हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुश्नाम तो नहीं है, यह इकराम ही तो है
करते हैं जिसपे त'अन कोई जुर्म तो नहीं
शौक़े फ़ुज़ूल-ओ-उल्फ़ते नाकाम ही तो है
दिल, मुद्दई के हर्फ़े-मलामत से शाद है
ऐ जाने-जाँ, यह हर्फ़ तेरा नाम ही तो है
दिल नाउमीद तो नहीं, नाकाम ही तो है
लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
दस्ते-फ़लक में गर्दिशे-तक़दीर तो नहीं
दस्ते-फ़लक में गर्दिशे-अय्याम ही तो है
आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा
वो यारे-ख़ुशख़िसाल सरेबाम ही तो है
भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तेदा करो
वक़्ते-सरोद, दर्द का हंगामा ही तो है