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*पंचमी तिथि का स्वामी सर्प या नाग होता है। यह 'पूर्णा संज्ञक तिथि' है। | *पंचमी तिथि का स्वामी सर्प या नाग होता है। यह 'पूर्णा संज्ञक तिथि' है। | ||
*इसकी विशेष संज्ञा ‘श्रीमती’ है। | *इसकी विशेष संज्ञा ‘श्रीमती’ है। | ||
*[[पौष]] मास के दोनों पक्षों में यह तिथि शून्य फल देती है। | *[[पौष]] मास के दोनों पक्षों में यह तिथि शून्य फल देती है। | ||
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*पंचमी तिथि की दिशा दक्षिण है। | *पंचमी तिथि की दिशा दक्षिण है। | ||
− | *शुक्ल पंचमी में शिववास कैलास पर तथा कृष्ण पंचमी में वृषभ पर होने से क्रमशः सुख तथा श्री-प्राप्तिकारक होता है। अतः इसमें शिवार्चन के समस्त उपचार शुभ होते हैं। | + | *[[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] पंचमी में शिववास कैलास पर तथा [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] पंचमी में वृषभ पर होने से क्रमशः सुख तथा श्री-प्राप्तिकारक होता है। अतः इसमें शिवार्चन के समस्त उपचार शुभ होते हैं। |
*चन्द्रमा की इस पाँचवीं कला का पान वषटरकार करते हैं। | *चन्द्रमा की इस पाँचवीं कला का पान वषटरकार करते हैं। | ||
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१४:००, २ जनवरी २०१६ के समय का अवतरण
एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पंचमी (बहुविकल्पी) |
पंचमी हिन्दू पंचाग की एक तिथि है। इस तिथि का हिन्दुओं में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व माना जाता है। पंचमी तिथि पर किये गए कार्य शुभफल प्रदान करने वाले माने जाते हैं।
- पंचमी में सूर्य और चन्द्र का अन्तर 49° से 60° तक होने पर शुक्ल पक्ष की पंचमी और 229° से 240° तक अन्तर होने पर कृष्ण पक्ष की पंचमी होती है।
- पंचमी तिथि का स्वामी सर्प या नाग होता है। यह 'पूर्णा संज्ञक तिथि' है।
- इसकी विशेष संज्ञा ‘श्रीमती’ है।
- पौष मास के दोनों पक्षों में यह तिथि शून्य फल देती है।
- शनिवार के दिन पंचमी पड़ने पर मृत्युदा होती है जिससे इसकी शुभता में कमी आ जाती है। गुरुवार के दिन यही पंचमी सिद्धिदा होकर विशेष शुभ फल देने वाली हो जाती है।
- पंचमी तिथि की दिशा दक्षिण है।
- शुक्ल पंचमी में शिववास कैलास पर तथा कृष्ण पंचमी में वृषभ पर होने से क्रमशः सुख तथा श्री-प्राप्तिकारक होता है। अतः इसमें शिवार्चन के समस्त उपचार शुभ होते हैं।
- चन्द्रमा की इस पाँचवीं कला का पान वषटरकार करते हैं।
शुभकर्माणि सर्वाणि स्थिराणि चराणि च। ऋणादानं विनायान्ति सुसिद्धिं पंचमीदिने।।
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