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साँचा:आदित्य चौधरी की कविताएँ
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आदित्य चौधरी की कविताएँ
क्यों विलग होता गया
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जो भी मैंने तुम्हें बताया
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हमें तो याद नहीं
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हरदम याद आती है
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क्यूँ करे
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यह स्तुति अब तुम बंद करो
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ये जो मिरी आंखों में
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सब ख़ुद को तलाश करते हैं
•
कि तुम कुछ इस तरह आना
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आसमान को काला कर दे
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फ़र्क़ क्या होगा
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फूल जितने भी
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इमरान का बस्ता
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मैं किसान हूँ भारत का
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क्या यही है मेरी शिकस्त ?
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मैं समय हूँ, काल हूँ मैं
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निशाचर निरा मैं
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तू जुलम करै अपनौ है कैं
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ये तो तय नहीं था कि
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मत करना कोशिश भी
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मैं हूँ स्तब्ध सी
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दिलों के टूट जाने की
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यहाँ बेकार में
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एक ज़माना था
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अपने आप पर
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मिट्टी में मिलाया जाए
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क़ायम सवाल रहता है
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दिल का सौदा दिल से करना
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इक सपना बना लेते
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क्या यही तुम्हारा विशेष है?
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हँस के रो गए
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कुछ नहीं कहा
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ये मुश्किल बात होती है
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दिल को ही सुनाने दो
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1857
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हर शाख़ पे बैठे उल्लू से
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ये वक़्त कह रहा है
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लहू बहता है
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जीवन का अहसास
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एक बात तो कॉमन है
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आँखों का पानी
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सब चलता है
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जैसे संसार हमारा है
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एक बार तो पूछा होता
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तख़्त बनते हैं
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बहुत फ़ज़ीता है
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फ़साने भर को
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फ़ासले मिटाके
•
वक़्त बहुत कम है
•
अपना भी कोई ख़ाब हो
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तुमको बताने का क्या फ़ायदा
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मर गए होते
•
इससे तो अच्छा है
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मेरा है वास्ता
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जश्न मनाया जाय
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कैसे कह दूँ कि मैं भी इंसा हूँ
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ये सूरज रोज़ ढलते हैं
•
नहीं बीतता प्यार
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यूँ तो कुछ भी नया नहीं
•
कोई साहिलों से पूछे
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भारत को स्वयं बनाओ
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जागोगे नहीं तो
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ऐसे ही उमर गई
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भार्या पुरुषोत्तम
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और जाने क्या हुआ उस दिन
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रात नहीं कटती थी रात में
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प्यार की दरकार
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ये दास्तान कुछ ऐसी है
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वो सुबह कभी तो आएगी
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छूट भागे रास्ते
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अब मुस्कुरा दे
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ये मुमकिन नहीं
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जीवन संगिनी
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उल्लू की पंचायत
•
पत्थर का आसमान
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इस शहर में
श्रेणी
:
आदित्य चौधरी की रचनाएँ
छुपाई हुई श्रेणी:
सम्पादकीय (अद्यतन)