जो घर ही में गुसि रहे -रहीम  

जो घर ही में गुसि रहे, कदली सुपत सुडील ।
तो ‘रहीम’ तिनते भले, पथ के अपत करील ॥

अर्थ

केले के सुन्दर पत्ते होते हैं और उसका तना भी वैसा ही सुन्दर होता है। किन्तु वह घर के अन्दर ही शोभित होता है। उससे कहीं अच्छे तो करील हैं, जिनके न तो सुन्दर पत्ते हैं और न जिनका तन ही सुन्दर है, फिर भी करील रास्ते पर होने के कारण पथिकों को अपनी ओर खींच लेता है ।


रहीम के दोहे

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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