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<ref>[[महाभारत]] वनपर्व 254,7 में नेपाल का उल्लेख कर्ण की दिग्विजय के सम्बन्ध में है।</ref> नेपाल देश में जो राजा थे, उन्हें जीत कर वह हिमालय-पर्वत से नीचे उतर आया और फिर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ। <ref>'नेपाल विषये ये च राजानस्तानवाजयत् अवतीर्य तथा शैलात् पूर्वा दिशमभिद्रतः'</ref> इसके बाद कर्ण की अंग-वंग आदि पर विजय का वर्णन है। इससे ज्ञात होता है, कि प्राचीन काल में भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से नेपाल को [[भारत]] का ही एक अंग समझा जाता था। नेपाल नाम भी महाभारत के समय में प्रचलित था। नेपाल में बहुत समय तक अनार्य जातियों का राज्य रहा। मध्ययुग में राजनैतिक सत्ता [[मेवाड़]] ([[राजस्थान]]) के राज्यवंश की एक शाखा के हाथ में आ गई। राजपूतों की यह शाखा मेवाड़ से, मुसलमानों के आक्रमणों से बचने के लिए नेपाल में आकर बस गई थी। इसी क्षत्रियवंश का राज्य आज तक नेपाल में चला आ रहा है। नेपाल के अनेक स्थान प्राचीन काल से अब तक हिन्दू तथा बौद्धों के पुण्यतीर्थ रहे हैं। [[लुम्बनी]], [[पशुपतिनाथ]] आदि स्थान भारतवासियों के लिए भी उतने ही पवित्र हैं, जितने की नेपालियों के लिए हैं।  
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महाभारत, वनपर्व[१] में नेपाल का उल्लेख कर्ण की दिग्विजय के सम्बन्ध में है। नेपाल देश में जो राजा थे, उन्हें जीत कर वह हिमालय-पर्वत से नीचे उतर आया और फिर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ। [२] इसके बाद कर्ण की अंग-वंग आदि पर विजय का वर्णन है। इससे ज्ञात होता है, कि प्राचीन काल में भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से नेपाल को भारत का ही एक अंग समझा जाता था। नेपाल नाम भी महाभारत के समय में प्रचलित था। नेपाल में बहुत समय तक अनार्य जातियों का राज्य रहा। मध्ययुग में राजनैतिक सत्ता मेवाड़ (राजस्थान) के राज्यवंश की एक शाखा के हाथ में आ गई। राजपूतों की यह शाखा मेवाड़ से, मुसलमानों के आक्रमणों से बचने के लिए नेपाल में आकर बस गई थी। इसी क्षत्रियवंश का राज्य आज तक नेपाल में चला आ रहा है। नेपाल के अनेक स्थान प्राचीन काल से अब तक हिन्दू तथा बौद्धों के पुण्यतीर्थ रहे हैं। लुम्बनी, पशुपतिनाथ आदि स्थान भारतवासियों के लिए भी उतने ही पवित्र हैं, जितने की नेपालियों के लिए हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 254,7
  2. 'नेपाल विषये ये च राजानस्तानवाजयत् अवतीर्य तथा शैलात् पूर्वा दिशमभिद्रतः'
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