तारणपंथ
तारणपंथ का अर्थ है- "तारने वाला पंथ" या "मोक्षमार्ग"। यह पंथ अनादि काल से है और अनंत काल तक रहेगा। इस पंथ का कोई संस्थापक नहीं है। तारणपंथ की प्रवर्तना तीर्थंकर परमात्मा करते हैं। इस पंथ में कई ऐसे आचार्य हुए, जिन्होंने अपनी साधना के अनुभव पर धर्म जगत को समझाया।
स्थापना
तारणपंथ की स्थापना आचार्य तारण तरण देव ने की थी आचार्य तारण तरण देव के द्वारा प्रतिरूप होने के कारण यहां पंथ 'तारणपंथ' के नाम से विख्यात हुआ। आचार्य तारण तरण देव जी ने 14 ग्रंथों की रचना की थी।
तारणपंथी
तारणपंथी 18 क्रियाओं का पालन करने वालों को कहते हैं। जो सप्त व्यसन के त्याग कर अठारह क्रियाओं का पालन करता है, वह तारणपंथी कहलाता है। ये अपनी पूजा को 'मंदिर विधि' कहते हैं। ये मंदिर को 'चैत्यालय' कहते हैं। ये अभिवादन के रूप में 'जय जिनेंद्र' एवं 'जय तारण तरण' कहते हैं।
समुदाय
तारणपंथ के छ: समुदाय हैं-
- समैया
- असाटी
- चरणागर
- अयोध्या वासी
- दो सके
- गोलालार
धाम
- निसईजी मल्हारगढ़
- निसई जी सूखा
- निसई जी सेमरखेड़ी
- पुष्पावति बिल्हेरी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज
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