कराईकल  

कराईकल केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी का एक शहर है। यह मंदिरों का शहर है, जो यहाँ स्थित भगवान शनिश्वेरा के मंदिर के लिए लोकप्रिय है। यह चेन्नई के दक्षिण से लगभग 300 किलोमीटर और पांडिचेरी से 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कराईकल उन लोगों के लिए बिल्कुल उचित स्थान है, जो समुद्र तट पर एकान्त, फुरसत और शान्ति को तलाशते हैं। रेतीले तट, शहर में फ्रेंच संस्कृति और वास्‍तुकला, खूबसूरत मंदिर और बंदरगाह, इस स्‍थल को सभी के लिए यादगार बना देते हैं। भारत में तेज़ीसे पर्यटन स्‍थलों में उभर कर आने वाले शहर कराईकल का बहुत समृद्ध इतिहास और संस्कृति है। इस शहर का इतिहास 8 वीं सदी के दौरान पल्लव साम्राज्य के काल से जुड़ा हुआ है।

स्थिति

कराईकल तमिलनाडु के नागपट्टिनम और तिरूवरुर ज़िले से घिरा हुआ है। यह एक महत्‍वपूर्ण बंदरगाह शहर है, जो संघ शासित क्षेत्र पांडिचेरी में बंगाल की खाड़ी के कोरामंडल तट पर स्थित है। यह पांडिचेरी के दक्षिण से 132 कि.मी. और चेन्नई के दक्षिण से लगभग 300 कि.मी. और त्रिची के पूर्व से लगभग 150 कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ है। कराईकल को पांडिचेरी संघ राज्‍य क्षेत्र में डेल्टा के मध्‍य दूसरे स्‍थान पर रखा गया है।

नामकरण

कराईकल नाम के कई स्‍पष्‍टीकरण दिए गए हैं, जो कि दो प्रमुख शब्‍दों 'कराई' और 'कल' से मिलकर बना हूआ है। यहां का कनाल (कृत्रिम नहर), चूने के मिश्रण से बना हुआ है, जो सबसे ज्‍यादा वास्‍तविक लगता है। हालांकि, वर्तमान में इस शहर में कोई भी कनाल नहीं पाया जाता है। जूलियन विन्‍सन के अनुसार, शहर के लिए संस्कृत नाम 'कारागिरी' था। वहीं इम्‍पीरियल गैजेट्टीर के अनुसार, कराईकल नाम का अर्थ "फिश पास" होता है।

इतिहास

भारत में तेज़ीसे पर्यटन स्‍थलों में उभर कर आने वाले शहर कराईकल का बहुत समृद्ध इतिहास और संस्कृति है। इस शहर का इतिहास 8वीं सदी के दौरान पल्लव साम्राज्य के काल से जुड़ा हुआ है। इसके बाद इस शहर का इतिहास लंबे समय के लिए अस्‍पष्‍ट बना रहा, फिर पुन: 18वीं सदी के तंजावुर राजा के कार्यकाल के दौरान कराईकल के इतिहास की तस्‍वीर उभरकर सामने आई। सन 1738 में एक फ्रेंच उच्‍चाधिकारी 'डुमास' नाम रखकर तंजावुर के साहूजी के साथ बातचीत करने के लिए आया था और बाद में 1739 में उसने कराईकल पर विजय प्राप्‍त कर ली। 1761 ई. में फ्रेंच, अंग्रेज़ों के द्वारा हार गया और यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। हालांकि, 1814 ई. की पेरिस संधि के अनुसार अंग्रेज़ों ने इस क्षेत्र को फ्रेंच को वापस लौटा दिया था और इसके बाद 1954 तक फ्रेंच ने इस पर अपना अधिकार जमाए रखा। इसीलिए कराईकल शहर में आज भी फ्रेंच की समृद्ध संस्‍कृति और परंपरा देखने को मिलती है।

दर्शनीय स्थल

यह शहर यहां स्थित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के मुख्‍य आकर्षणों में शनिश्वेरा मंदिर, कैलासनाथर मंदिर, नवग्रह मंदिर और अम्‍मेयार मंदिर शामिल हैं। मंदिरों में दर्शन करने के अलावा, पर्यटक शहर के तटों में सैर कर सकते हैं और बंगाल की खाड़ी के इलाकों में नौका विहार का आंनद उठा सकते हैं। कराईकल में कुछ ऐसे गांव भी हैं, जो अपने पुरातात्विक महत्‍व की वजह से प्रासंगिक हैं, जैसे- कीझा कासाकुडे और मेला कासाकुडे। नामचीन तीर्थस्‍थल जैसे नागौर और वेलानकन्‍नी भी कराईकल के नजदीक स्थित हैं।

कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग - कराईकल के लिए सबसे नजदीकी अंर्तराष्‍ट्रीय हवाई अड्डा चेन्‍नई हवाई अड्डा है। यह एयरपोर्ट कराईकल से 300 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जहां सड़क मार्ग से पहुंचने में लगभग 7 से 9 घंटे का समय लग जाता है। वैसे यहां का निकटतम घरेलू हवाई अड्डा त्रिची में है। कराईकल में हवाई अड्डे के निर्माण की प्रक्रिया चल रही है, जिसके 2014 में ही पूरा होने की उम्‍मीद है। सड़क मार्ग - कराईकल का निकटतम रेलवे स्‍टेशन नागौर में है, जो शहर से 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। सभी प्रमुख स्‍थानों, जैसे- पांडिचेरी और तमिलनाडु से कराईकल के लिए लगातार निजी सेवाएं प्रदान की जाती हैं। स्‍थानीय परिवहन, ऑटो रिक्‍शा और बसों के रूप में आसानी से उपलब्‍ध है।

मौसम

भारत के अन्‍य दक्षिण तटीय क्षेत्रों की तुलना में कराईकल में बहुत तेज गर्मी पड़ती है। अत: कराईकल में सैर करने का आर्दश समय सर्दियों के दौरान का होता है, नवंबर से फ़रवरी के बीच में इस शहर की सैर आराम से की जा सकती है, क्‍योकि इस समय यहां का मौसम ताजगी भरा और सुखद होता है। कराईकल उन लोगों के लिए आर्दश स्‍थल है, जो शांति, प्राकृतिक सुंदरता और एकाग्रता से भरे तटों पर आराम करना चाहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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