परन्तु हे परंतप अर्जुन[१] ! अनन्य भक्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये, तत्त्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ ।।54।।
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Through single-minded devotion, however, I can be seen in this span (with four arms); nay, known in essence and even enetered into, O valiant Arjuna. (54)
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