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अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की रचनाएँ
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वायु के मिस भर भरकर आह।
ओस मिस बहा नयन जलधार।
इधर रोती रहती है रात।
छिन गये मणि मुक्ता का हार।।1।।
उधर रवि आ पसार कर कांत।
उषा का करता है श्रृंगार।
प्रकृति है कितनी करुणा मूर्ति।
देख लो कैसा है संसार।।2।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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