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||[[चित्र|border|100px|right|बुद्ध]]'हाथीगुम्फ़ा शिलालेख' [[उड़ीसा]] के [[भुवनेश्वर]] से 4-5 मील दूर एक पहाड़ी में स्थित है। पहाड़ी में एक गुफ़ा में [[कलिंग]] नरेश [[खारवेल]] का पाली [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है, जिसका ठीक-ठीक निर्वचन अद्यावत एक समस्या बना हुआ है। फिर भी जो सूचना इस अभिलेख से मिलती है, वह स्थूल रूप से यह है कि- "खारवेल ने बहपतिमित को हराया, यह [[मगध]] के [[नंद वंश|नंद]] राजा से प्रथम [[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]] की मूर्ति वापस लाया और एक प्राचीन नहर का पुननिर्माण करवाया"। अभिलेख में कहा गया है कि- "यह नहर नंद राजा के बाद ‘तिवससत्’ तक काम में न आयी"। मुख्य विवाद ‘तिवससत्’ शब्द पर है। [[राखालदास बनर्जी]] के मत में इसका अर्थ 300 है, किन्तु अन्य विद्वानों के अनुसार इसे 103 समझना चाहिए।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख]]
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||[[चित्र:Udayagiri-Caves-Khandagiri.jpg|border|100px|right|उदयगिरि गुफ़ाएँ, भुवनेश्वर]]'हाथीगुम्फ़ा शिलालेख' [[उड़ीसा]] के [[भुवनेश्वर]] से 4-5 मील दूर एक पहाड़ी में स्थित है। पहाड़ी में एक गुफ़ा में [[कलिंग]] नरेश [[खारवेल]] का पाली [[अभिलेख]] उत्कीर्ण है, जिसका ठीक-ठीक निर्वचन अद्यावत एक समस्या बना हुआ है। फिर भी जो सूचना इस अभिलेख से मिलती है, वह स्थूल रूप से यह है कि- "खारवेल ने बहपतिमित को हराया, यह [[मगध]] के [[नंद वंश|नंद]] राजा से प्रथम [[तीर्थंकर|जैन तीर्थंकर]] की मूर्ति वापस लाया और एक प्राचीन नहर का पुननिर्माण करवाया"। अभिलेख में कहा गया है कि- "यह नहर नंद राजा के बाद ‘तिवससत्’ तक काम में न आयी"। मुख्य विवाद ‘तिवससत्’ शब्द पर है। [[राखालदास बनर्जी]] के मत में इसका अर्थ 300 है, किन्तु अन्य विद्वानों के अनुसार इसे 103 समझना चाहिए।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख]]
 
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१०:४०, १९ अप्रैल २०२४ के समय का अवतरण

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