आपदा  

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आपदा का मतलब है, किसी भी इलाके में प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटना या उपेक्षा की वजह से आई ऐसी कोई महाविपत्ति, अनिष्ट, तबाही आदि जिससे माननव जीवन की भारी हानि या संपत्ति को भारी नुकसान और विनाश या पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचे और यह इतने बड़े पैमाने पर हो कि जिससे स्थानीय समुदाय के लिए निपटना संभव न हो।

प्राकृतिक और मानव जनित आपदा

भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात, सुनामी, शहरी इलाकों में बाढ़, लू आदि को 'प्राकृतिक आपदा' माना जाता है जबकि न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल आपदाओं को 'मानव जनित आपदा' माना जाता है।

'राष्ट्रीय आपदा' क्या है?

भारत में एक प्राकृतिक आपदा को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने के लिये कोई प्रावधान या कानून उपलब्ध नहीं है। राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (एसडीआरएफ)/राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि (एनडीआरएफ) के मौजूदा दिशा-निर्देश भी किसी आपदा को 'राष्ट्रीय आपदा' के रूप में घोषित करने पर विचार नहीं करते हैं।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2001 में एमओएस (कृषि) श्रीपाद नायक ने संसद को बताया था कि सरकार ने वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप और ओडिशा में वर्ष 1999 के भीषण चक्रवात को "अभूतपूर्व गंभीरता की आपदा" के रूप में माना था।
  • वर्ष 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय समिति के लिये राष्ट्रीय आपदा को परिभाषित करने वाले मानकों को देखना अनिवार्य किया गया था। हालाँकि, समिति ने कोई निश्चित मानदंड का सुझाव नहीं दिया था।
  • राज्यों की प्राकृतिक आपदाओं यथा- 2014 में उत्तराखंड में आई बाढ़, 2014 में आंध्र प्रदेश में चक्रवात हुदहुद और 2015 में असम में आई बाढ़ को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने की मांग की गई थी।

सरकार द्वारा वर्गीकरण

10वें वित्त आयोग (1995-2000) ने एक प्रस्ताव की जाँच के आधार पर पाया गया कि एक आपदा की "दुर्लभ गंभीरता को राष्ट्रीय आपदा" तब कहा जाता है, जब यह राज्य की एक-तिहाई आबादी को प्रभावित करती है। पैनल ने "दुर्लभ गंभीरता की आपदा" को परिभाषित नहीं किया था, किंतु यह कहा कि दुर्लभ गंभीरता की आपदा को केस-टू-केस आधार पर अन्य बातों के साथ-साथ आपदा की तीव्रता और परिमाण को भी ध्यान में रखना होगा। इसमें समस्या से निपटने के लिये राज्य की क्षमता, सहायता और राहत प्रदान करने की योजनाओं के भीतर विकल्प और लचीलेपन की उपलब्धता शामिल है। गौरतलब है कि उत्तराखंड और चक्रवात हुदहुद फ्लैश बाढ़ को बाद में "गंभीर प्रकृति" की आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया।

आपदा घोषणा के लाभ

  • जब एक आपदा "दुर्लभ गंभीरता"/"गंभीर प्रकृति" के रूप में घोषित की जाती है, तो राज्य सरकार को समर्थन राष्ट्रीय स्तर पर प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त केंद्र एनडीआरएफ की सहायता भी प्रदान कर सकता है।
  • आपदा राहत निधि (सीआरएफ) को स्थापित किया जा सकता है, यह कोष केंद्र और राज्य के बीच 3:1 के साझा योगदान पर आधारित होता है।
  • इसके अलावा सीआरएफ में संसाधन अपर्याप्त होने की अवस्था में राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि (एनसीसीएफ) से अतिरिक्त सहायता पर भी विचार किया जाता है, जो केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषित होती है।

फंडिंग का निर्णय

आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति-2009 के अनुसार, कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति का संबंध गंभीर और राष्ट्रीय स्तर पर विध्वंसक प्रमुख संकटों से है। गंभीर प्रकृति की आपदाओं के लिये प्रभावित राज्यों के नुकसान और राहत सहायता के आकलन के लिये अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीमों को नियुक्त किया जाता है। केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी समूह मूल्यांकन का अध्ययन करता है और एनडीआरएफ/राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि (एनसीसीएफ) से सहायता की मात्रा के लिये भी सिफारिश करता है। इसके आधार पर एक उच्च स्तरीय समिति जिसमें वित्त मंत्री और अध्यक्ष, गृह मंत्री, कृषि मंत्री तथा योजना आयोग के उपाध्यक्ष शामिल हैं, जो केंद्रीय सहायता को मंज़ूरी देते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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