"सजा तो वाजिब ही मिली -जवाहरलाल नेहरू" के अवतरणों में अंतर  

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Text replacement - "किस्सा" to "क़िस्सा ")
 

(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ४ अवतरण नहीं दर्शाए गए)

पंक्ति २: पंक्ति २:
 
|चित्र=Nehru_prerak.png
 
|चित्र=Nehru_prerak.png
 
|चित्र का नाम=जवाहरलाल नेहरू  
 
|चित्र का नाम=जवाहरलाल नेहरू  
|विवरण= [[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]]  
+
|विवरण= [[जवाहरलाल नेहरू]]  
 
|शीर्षक 1=भाषा
 
|शीर्षक 1=भाषा
 
|पाठ 1=[[हिंदी]]
 
|पाठ 1=[[हिंदी]]
पंक्ति १७: पंक्ति १७:
 
|शीर्षक 7=
 
|शीर्षक 7=
 
|पाठ 7=
 
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
+
|शीर्षक 8=मूल शीर्षक
|पाठ 8=
+
|पाठ 8=[[प्रेरक प्रसंग]]
|शीर्षक 9=मूल शीर्षक
+
|शीर्षक 9=उप शीर्षक
|पाठ 9=[[प्रेरक प्रसंग]]
+
|पाठ 9=[[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]]
 
|शीर्षक 10=संकलनकर्ता
 
|शीर्षक 10=संकलनकर्ता
 
|पाठ 10=[[अशोक कुमार शुक्ला]]
 
|पाठ 10=[[अशोक कुमार शुक्ला]]
पंक्ति २८: पंक्ति २८:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
 
 
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
 
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
जवाहर लाल नेहरू जी ने अपने बचपन का किस्सा बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता मोतीलाल नेहरू जी का बहुत सम्मान करते थे । हांलांकि वे कडकमिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था । उनकी तेज मिजाजी का एक किस्सा बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है-
+
[[जवाहरलाल नेहरू]] जी ने अपने बचपन का क़िस्सा  बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता [[मोतीलाल नेहरू]] जी का बहुत सम्मान करते थे। हांलांकि वे कड़क मिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योंकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था। उनकी तेज मिजाजी का एक क़िस्सा  बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है-
  
डनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन ही में मैं उसका शिकार हो गया था । कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी । एक रोज मैने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पडे देखे। मेरा जी ललचाया मैने दिन में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बडी जोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं । पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज हुऐ और मेरी खूब मरम्मम की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये मां की गोद मे दौडा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पडत कि इस सजा के कारण पिताजी को मैने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सजा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी जरूरत से ज्यादा।
+
उनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन ही में मैं उसका शिकार हो गया था। कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी। एक रोज मैने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पड़े देखे। मेरा जी ललचाया मैने दिल में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बड़ी जोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं। पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज़ हुए और मेरी खूब मरम्मत की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये माँ की गोद में दौड़ा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि इस सजा के कारण पिताजी को मैंने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सजा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी ज़रूरत से ज़्यायादा।
  
;[[जवाहरलाल नेहरू]] से जुडे अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ
+
;[[जवाहरलाल नेहरू]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ। 
 
</poem>
 
</poem>
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
{| width="100%"
 
|-
 
|
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:काव्य कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
+
{{प्रेरक प्रसंग}}
[[Category:कविता संग्रह]]
+
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:प्रेरक प्रसंग]][[Category:जवाहर लाल नेहरू]]
[[Category:पुस्तक कोश]]
+
[[Category:साहित्य कोश]]
|}
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
<noinclude>[[Category:प्रेरक प्रसंग]]</noinclude>
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 

१४:१४, ९ मई २०२१ के समय का अवतरण

सजा तो वाजिब ही मिली -जवाहरलाल नेहरू
विवरण जवाहरलाल नेहरू
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

जवाहरलाल नेहरू जी ने अपने बचपन का क़िस्सा बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता मोतीलाल नेहरू जी का बहुत सम्मान करते थे। हांलांकि वे कड़क मिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योंकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था। उनकी तेज मिजाजी का एक क़िस्सा बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है-

उनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन ही में मैं उसका शिकार हो गया था। कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी। एक रोज मैने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पड़े देखे। मेरा जी ललचाया मैने दिल में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बड़ी जोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं। पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज़ हुए और मेरी खूब मरम्मत की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये माँ की गोद में दौड़ा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि इस सजा के कारण पिताजी को मैंने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सजा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी ज़रूरत से ज़्यायादा।

जवाहरलाल नेहरू से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=सजा_तो_वाजिब_ही_मिली_-जवाहरलाल_नेहरू&oldid=662446" से लिया गया