरु या एशिया के उत्तरी भाग साइबेरिया के निकट प्रमाणित होती है। इसके उत्तर में संभवतः हिरण्मय वर्ष था।[३]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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