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अंबाला की लाला दुनीचंद का जन्म 1873 में पटियाला रियासत में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा पटियाला और लाहौर में हुई और शिक्षा पूरी करके उन्होंने अंबाला में वकालत आरम्भ की। इसी बीच वे लाला लाजपत राय के संपर्क में आए और स्वामी दयानंद के विचारों से प्रभावित होकर आर्य समाजी बन गए। उन्होंने शिक्षा प्रसार के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश किया और अनेक प्रमुख शिक्षा संस्थाओं से जुड़े
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1920 में जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया तो लाला दुनीचंद ने अपनी चलती वकालत छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 1922 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। कुछ कांग्रेसजनों द्वारा स्वराज पार्टी का गठन करने पर वे उसमें सम्मिलित हो गए और उसके टिकिट पर केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1930 के सविनय अवज्ञा आदोंलन में फिर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। बाद में वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी नामजद हुए। 1937 के निर्वाचन में वे पंजाब असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1920 से 1947तक उनकी गणना पंजाब के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी।
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लाला दुनीचंद बड़े उदार विचारों के व्यक्ति थे। हरिजनोद्धार और स्त्री-शिक्षा के कामों में उनकी विशेष रुचि थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया था और जेल की सजा भोगी। स्वतंत्रता के बाद वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे। और 1965 में उनका देहांत हो गया।
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'''लाला दुनीचंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lala Duni Chand'', जन्म: [[1873]], [[अंबाला]]; मृत्यु: [[1965]]) [[पंजाब]] के स्वतंत्रता सेनानी और वकील थे। उन पर [[लाला लाजपत राय]] और [[स्वामी दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद]] के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे वे आर्य समाजी बन गए। आंदोलनों में भाग लेने के कारण वह कई बार जेल गये।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=763|url=}}</ref>
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==परिचय==
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लाला दुनीचंद का जन्म 1873 में अंबाला के पटियाला रियासत में एक गरीब [[परिवार]] में हुआ था। उनकी शिक्षा पटियाला और [[लाहौर]] में हुई और शिक्षा पूरी करके उन्होंने अंबाला में वकालत आरम्भ की। इसी बीच वे लाला लाजपत राय के संपर्क में आए और स्वामी दयानंद के विचारों से प्रभावित होकर आर्य समाजी बन गए।  
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==राजनीतिक जीवन==
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[[1920]] में जब [[गाँधी जी]] ने [[असहयोग आंदोलन]] आरंभ किया तो लाला दुनीचंद ने अपनी चलती वकालत छोड़ दी और [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] में सम्मिलित हो गए। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण [[1922]] में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। कुछ कांग्रेसजनों द्वारा [[स्वराज पार्टी]] का गठन करने पर वे उसमें सम्मिलित हो गए और उसके टिकिट पर केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। [[1930]] के [[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] में फिर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। बाद में वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी नामजद हुए। [[1937]] के निर्वाचन में वे पंजाब असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1920 से [[1947]] तक उनकी गणना पंजाब के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी।
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==व्यक्तित्व==
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लाला दुनीचंद बड़े उदार विचारों के व्यक्ति थे। हरिजनोद्धार और स्त्री-शिक्षा के कामों में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने शिक्षा प्रसार के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश किया और अनेक प्रमुख शिक्षा संस्थाओं से जुड़े रहे। [[1942]] के [[भारत छोड़ो आंदोलन]] में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया था और जेल की सजा भोगी। स्वतंत्रता के बाद वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे। और [[1965]] में उनका देहांत हो गया।

१३:०५, १३ सितम्बर २०१७ का अवतरण

कविता1
पूरा नाम लाला दुनीचंद
जन्म 1873
जन्म भूमि अंबाला, पटियाला
मृत्यु 1965
नागरिकता भारतीय
धर्म हिंदु
आंदोलन असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन
जेल यात्रा आंदोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल की सजाएं भोगी।
विद्यालय क्रिश्चियन कॉलेज, लाहौर
शिक्षा स्नातक
अन्य जानकारी लाला दुनीचंद की गणना 1920 से 1947 तक पंजाब के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी।

लाला दुनीचंद (अंग्रेज़ी: Lala Duni Chand, जन्म: 1873, अंबाला; मृत्यु: 1965) पंजाब के स्वतंत्रता सेनानी और वकील थे। उन पर लाला लाजपत राय और स्वामी दयानंद के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे वे आर्य समाजी बन गए। आंदोलनों में भाग लेने के कारण वह कई बार जेल गये।[१]

परिचय

लाला दुनीचंद का जन्म 1873 में अंबाला के पटियाला रियासत में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा पटियाला और लाहौर में हुई और शिक्षा पूरी करके उन्होंने अंबाला में वकालत आरम्भ की। इसी बीच वे लाला लाजपत राय के संपर्क में आए और स्वामी दयानंद के विचारों से प्रभावित होकर आर्य समाजी बन गए।

राजनीतिक जीवन

1920 में जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया तो लाला दुनीचंद ने अपनी चलती वकालत छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 1922 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। कुछ कांग्रेसजनों द्वारा स्वराज पार्टी का गठन करने पर वे उसमें सम्मिलित हो गए और उसके टिकिट पर केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में फिर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। बाद में वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य भी नामजद हुए। 1937 के निर्वाचन में वे पंजाब असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1920 से 1947 तक उनकी गणना पंजाब के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी।

व्यक्तित्व

लाला दुनीचंद बड़े उदार विचारों के व्यक्ति थे। हरिजनोद्धार और स्त्री-शिक्षा के कामों में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने शिक्षा प्रसार के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश किया और अनेक प्रमुख शिक्षा संस्थाओं से जुड़े रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया था और जेल की सजा भोगी। स्वतंत्रता के बाद वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे। और 1965 में उनका देहांत हो गया।

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 763 |
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