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बाहुबलि [[गोमतेश्वर]] भी कहलाते हैं। बाहुबलि [[जैन|जैन दंतकथाओं]] के अनुसार पहले तीर्थकर (या रक्षक शिक्षक) [[ॠषभनाथ]] के पुत्र थे।कहा जाता है कि बाहुबलि ने एक वर्ष तक बिना हिले, खड़े रहकर तपस्या की थी। उनके पाँव आगे की ओर थे और भुजाऐं बगल में थीं। वह अपने आसपास से इतने अनजान थे कि उनके शरीर पर लताऐं उग गई थी और उनके पाँव पर चींटियों की बांबियाँ बन गई थीं।
 
बाहुबलि [[गोमतेश्वर]] भी कहलाते हैं। बाहुबलि [[जैन|जैन दंतकथाओं]] के अनुसार पहले तीर्थकर (या रक्षक शिक्षक) [[ॠषभनाथ]] के पुत्र थे।कहा जाता है कि बाहुबलि ने एक वर्ष तक बिना हिले, खड़े रहकर तपस्या की थी। उनके पाँव आगे की ओर थे और भुजाऐं बगल में थीं। वह अपने आसपास से इतने अनजान थे कि उनके शरीर पर लताऐं उग गई थी और उनके पाँव पर चींटियों की बांबियाँ बन गई थीं।

०९:५९, १२ मई २०१० का अवतरण

बाहुबलि

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बाहुबलि गोमतेश्वर भी कहलाते हैं। बाहुबलि जैन दंतकथाओं के अनुसार पहले तीर्थकर (या रक्षक शिक्षक) ॠषभनाथ के पुत्र थे।कहा जाता है कि बाहुबलि ने एक वर्ष तक बिना हिले, खड़े रहकर तपस्या की थी। उनके पाँव आगे की ओर थे और भुजाऐं बगल में थीं। वह अपने आसपास से इतने अनजान थे कि उनके शरीर पर लताऐं उग गई थी और उनके पाँव पर चींटियों की बांबियाँ बन गई थीं।

मुंबई स्थित प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम में रखी नौंवी शाताब्दी की उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमा सहित बहुत से मूर्तिशिल्पों में बाहुबली को दर्शाया गया है।

कर्नाटक में दिगंबर मत के केंन्द्र श्रवणबेलगोला में एक पहाड़ी के शीर्ष पर 10वीं शाताब्दी में निर्मित विशालकाय प्रतिमा स्थित है। एक ही चट्टान को काटकर बनी यह प्रतिमा 17.5 मीटर ऊँची है और यह विश्व की बिना किसी सहारे के खड़ी विशालतम प्रतिमा है। हर 12 वर्ष में संपूर्ण मूर्ति का आनुष्ठानिक रूप से दही, दूध व शुद्ध घी से मस्तकाभिषेक किया जाता है।

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