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कापिशी  

कापिशी पाणिनिकालीन भारत में कापिशायन प्रांत की राजधानी थी। काबुल से उत्तर-पूर्व हिंदुकुश के दक्षिण आधुनिक बेग्राम प्राचीन कापिशी है, जो घोरबंद और पंजशीर नदियों के संगम पर स्थित थी।[१]

  • बाल्हीक से बामियाँ होकर कपिश प्रांत (कोहिस्तान-काफिरिस्तान) में घुसने वाले मार्ग पर कापिशी नगरी व्यापार और संस्कृति का केंद्र थी।
  • बेग्राम में मिले हुए एक शिलालेख में कपिशा नाम आया है।[२] यह हरी दाख की उत्पत्ति का स्थान था।
  • यहाँ बनी हुई कपिशायन मधु नामक विशेष प्रकार की सुरा भारतवर्ष में आती थी, जिसका उल्लेख कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है।
  • प्लिनी के अनुसार छठी शताब्दी ई. पूर्व में हखामिन वंश के ईरानी सम्राट कुरुष (558-30 ई.पू.) ने कपिशा का विध्वंस किया था। कालांतर में वह पुन समृद्ध हुई और अंत में हूणों द्वारा इसका विध्वंस किया गया।
  • कापिशी नगरी के सिक्कों पर हाथी का चिह्न पाया गया है, जो इंद्र का ऐरावत ज्ञात होता है, क्योंकि वहाँ के उत्तरकालीन कुछ सिक्कों पर यूनानी देवता ‘जियस’ (भारतीय इंद्र) की मूर्ति मिली है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 83 |
  2. ऐपिग्राफिआ इण्डिक, भाग 22, 1933, पृष्ठ 11, स्टेनकोनो, बेग्राम से प्राप्त खरोष्ठी मूर्तिलेख)

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