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ये मिरा दिल भी तो बैचैने हाल रहता है
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नहीं कोई ज़ोर ज़माने का मेरी हस्ती पर
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इसी ग़ुरूर में बंदा मिसाल रहता है
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हमारे इश्क़ को हासिल है किस्मतों के करम
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गली के मोड़ पर हुस्न-ए-जमाल रहता है
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यूँ ही मर जाएंगे, इक दिन जो मौत आएगी
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इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है
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१२:३३, २७ अगस्त २०१४ का अवतरण

आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
पोस्ट संबंधित चित्र दिनांक

कोई आएगा, ये मुझको ख़याल रहता है
कोई आए ही क्यों, क़ायम सवाल रहता है

किसी उदास से रस्ते से उसकी आमद को
ये मिरा दिल भी तो बैचैने हाल रहता है

नहीं कोई ज़ोर ज़माने का मेरी हस्ती पर
इसी ग़ुरूर में बंदा मिसाल रहता है

हमारे इश्क़ को हासिल है किस्मतों के करम
गली के मोड़ पर हुस्न-ए-जमाल रहता है

यूँ ही मर जाएंगे, इक दिन जो मौत आएगी
इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है

24 अगस्त, 2014

लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
बहुत सी बातें हैं जिन्हें कभी नहीं कहा जाता... लेकिन क्यों ?
# सुनने वाला इस योग्य नहीं होता
# कहने वाला अपनी बात को कहने योग्य नहीं मानता

दोनों ही स्थितियों में परिणाम 'मौन' होता है।
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...

24 अगस्त, 2014

हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
विवेक एक ऐसा ओ.एस. है जिससे कंप्यूटर (बुद्धि) कभी हॅन्ग नहीं होता और वायरस (क्रोध) का ख़तरा तो बिल्कुल भी नहीं है क्यों कि इसमें बिल्टइन एन्टीवायरस (करुणा) होता है।
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।

6 अगस्त, 2014

शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना
बादल की तरह उड़ना है तो पहले बन पानी का झरना

जो सबने किया वो तू कर दे, दुनिया में इसका मोल नहीं
हैं सात समंदर धरती पर, तू पार आठवां भी करना

हर चीज़ यहाँ पर बिकती है, इक प्यार का ही कोई मोल नहीं
तू छोड़ के इन बाज़ारों को, दिल का सौदा दिल से करना

सदियों से दफ़न मुर्दे हैं ये, क्या नया गीत सुन पाएँगे ?
अब खोल दे सब दरवाज़ों को और नई हवा से क्या डरना

हाथों की चंद लकीरों से, इन किस्मत की ज़जीरों से
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना

6 अगस्त, 2014

प्रिय मित्रो !
मथुरा में हमारे घर के सामने सरकारी अस्पताल है और सरकारी डॉक्टरों के रहने के लिए दो बंगले बने हैं। क़रीब बीस साल पहले यहाँ डॉक्टर वी॰ ऍस॰ अग्निहोत्री (Vishnu Sharan Agnihotri) रहते थे। वे बाल रोग विशेषज्ञ हैं। पिताजी उस समय जीवित थे। पिताजी का स्वास्थ्य ख़राब होने पर डॉक्टर साहिब अपनी तरफ़ से ही उन्हें रोज़ाना देखने आया करते थे। पिताजी को ही नहीं बल्कि हमारे पूरे परिवार के स्वास्थ्य को भी डॉक्टर अग्निहोत्री ही ठीक रखते थे।
इसके बदले में हमसे कभी किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा उन्होंने नहीं की।
हमारे घर के पास एक ग़रीब बस्ती भी है। बस्ती के लोग आज भी डॉक्टर साहिब को याद करते हैं जिसका कारण है मुफ़्त इलाज, मुफ़्त दवाइयाँ और मधुर व्यवहार।
आजकल डॉक्टर साहिब इटावा में हैं, मथुरा में घर बनवा लिया है। रिटायर होकर मथुरा ही आने वाले हैं। पूरे ब्रजवासी हो चुके हैं।
आज उन्होने भारतकोश के लिए 7000/- रुपये का चैक भेजकर मुझे सुखद आश्चर्य में डाल दिया। एक ईमानदार और सहृदय, सरकारी डॉक्टर के ये सात हज़ार रुपये भारतकोश के लिए कितना महत्व रखते हैं, इसे मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ।
चैक के साथ एक पत्र भी है जिसमें विनम्रता का जो वाक्य उन्होंने लिखा है उसे पढ़कर मेरी आँखें भीग गईं, उन्होंने लिखा है- "व्यय को देखते हुए यह धनराशि अत्यन्त अल्प है। रामसेतु निर्माण में गिलहरी का योगदान समझकर स्वीकार करियेगा..." साथ ही यह भी लिखा कि मैं यह किसी को बताऊँ भी नहीं कि उन्होंने योगदान दिया है। भारतकोश की तरफ़ से उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।
मेरा सभी मित्रों से विनम्र आग्रह है कि डॉक्टर साहिब को एक धन्यवाद संदेश, यहाँ अथवा उनकी वॉल पर अवश्य दें।
आपका
आदित्य चौधरी

4 अगस्त, 2014

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