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अहम्  = मैं; सम्त्राम् = गायन करने योग्य श्रुतियोंमें; छन्दसाम् = छन्दों में; गायत्री छन्द(तथा); मासानाम् = महीनोंमें; मार्गशीर्ष: = मार्गशीर्षका महीना(और); ऋतूनाम् = ऋतुओंमें;  कुसुमाकर: = वसन्त ऋतु  
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अहम्  = मैं; सम्त्राम् = गायन करने योग्य श्रुतियों में; छन्दसाम् = छन्दों में; गायत्री छन्द(तथा); मासानाम् = महीनों में; मार्गशीर्ष: = मार्गशीर्ष का महीना (और); ऋतूनाम् = ऋतुओं में;  कुसुमाकर: = वसन्त ऋतु  
 
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०८:२१, २१ मई २०११ का अवतरण

गीता अध्याय-10 श्लोक-35 / Gita Chapter-10 Verse-35


बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ।।35।



गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ ।।35।।

Likewise among the srutis that can be sung, I am the variety known as Brhatsama; while among the vedic hymns, I am the hymn known as gayatri. Again, among the twelve months of the hindu calendar; I am the month known as ‘Margasirsa’ (corresponding approximately to november); and among the six seasons (successively appearing in India in course of a year ) I am the vernal season. (35)


अहम् = मैं; सम्त्राम् = गायन करने योग्य श्रुतियों में; छन्दसाम् = छन्दों में; गायत्री छन्द(तथा); मासानाम् = महीनों में; मार्गशीर्ष: = मार्गशीर्ष का महीना (और); ऋतूनाम् = ऋतुओं में; कुसुमाकर: = वसन्त ऋतु



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)
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