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जिनके हिस्से अपनी माँ की लोरियाँ आती नहीं
उनके सपनों में भी परियाँ, तितलियाँ आती नहीं
नींव पर जो स्वार्थ की चुनते गये, बुनते गये
ऐसे रिश्तों में कभी नजदीकियाँ आती नहीं
मेरी इन आँखों के आँसू जानते हैं बात ये
मेरी पलकों तक किसी की उँगलियाँ आती नहीं
एक मुददत से मुझे तुम याद करते हो कहाँ
एक मुददत से मुझे अब हिचकियाँ आती नहीं
कौन – सा है घर जहाँ पर लोरियाँ गूँजी न हों
कौन – सा है घर जहाँ से सिसकियाँ आती नहीं
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