गीत जो गाये नहीं -गोपालदास नीरज  

गीत जो गाये नहीं -गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
मूल शीर्षक 'गीत जो गाये नहीं'
प्रकाशक 'डायमंड पॉकेट बुक्स'
प्रकाशन तिथि 01 जनवरी, 2005
ISBN 81-288-1007-3
देश भारत
पृष्ठ: 159
भाषा हिन्दी
प्रकार कविता संग्रह
विशेष पुस्तक क्रम: 3570

हिन्दी गीति-काव्य का पर्याय बन चुके कवि नीरज बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मानित काव्य व्यक्तित्व हैं। अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशन समूहों द्वारा कराये गये सर्वेक्षणों के तथ्य इस बात को प्रमाणित करते हैं। प्रस्तुत कृति ‘गीत जो गाये नहीं’ कवि नीरज के उन श्रेष्ठ और हृदयस्पर्शी गीतों का संकलन है, जो उनके द्वारा काव्यमंचो पर प्रायः प्रस्तुत नहीं किये गये। और जिन्हें पढ़कर प्रत्येक पाठक को ऐसा लगेगा जैसे कि ये गीत उसी के स्वयं के द्वारा हृदय की अनुभूतियाँ हैं। गीत-सम्राट नीरज के उच्चकोटि के गीतों का एक अविस्मरिणीय और संग्रहणीय प्रस्तुति है, जो हृदयस्पर्शी है।

जीवन की उत्सवधर्मिता का काव्य

आधुनिक हिन्दी गीति-काव्य के आकाश पर नक्षत्र की तरह चमकते हुए कवि नीरज का परिचय स्वयं उनकी काव्य-रचनाएँ हैं। डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने काव्य मंचों की जिस परम्परा का सूत्रपात किया था, उसे कवि नीरज ने न सिर्फ समृद्ध किया बल्कि जनसाधारण में भी लोकप्रिय बनाया। हिन्दी जगत् में आज वे ‘लिविंग लीजेण्ड’ बन चुके हैं। आम बोलचाल की भाषा में जनसामान्य के दुख-दर्द की काव्यमयी अभिव्यक्ति और उसे काव्य-मंचों पर प्रस्तुत करने की विशिष्ट शैली ने नीरज को मंच का ऐसा प्यारा और दुलारा कवि बना दिया है कि पिछले छह दशकों से उनका काव्य-मंचों पर आधिपत्य है। बाबा, पिता, स्वयं और पुत्र या दादी, माँ स्वयं और पुत्री यानी श्रोताओं की चार-चार पीढ़ियों में समान रूप से इतना सम्मानित और चर्चित कोई अन्य काव्य व्यक्तित्व आज हमें दिखाई नहीं देता। मंच पर उनकी आवाज़ का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह उनकी कोई गर्वोक्ति नहीं है कि तुमको लग जाएँगी सदियाँ हमें भुलाने में

काव्य व्यक्तित्व

कवि नीरज के काव्य व्यक्तित्व को दो पक्षों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. मंचीय और फिल्मी साहित्य
  2. नितान्त साहित्यिक

जो निश्चय ही महादेवी और बच्चन की गीत परम्परा का विस्तार है। नीरज जी का पहला पक्ष अपार ख्याति से आच्छादित है, जो बादलों की तरह उनके श्रेष्ठ काव्य के तारामण्डल को भी ढँके हुए है। ऐसा नहीं है कि उनके इस पक्ष पर काव्य पारखियों की दृष्टि गयी ही न हो; डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. प्रकाशचन्द्र गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने आरम्भ में ही उनकी प्रतिभा को न केवल स्वीकारा बल्कि उनमें एक बड़े कवि की सम्भावनाओं के भी दर्शन किये थे। डॉ. रणजीत ने तो उन्हें प्रगतिशील कवियों की श्रेणी में रखकर उनके महत्त्व को विशेष रूप से रेखांकित किया है। बाद के आलोचकों ने आधुनिक गीति-काव्य को ही सिरे से नकारना शुरू कर दिया और इस आपाधापी में कवि नीरज की गीति-काव्य से इतर श्रेष्ठ मुक्तछन्द रचनाएँ भी मूल्यांकन से वंचित रह गयीं। यद्यपि अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा उनके काव्य का मूल्यांकन शोध प्रबन्धों के रूप में कराया जा चुका है।

गीतों का संकलन

‘गीत जो गाये नहीं’ कवि नीरज के उन गीतों का संकलन है, जो उनके द्वारा काव्य मंचों पर प्राय: प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। ये वही गीत हैं जहाँ से गीत की एक धारा नवगीत के रूप में निकलती है। बेशक नवगीतकारों का एक समूह इसे स्वीकार करने में संकोच करे फिर भी इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि नवगीत का उत्स नीरज के उन गीतों में स्पष्ट दिखाई देता है जो साठ के दशक में पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से सामने आ रहे थे।


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