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विवरण देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का दूसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, अघोष, संघर्षी है। ‘ष्‌’ व्यंजन संस्कृत भाषा की अपनी विशेषता है।
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) सो + क ] विशेषण- सबसे अच्छा, सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ। पुल्लिंग- मुक्ति, मोक्ष, नाश, अवसान, अंत, शेष, बाक़ी।
विशेष हिंदी में इसका मूर्धन्य उच्चारण विलुप्त है और ‘श्‌’ (शकार) के समान ही ‘ष’ (षकार) का उच्चारण पाया जाता है।
द्वित्व ‘ष’ का द्वित्व प्राय: नहीं होता है।
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देवनागरी वर्णमाला में ऊष्म वर्णों के वर्ग का दूसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, अघोष, संघर्षी है। ‘ष्‌’ व्यंजन संस्कृत भाषा की अपनी विशेषता है। हिंदी में इसका मूर्धन्य उच्चारण विलुप्त है और ‘श्‌’ (शकार) के समान ही ‘ष’ (षकार) का उच्चारण पाया जाता है।

विशेष-
  • हिंदी के तत्सम (संस्कृत) शब्दों में षकार का प्रयोग अनेक के आरम्भ या मध्य में ही उपलब्ध है। जैसे- षट्, विषय।
  • व्यंजन-गुच्छों में जब ‘ष’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब उसका रूप ‘ष्‌’ हो जाता है और प्राय: ‘क, ट, ण, प, फ, म, य, व’ से उसका योग देखा जाता है। जैसे- शुष्क, कष्ट, निष्ठ, निष्णात, पुष्प, निष्फल, भीष्म, भविष्य।
  • ‘ष’ का द्वित्व प्राय: नहीं होता है।
  • ’ष’ से से पहले आकर उससे मिलने वाले व्यंजनों में ‘क’ और ‘र’ महत्वपूर्ण हैं। ‘क’ और ‘ष’ का सयुक्त रूप ‘क्ष’ बनता है। जैसे- वृक्ष, कक्षा और ‘र्’ का ‘ष’ से संयुक्त रूप ‘र्ष’ बनता है (वर्ष, हर्ष)।
  • भाषा वैज्ञानिक कारणों से ‘षकार’ का ‘खकार’ में परिवर्तन भी अनेक शब्दों में पाया जाता है। जैसे- क्षत्रिय-खत्री, वर्षा-बरखा।
  • [ संस्कृत (धातु) सो + क ] विशेषण- सबसे अच्छा, सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ। पुल्लिंग- मुक्ति, मोक्ष, नाश, अवसान, अंत, शेष, बाक़ी।[१]

ष की बारहखड़ी

षा षि षी षु षू षे षै षो षौ षं षः

ष अक्षर वाले शब्द

  • षड्यंत्र
  • षड्दुर्ग
  • षट्‌कोण
  • षष्ठी
  • षट्‌कर्मा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2388

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