किहि बिधि अणसरूं रे -रैदास  

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
किहि बिधि अणसरूं रे -रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

किहि बिधि अणसरूं रे, अति दुलभ दीनदयाल।
मैं महाबिषई अधिक आतुर, कांमना की झाल।। टेक।।
कह द्यंभ बाहरि कीयैं, हरि कनक कसौटी हार।
बाहरि भीतरि साखि तू, मैं कीयौ सुसा अंधियार।।1।।
कहा भयौ बहु पाखंड कीयैं, हरि हिरदै सुपिनैं न जांन।
ज्यू दारा बिभचारनीं, मुख पतिब्रता जीय आंन।।2।।
मैं हिरदै हारि बैठो हरी, मो पैं सर्यौं न एको काज।
भाव भगति रैदास दे, प्रतिपाल करौ मोहि आज।।3।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=किहि_बिधि_अणसरूं_रे_-रैदास&oldid=221038" से लिया गया