नीलदर्पण  

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नीलदर्पण (अंग्रेज़ी: Nildarpan) बांग्ला भाषा में लिखा गया प्रसिद्ध नाटक है, जिसके रचनाकार दीनबंधु मित्र थे। इसकी रचना 1858-1859 में हुई। यह बंगाल में नील विद्रोह का अन्दोलन का कारण बना। यह बंगाली रंगमंच के विकास का अग्रदूत भी बना। कोलकाता के 'नेशनल थिएटर' में 1872 में यह नाटक खेला गया, जो कि पहला व्यावसायिक नाटक था।

  • नाटक नीलदर्पण में बंगाल में नील की खेती करने वालों का अंग्रेज़ों द्वारा शोषण, भारतीय किसानों के ऊपर अमानुषिक अत्याचारों की बड़ी भावपूर्ण अभिव्यक्ति हुई है।
  • नाटक की बंगाली समाज और अंग्रेज़ शासक दोनों में अपने-अपने ढंग से तीव्र प्रतिक्रिया हुई। यही नहीं, इस नाटक को पढ़कर उस जमाने की चर्च मिशनरी सोसाइटी के पादरी रेवरेंड जेम्स लौंग बहुत द्रवित हुए थे और उन्होंने नीलकरों द्वारा शोषण के प्रतिवादस्वरूप नाटक का अनुवाद अंग्रेज़ी में प्रकाशित किया तो उन पर अंग्रेज़ सरकार द्वारा मुकदमा चलाया गया और उन्हें एक महीने की जेल की सजा मिली।
  • बांग्ला के पहले सार्वजनिक टिकट बिक्री से चलने वाले मंच पर यह नाटक जब 1872 में खेला गया तो एक ओर दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी और दूसरी ओर अंग्रेज़ी अखबारों में इस पर बड़ी तीखी टिप्पणी हुई।
  • 1876 में अंग्रेज़ सरकार द्वारा ड्रैमेटिक परफार्मेन्सेज कन्ट्रोल ऐक्ट लाना नील दर्पण जैसे नाटकों की विद्रोही भावना का दमन भी एक उद्देश्य था।
  • इस नाटक का ऐतिहसिक महत्त्व तो है ही, इसके अलावा तत्कालीन अंग्रेज़ी शासन में न्याय के पाखंड और पक्षपातपूर्ण व्यवहार पर भी प्रकाश पड़ता है।
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