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१२:१०, १६ जून २०११ के समय का अवतरण

आचार्य नरेन्द्रसेन भट्टारक

  • इनका एकमात्र न्याय-ग्रन्थ 'प्रमाणप्रमेयकलिका' है।
  • इसमें तत्त्व-सामान्य की जिज्ञासा करते हुए उसके दो भेद-
  1. प्रमाणतत्त्व और
  2. प्रमेयतत्त्व बतलाकर उनका समीक्षापूर्वक विवेचन किया है।
  • कृति सुन्दर और सुगम है।
  • यह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुकी है।
  • ग्रन्थकार का समय वि0 सं0 1787 है।

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