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==ज==
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===जन के ऊपर कुछ नहीं===
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* अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है।  ~ हिंदू पंच, बलिदान अंक
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* पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है।  ~ कंचनलता सब्बरवाल
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* अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए।  ~ श्रीराम शर्मा आचार्य
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* प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं।  ~ भगवतीचरण वर्मा
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===जागरण का अर्थ===
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* जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम।  ~ जयशंकर प्रसाद
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* जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है।  ~ स्वामी अखंडानंद
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* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है।  ~ महात्मा गांधी
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* दु:ख में अपने स्वजनों को देखते ही दु:ख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए।  ~ कालिदास
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===जहां धर्म है वहां जय है===
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* विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है।  ~ भट्टनारायण
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* जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है।  ~ वेदव्यास
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* धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है।  ~ धम्मपद
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* जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता।  ~ जातक
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* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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===जहां स्वार्थ, वहां प्रेम नहीं===
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* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
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* प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।  ~ प्रेमचंद
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* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है।  ~ महात्मा गांधी
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* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है।  ~ जयशंकर प्रसाद
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* जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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* अचल निष्ठा ही महान् कामों की जननी है।  ~ विवेकानंद
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* मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है।  ~ सुभाषचंद्र बोस
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* स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
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===जहां विनय है, वहां भय नहीं===
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* जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए।  ~ शेक्सपियर
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* नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता।  ~ मुतनव्बी
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* जहां विनय है, वहां भय नहीं है।  ~ कन्नड़ लोकोक्ति
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* अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है।  ~ सेंट ऑगस्टीन
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* जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है।  ~ तत्वकथा
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* नम्रता एवं मधुर वचन ही मनुष्य के असली आभूषण हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
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* हम महान् व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं, जब हम नम्रता में महान् होते हैं।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
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* नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता।  ~ विनोबा
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===जिसके पास अपनी शक्ति नहीं, उसे भगवान===
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* जिसके पास अपनी शक्ति नहीं, उसे भगवान भी शक्ति नहीं दे सकता। शक्ति आत्मा के अंदर से आती है, बाहर से नहीं। जो बाहर की शक्ति पर भरोसा करता है, वह अपने लिए काले दिनो को पुकारता है।  ~ सुदर्शन
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* शक्ति का उपयोग परोपकार मेें करना चाहिए। शत्रु को पीडि़त कर देना मात्र ही शक्ति का सदुपयोग नहीं है।  ~ अज्ञात
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* अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली पुरुष भी अपमान सहन करता है। काठ के भीतर रहने वाली आग को लोग आसानी से लांघ जाते हैं, किंतु जलती हुई अग्नि को नहीं।  ~ पंचतंत्र
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* प्रतिबंधरहित शक्ति की भूख उपयोग से बढ़ती है।  ~ जवाहरलाल नेहरू
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===जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी===
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* जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है- वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है।  ~ सुभाषचंद वसु
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* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं।  ~ वेदव्यास
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* बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है।  ~ गरुड़पुराण
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* यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता।  ~ देवीभागवत
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* भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं।  ~ मज्झिमनिकाय
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===जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है===
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* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है।  ~ वेदव्यास
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* आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल- ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है।  ~ शिवपुराण
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* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।  ~ विष्णु शर्मा
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* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो।  ~ कार्लाइल
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* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
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===जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता===
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* जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है।  ~ रैदास
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* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है।  ~ राबिया
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* जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है।  ~ विनोबा
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===जिसके सत्य विचार हैं, वे सत्यपुरुष हैं===
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* सज्जन लोग स्वभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं।  ~ बाणभट्ट
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* गुण का सच्चा मानदण्ड मन में स्थित है। जिसके सत्य विचार हैं, वे सत्यपुरुष हैं।  ~ आइजक बिकरस्टाफ
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* जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं है।  ~ वेदव्यास
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* सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है।  ~ सुत्तनिपात
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* सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा।  ~ अश्वघोष
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===जिसका मन जिससे लग गया===
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* प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है।  ~ बालजाक
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* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरुजी
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* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है?  ~ दयाराम
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* स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
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* कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
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===जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं===
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* मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली- भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बड़कर संसार में कुछ भी नहीं है।  ~ वेदव्यास
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* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दु:ख देखा है, न सुख- वह संतुष्ट कहा जाता है।  ~ महोपनिषद
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* जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं।  ~ अज्ञात
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* संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता।  ~ सुकरात
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===जिसने अपने आप को वश मे कर लिया===
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* जिसने अपने आप को वश मे कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार मे नहीं बदल सकते।  ~  महात्मा बुद्ध
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* आत्म विश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्म विश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है।  ~ स्वामी विवेकानंद
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* जब मनुष्य स्वयं आत्मविश्वास खो बैठता है तो उसके पतन का सिरा खोजने से भी नहीं मिल पाता।  ~ अज्ञात
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===जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे===
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* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
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* निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते।  ~ भर्तृहरि
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* जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं।  ~ सादी
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===जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह===
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* जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है।  ~ वेदव्यास
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* क्रोध और ग्लानि से सद्भावनाएं विकृत हो जाती हैं। जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल वस्तु को दूषित कर देती है।  ~ प्रेमचंद
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* जब क्रोध नम्रता का रूप धारण कर लेता है, तो अभिमान भी सिर झुका लेता है।  ~ सुदर्शन
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* क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दु:ख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी।  ~ अज्ञात
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===जो शांति से सहन करता है, वही आहत होता है===
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* ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है।  ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
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* जो शांत भाव से सहन करता है, वही गंभीर रूप से आहत होता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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* दो व्यक्तियों के एक चित्त होने पर कोई कार्य असाध्य नहीं होता।  ~ सोमदेव
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* यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी।  ~ आदिभट्टल नारायणदासु
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* सहयोग प्रेम की सामान्य अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है।  ~ रामतीर्थ
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===जो दूसरों का दोष सामने लाता है===
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* दयालुता से दयालुता और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
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* जिस बात से एक की प्रशंसा होती है, उसी बात से दूसरा निंदित होता है।  ~ जातक
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* वह जो दूसरों का दोष तेरे सामने लाता है, निश्चय ही तेरे दोष भी दूसरों के सामने ले जाएगा।  ~ शेख सादी
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* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है।  ~ सत्य साईं बाबा
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* यदि तुम जगत् का उपकार करना चाहते हो तो जगत् पर दोषारोपण करना छोड़ दो, उसे और भी दुर्बल मत करो।  ~ विवेकानन्द
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===जो लूटे जाने पर भी मुस्कुराता है===
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* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है।  ~ महात्मा गांधी
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* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है।  ~ शिवानंद
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* जो लूटे जाने पर भी मुस्कुराता है, वह चोर का कुछ चुरा लेता है।  ~ शेक्सपियर
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* बुद्धिमान को स्वेच्छा से सही मार्ग पर चलना चाहिए। विवश होकर किसी बात को मानना मोहग्रस्त मूढ़ लोगों का काम है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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===जवान और बूढ़े में फ़र्क़===
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* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है।  ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
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* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।  ~ तुकाराम
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* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
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* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
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===जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है===
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* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।  ~ प्रेमचंद
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* पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं।  ~ अज्ञात
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* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है।  ~ महात्मा गांधी
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* दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्ती बिखेरने वाली हँसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है।  ~ रामचरण महेंद्र
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* साफ़ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है।  ~ नारायण पंडित
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* सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं।  ~ जेम्स एलेन
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===जीवन को सुंदर बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है===
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* जीवन को सुंदर बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है।  ~ साने गुरुजी
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* कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन, यह एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए।  ~ लोकोक्ति
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* जीव के दो स्वभाव हैं- अपना-पराया। स्व और पर दोनों में भी जीव के अस्तित्व होने के कारण दूसरों के प्रति बुरी बात करना अनुचित है।  ~ पानुगंटि
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* कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं।  ~ प्रेमचंद
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* जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।  ~ वाल्मीकि
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* वीरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवाह नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं।  ~ प्रेमचंद
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* बिना विवेक के वीरता महासमुद्र की लहर में डोंगी सी डूब जाती है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
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===जीवन अनंत है===
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* जीवन अनंत है और मनुष्य की सार्मथ्य भी अनंत है।  ~ यशपाल
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* अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दु:ख कोई नहीं है।  ~ दांते
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* संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं।  ~ जेम्स एलन
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* पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं।  ~ अज्ञात
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* जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है।  ~ अश्वघोष
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===जीवन विकास का सिद्धांत है===
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* जीवन का रहस्य भोग में नहीं, अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।  ~ स्वामी विवेकानंद
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* जीवन विकास का सिद्धांत है, स्थिर रहने का नहीं। निरंतर विकसित होना स्थिर अवस्था में बने रहने की इजाजत नहीं देता।  ~ जवाहरलाल नेहरू
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* जीवन एक प्रयोगशाला के समान है जिसमें मनुष्य निरंतर प्रयोग करता रहता है।  ~ अज्ञात
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* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है।  ~ स्वामी अखंडानंद
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===जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश===
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* यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश रहती है।  ~ रमण
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* जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है।  ~ प्रेमचन्द
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* यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते।  ~ अज्ञात
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* नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती।  ~ रामानंद
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===जन्म से मुक्ति===
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* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है क्योंकि वह ग़लती कर सकता है, और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
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* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान
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* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
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* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेद व्यास
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* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है।  ~ विवेकानंद
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===जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं===
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* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।  ~ रामकृष्ण परमहंस
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* आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।  ~ चाणक्य
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* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।  ~ महात्मा गांधी
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* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  ~ अज्ञात
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===जिसे तू मारना चाहता है===
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* मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है।  ~ महात्मा गांधी
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* उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं।  ~ विष्णु शर्मा
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* व्यक्ति के अंतर्मन को परखना चाहिए।  ~ दशवैकालिक
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* हंसमुख और बुद्धिमान चेहरा ही संस्कृति का लक्ष्य है।  ~ एमर्सन
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* जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह भी तू ही है।  ~ आचारांग
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===जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह===
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* जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह यदि पहले सामाजिक उन्नति नहीं कर लेगा तो राजनीतिक उन्नति आकाश में महल बनाने जैसी होगी।  ~ महात्मा गांधी
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* यदि राजसत्ता अत्याचारी हो तो किसान का सीधा उत्तर है- जा, जा, तेरे ऐसे कितने राज मैंने मिट्टी में मिलते देखे हैं।  ~ सरदार पटेल
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* राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है।  ~ जय प्रकाश नारायण
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* जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है।  ~ वाल्मीकि
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===जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा जीवन भी होगा।===
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* जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा।  ~ श्रीमां
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* बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है।  ~ सत्य साईं बाबा
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* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा और धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
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* लघुता में प्रभुता निवास करती है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता।  ~ दयाराम
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===जैसा लक्ष्य, वैसा ही जीवन===
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* जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा।  ~ श्रीमां
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* विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं।  ~ अज्ञात
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* लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है।  ~ वेदव्यास
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* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है।  ~ सत्य साईं बाबा
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* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
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===जैसे सभ्य मेहमान उठ कर जाता===
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* रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज़्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज़ वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं।  ~ मारकस काटो
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* रिटायरमेंट के वक्त मैं ठीक उसी तरह जाना चाहूंगा जैसे किसी पार्टी से कोई सभ्य मेहमान उठ कर जाता है।  ~ लियोंटाइन प्राइस
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* यकीन करें कि बुढ़ापा उम्र का सबसे शानदार दौर होता है। भले ही आप उस वक्त अपनी ज़िम्मेदारियों से निबट चुके होते हैं, पर तब आप फ्रंट सीट पर बैठकर उन कामों के नतीजे का मजा ले सकते हैं जो आपने सक्रिय होते हुए किए थे।  ~ जेन एलेन हैरिसन
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* रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है।  ~ मैगी काह्न
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* अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी ज़िंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है।  ~ हैराल्ड जेनीन
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===जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं===
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* पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता।  ~ चाणक्यनीति
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* न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी।  ~ नीतिविदषाष्टिका
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* जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है।  ~ सुभाषितावलि
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* अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं।  ~ कौटिल्य
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===जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती===
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* माता के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी माँ को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है।  ~ वेद व्यास
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* कभी यह न सोचना कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित कर सकते हो। क्योंकि प्रेम यदि तुमको उसका अधिकारी समझता है, तो तुम्हारी राह वह स्वयं निर्धारित करता है।  ~ खलील जिब्रान
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* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती।  ~ गुरु नानक
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* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स ऐंथनी फ्राउड
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===जंगली पशु मनोरंजन के लिए हत्या नहीं करते===
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* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
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* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें।  ~ ऋग्वेद
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* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान
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* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
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===जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है===
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* वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता।  ~ तिरुवल्लुर
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* वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है।  ~ स्पेनी लोकोक्ति
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* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।  ~ धम्मपद
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* विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफ़ी है।  ~ महात्मा गांधी
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* किसी कार्य को संपन्न करने के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
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* अपने सम्मान, सत्य और मनुष्यता के लिए प्राण देने वाला वास्तविक विजेता होता है।  ~ हरिकृष्ण प्रेमी
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* शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें।  ~ दशवैकालिक
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===ज़्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा===
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* सज्जनों का लक्षण यह है कि वे सदा दया करने वाले और करुणाशील होते हैं।  ~ विनोबा भावे
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* किसी का रुपया वापस किया जा सकता है लेकिन सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण हैं, जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है।  ~ सुदर्शन
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* कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज़्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े।  ~ एक कहावत
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* सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है।  ~ रामकुमार वर्मा
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==झ==
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===झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है===
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* यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है।  ~ राउपाख
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* सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है।  ~ हाफिज
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* झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है।  ~ विमल मित्र
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* स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं।  ~ अश्वघोष
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* यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो।  ~ शेक्सपियर
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* जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है।  ~ विनोबा भावे
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* तू ने स्वर्ग औरनरकनहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है।  ~ अज्ञात
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===झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने===
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* झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने वाला होता है।  ~ बंकिम चंद्र
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* संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं।  ~ काका कालेलकर
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* लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है।  ~ वाल्मीकि
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* जहां लुटेरो के चंगुल मे फंस जाने पर झूठी शपथ खाने से छुटकारा मिलता हो, वहां झूठ बोलना ही ठीक है। ऐसे मे उसे ही सत्य समझना चाहिए।  ~ वेदव्यास
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* झूठ बोलने वाला कभी भी श्रेष्ठ पद को नहीं पा सकता।  ~ उपनिषद
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===झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन===
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* पूर्ण मनुष्य वही है, जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो।  ~ शब्सतरी
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* प्रार्थी व्यक्ति को लक्ष्मी मिले या न मिले, किन्तु लक्ष्मी जिसे चाहे वह लक्ष्मी के लिए कैसे दुर्लभ हो सकता है।  ~ कालिदास
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* मनुष्य को अपनी करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है।  ~ सोमेन दत्त
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* झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है।  ~ बेन जॉनसन
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* जड़ कट जाने पर वृक्ष का पालन भला कैसे हो सकता है।  ~ शूद्रक
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===झुककर चलने वाला===
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* राग मिलाने वाली वासना है और द्वेष अलग करने वाली।  ~ रामचंद्र शुक्ल
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* कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है।  ~ मारन वेंकटय्या
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* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।  ~ वाल्मीकि
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* वृद्ध व्यक्ति जो झुककर चलता है, वह धरती में क्या खोजता चलता है? उसका जो यौवन रूपी रत्न खो गया है, उसे ही खोजता है कि शायद कहीं पर गिरा हुआ हो।  ~ जायसी
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* काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है।  ~ वृंदावनलाल वर्मा
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* राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है।  ~ वेदव्यास
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===झुकने वाले के सामने झुकें===
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* झुकने वाले के सामने झुकें। संगति करने वाले के साथ संगति करें।  ~ जातक
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* उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य अग्निवर्षी नहीं हो जाता।  ~ अज्ञात
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* कोमल शब्द कठोर तर्क होते हैं।  ~ टामस फुलर
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* दही में जितना दूध डालिए, वह दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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* थोड़े से निर्दोष शब्दों में कहना जो नहीं जानते, वे ही अनेक शब्दों को कहने के इच्छुक होते हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
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* जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है।  ~ साने गुरुजी
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==ड==
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===डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है===
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* डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा।  ~ प्रेमचंद
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* डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।  ~ विनोबा भावे
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* तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है।  ~ चाणक्य
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===डॉक्टर आशावादी होते हैं===
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* डॉक्टर असंख्य ग़लतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं।  ~ सैम्युअल बटलर
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* डॉक्टर ज़्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फ़र्क़ यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं।  ~ एंटन चेखव
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* डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं।  ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
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* बीमारी से भी कहीं ज़्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए।  ~ एक लैटिन कहावत
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* डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है।  ~ एक फ्रांसीसी कहावत
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===डरा हुआ व्यक्ति===
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* खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
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* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
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* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान
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* जंगली पशु खेल और मनोरंजन के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
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==त==
 
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===तीन प्रकार के इंसान===
 
===तीन प्रकार के इंसान===
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी  
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* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी  
 
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान  
 
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान  
 
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड  
 
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड  
 
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेद व्यास
 
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेद व्यास
  
===तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है===
+
===तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है===
 
* सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है।  ~ अज्ञात  
 
* सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है।  ~ अज्ञात  
* तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव  
+
* तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है।  ~ शिव  
 
* संवेदनशील बनो पर निर्मल भी। प्रेमी बनो पर पवित्र भी।  ~ बायरन  
 
* संवेदनशील बनो पर निर्मल भी। प्रेमी बनो पर पवित्र भी।  ~ बायरन  
 
* अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है।  ~ श्रीहर्ष  
 
* अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है।  ~ श्रीहर्ष  
पंक्ति २५: पंक्ति ३२७:
 
===तृष्णा संतोष की बैरिन है===
 
===तृष्णा संतोष की बैरिन है===
 
* तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है।  ~ सुदर्शन  
 
* तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है।  ~ सुदर्शन  
* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मजदूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है।  ~ वेदव्यास  
+
* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है।  ~ वेदव्यास  
 
* जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए।  ~ चाणक्य  
 
* जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए।  ~ चाणक्य  
 
* त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है।  ~ प्लूटार्क
 
* त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है।  ~ प्लूटार्क
पंक्ति ३७: पंक्ति ३३९:
 
===तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम===
 
===तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम===
 
* अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है।  ~ संत तिरुवल्लुवर  
 
* अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है।  ~ संत तिरुवल्लुवर  
* तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है।  ~ महात्मा गांधी  
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* तपस्या धर्म का पहला और आखिरी क़दम है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है।  ~ दीनानाथ दिनेश  
 
* कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है।  ~ दीनानाथ दिनेश  
 
* सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो।  ~ स्वामी शंकराचार्य  
 
* सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो।  ~ स्वामी शंकराचार्य  
* ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है।  ~ चाणक्य
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* ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत् तृण है।  ~ चाणक्य
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===ताकि दरवाज़े खुले मिलें===
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* जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
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* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है।  ~ रामधारी सिंह दिनकर
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* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
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* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
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* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है।  ~ उड़िया लोकोक्ति
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===त्याग का सच्चा अर्थ===
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* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है।  ~ महाभारत
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* त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है।  ~ विनोबा भावे
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* जिस देश में मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का लाभ भी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए।  ~ चाणक्य
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* जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है।  ~ महात्मा गांधी
  
 
==द==
 
==द==
पंक्ति ५८: पंक्ति ३७३:
 
* स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं।  ~ अरविंद  
 
* स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं।  ~ अरविंद  
 
* दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है।  ~ रस्किन  
 
* दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है।  ~ रस्किन  
* धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दुख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दुख में महान धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं।  ~ वल्लभदेव
+
* धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में महान् धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं।  ~ वल्लभदेव
  
 
===दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है===
 
===दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है===
पंक्ति ६५: पंक्ति ३८०:
 
* सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ जयशंकर प्रसाद  
 
* सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ जयशंकर प्रसाद  
 
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना।  ~ हैजलिट
 
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना।  ~ हैजलिट
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===दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो===
 +
* दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो।  ~ चाणक्य
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* जो महान् है, वह महान् पर ही वीरता दिखाता है।  ~ नारायण पंडित
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* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं।  ~ लोकोक्ति
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* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए।  ~ मैजिनी
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* अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होते हैं। मुंह में रखकर चूसने के लिए नहीं।  ~ वक्रमुख
  
 
===दो प्रकार के सच===
 
===दो प्रकार के सच===
पंक्ति ७३: पंक्ति ३९५:
 
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो।  ~ नवविधान
 
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो।  ~ नवविधान
  
===दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं===
+
===दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं===
 
* जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता।  ~ वेदव्यास  
 
* जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता।  ~ वेदव्यास  
 
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है।  ~ इस्माइल इबन् अबीबकर  
 
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है।  ~ इस्माइल इबन् अबीबकर  
 
* वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं।  ~ हिंदी लोकोक्ति  
 
* वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं।  ~ हिंदी लोकोक्ति  
* दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना।  ~ शेख सादी
+
* दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना।  ~ शेख सादी
  
 
===दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प===
 
===दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प===
 
* दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है।  ~ माघ  
 
* दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है।  ~ माघ  
* जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख दुख परिणाम में मिलता है।  ~ अज्ञात  
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* जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख दु:ख परिणाम में मिलता है।  ~ अज्ञात  
* दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।  ~ कालिदास  
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* दु:ख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।  ~ कालिदास  
* इस संसार में दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए।  ~ योगवाशिष्ठ  
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* इस संसार में दु:ख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए।  ~ योगवाशिष्ठ  
 
* पार्थिव सुख ही एकमात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए, दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद
 
* पार्थिव सुख ही एकमात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए, दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद
  
 
===दुख में मिलते हैं ईश्वर===
 
===दुख में मिलते हैं ईश्वर===
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन।  ~ वेदव्यास  
+
* दु:ख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन।  ~ वेदव्यास  
 
* धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है।  ~ तुलसीदास  
 
* धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है।  ~ तुलसीदास  
* ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दुख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दुख का साथी ईश्वर है।  ~ रामचंद डोंगरे  
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* ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दु:ख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दु:ख का साथी ईश्वर है।  ~ रामचंद डोंगरे  
* स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दुख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है।  ~ शरत
+
* स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दु:ख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है।  ~ शरत
  
 
===दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं===
 
===दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं===
* तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक कदम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं।  ~ खलील जिब्रान  
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* तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक क़दम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं।  ~ खलील जिब्रान  
 
* दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है।  ~ दिनकर  
 
* दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है।  ~ दिनकर  
 
* अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर  
 
* अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर  
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===दुख का दर्शन===
 
===दुख का दर्शन===
* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते।  ~ भानुदत्त  
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* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दु:ख के अन्य कारण दुखी नहीं करते।  ~ भानुदत्त  
* दुख स्वयं ही एक औषधि है।  ~ विलियम कोपर  
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* दु:ख स्वयं ही एक औषधि है।  ~ विलियम कोपर  
* तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है।  ~ खलील जिब्रान  
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* तुम्हारा दु:ख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है।  ~ खलील जिब्रान  
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर  
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* दु:ख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर  
* दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे।  ~ तिरुवल्लुवर  
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* दु:ख से दुखित न होने वाले उस दु:ख को ही दुखद कर देंगे।  ~ तिरुवल्लुवर  
  
 
===दुख के भीतर मुक्ति है===
 
===दुख के भीतर मुक्ति है===
* जरूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो।  ~ शेख सादी  
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* ज़रूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो।  ~ शेख सादी  
 
* जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप।  ~ सुकरात  
 
* जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप।  ~ सुकरात  
* सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दुख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान।  ~ पलटू साहब  
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* सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान।  ~ पलटू साहब  
 
* सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं।  ~ जार्ज बर्कली  
 
* सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं।  ~ जार्ज बर्कली  
 
* नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं।  ~ भारवि  
 
* नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं।  ~ भारवि  
  
 
===दुख या सुख सदा नहीं रहते===
 
===दुख या सुख सदा नहीं रहते===
* दुख या सुख किसी पर सदा नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभ नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।  ~ कालिदास  
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* दु:ख या सुख किसी पर सदा नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभ नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।  ~ कालिदास  
 
* प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है।  ~ आचारांग  
 
* प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है।  ~ आचारांग  
* सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दुख छीर्घकालिक।  ~ बाणभट्ट  
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* सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दु:ख छीर्घकालिक।  ~ बाणभट्ट  
 
* सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है।  ~ अज्ञात  
 
* सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है।  ~ अज्ञात  
* मनुष्य को चाहिए कि वह दुख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े।  ~ जातक  
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* मनुष्य को चाहिए कि वह दु:ख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े।  ~ जातक  
  
 
===दुखी के प्रति करुणा===
 
===दुखी के प्रति करुणा===
 
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि  
 
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि  
 
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चित्त वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब है।  ~ महोपनिषद  
 
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चित्त वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब है।  ~ महोपनिषद  
* समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है।  ~ गुरजाडा अप्पाराव  
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* समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है।  ~ [[गुरुजाडा अप्पाराव]]
 
* एक पंथ बनाते ही तुम विश्वबंधुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबंधुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनका कर्म बोलता है।  ~ विवेकानंद  
 
* एक पंथ बनाते ही तुम विश्वबंधुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबंधुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनका कर्म बोलता है।  ~ विवेकानंद  
  
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* दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
 
* दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
 
* अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न।  ~ अरविन्द
 
* अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न।  ~ अरविन्द
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===दुनिया में दो ही ताकतें हैं===
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* कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव-राशि अथाह होती है।  ~ मैक्सिम गोर्की
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* कला विचार को मूर्ति में परिणित करती है।  ~ एमर्सन
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* संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुसरण है।  ~ सेनेका
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* मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है।  ~ रस्किन
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* सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है।  ~ माइकल एंजिलो
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* दुनिया में दो ही ताकतें हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है।  ~ नेपोलियन
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* कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है।  ~ एमिल जोला
  
 
===दीर्घायु होना सब चाहते हैं===
 
===दीर्घायु होना सब चाहते हैं===
* सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं।  ~ भगवान महावीर  
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* सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दु:ख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं।  ~ भगवान महावीर  
 
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर  
 
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर  
 
* जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है।  ~ अज्ञात
 
* जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है।  ~ अज्ञात
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* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है।  ~ बंकिमचंद  
 
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है।  ~ बंकिमचंद  
 
* दिन को प्रेम से प्रारंभ करो, दिन को प्रेम से भरो, दिन को प्रेम से बिताओ, दिन को प्रेम से समाप्त करो- यही परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है।  ~ सत्य साईं  
 
* दिन को प्रेम से प्रारंभ करो, दिन को प्रेम से भरो, दिन को प्रेम से बिताओ, दिन को प्रेम से समाप्त करो- यही परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है।  ~ सत्य साईं  
* प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है।  ~ उमाशंकर जोशी
+
* प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है।  ~ [[उमाशंकर जोशी]]
  
 
===दीनता मानसिक दुर्बलता है===
 
===दीनता मानसिक दुर्बलता है===
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* सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल  
 
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल  
 
* बुरों पर दया करना भलों पर अत्याचार है, और अत्याचारियों को क्षमा करना पीड़ितों पर अत्याचार है।  ~ शेख सादी
 
* बुरों पर दया करना भलों पर अत्याचार है, और अत्याचारियों को क्षमा करना पीड़ितों पर अत्याचार है।  ~ शेख सादी
 +
 +
===दुष्टों का बल हिंसा है===
 +
* दुष्टों का बल हिंसा है। राजाओं का बल दंड विधि है। स्त्रियों का बल सेवा है। लेकिन गुण वालों का बल क्षमा है।  ~ विदुर
 +
* सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा।  ~ वाल्मीकि
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* अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते।  ~ वेदव्यास
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* सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो।  ~ विनोबा भावे
  
 
===दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला===
 
===दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला===
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* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं।  ~ माधवदेव
 
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं।  ~ माधवदेव
 
* विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात  
 
* विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात  
* विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा गलत है।  ~ अभिनंद
+
* विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा ग़लत है।  ~ अभिनंद
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===दीपक की सीख===
 +
* निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है।  ~ महात्मा गांधी
 +
* जिस प्रकार दीपक दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है और अपने स्वरूप को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार अंत:करण दूसरी वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है और अपने आप को भी।  ~ संपूर्णानंद
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* संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।  ~ कालिदास
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* ज्ञाताज्ञात पाप ही अंत:करण की मलिनता है। जब तक अंत:करण मलरहित, पापरहित नहीं होगा, तब तक वास्तविक दृष्टि का उदय नहीं होगा।  ~ शंकराचार्य
  
 
==ध==
 
==ध==
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* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो।  ~ तिरुवल्लुवर  
 
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो।  ~ तिरुवल्लुवर  
 
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है।  ~ वेदव्यास  
 
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है।  ~ वेदव्यास  
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है।  ~ महात्मा गांधी  
+
* हर व्यक्ति को जो चीज़ हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए।  ~ विनोबा
 
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए।  ~ विनोबा
  
पंक्ति २२२: पंक्ति ५६५:
 
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है।  ~ सोलन  
 
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है।  ~ सोलन  
 
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है।  ~ वेदव्यास
 
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है।  ~ वेदव्यास
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===धन उसका है जो उपभोग करता है===
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* वही व्यक्ति सबसे अधिक दौलतमंद है, जिसकी प्रसन्नता सबसे सस्ती है।  ~ थोरो
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* नकद दौलत अल्लादीन का चिराग है।  ~ बायरन
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* धन उसका नहीं जिसने उसे अर्जित किया है, और उसका भी नहीं जिसने उसे संचित रखा है। धन उसका है, जो उसका उपभोग करता है।  ~ फ्रैंकलिन
 +
* जिस तरह तीतर अपने अंडों को नहीं सेता, उसी तरह बेईमानी से कमाने वाला व्यक्ति अपने धन का उपभोग नहीं कर पाता। और मृत्यु के बाद लोग उसे मूर्ख और कुटिल कह कर बुलाते हैं।  ~ रस्किन बांड
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* धन अथाह समुद्र है, जिसमें इज्जत, अंत: करण और सत्य - सब कुछ डूब सकते हैं।  ~ कोजले
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===धन उत्तम कर्मों से पैदा होता है===
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* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है। साहस, योग्यता, कीर्ति, वेग, दृढ़ निश्चय से बढ़ता है। चतुराई से फलता-फूलता है और संयम से सुरक्षित रहता है।  ~ विदुर
  
 
===धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है===
 
===धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है===
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है।  ~ महात्मा गांधी  
+
* हर व्यक्ति को जो चीज़ हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'  
 
* सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'  
 
* धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं।  ~ दिनकर  
 
* धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं।  ~ दिनकर  
 
* जितने बंधे - बंधाए नियम और आचार हैं उनमें धर्म अंटता नहीं।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
* जितने बंधे - बंधाए नियम और आचार हैं उनमें धर्म अंटता नहीं।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
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===धर्म का पालन धैर्य से होता है===
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* मुझे बताओ कि तुम किन लोगों के साथ रहते हो, मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो?  ~ लॉर्ड चैस्टरफील्ड
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* एक बुराई दूसरी बुराई से उत्पन्न होती है।  ~ टेरेंस
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* धर्म का पालन धैर्य से होता है।  ~ महात्मा गांधी
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* जो सचमुच मनुष्य है, वह विदोह करेगा, अन्याय के प्रति विदोह।  ~ विमल मित्र
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* भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  
 
===धर्म व्यवहार अधिक है===
 
===धर्म व्यवहार अधिक है===
पंक्ति २५०: पंक्ति ६१०:
  
 
===धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं===
 
===धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं===
* धर्म से अर्थ उत्पन होता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है।  ~ वाल्मीकि  
+
* धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत् का सार है।  ~ वाल्मीकि  
 
* जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं।  ~ प्रेमचंद  
 
* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं।  ~ प्रेमचंद  
पंक्ति २५६: पंक्ति ६१६:
  
 
===धोखा देने वाला धोखा खाता है===
 
===धोखा देने वाला धोखा खाता है===
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर  
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* हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर  
 
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
 
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
 
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है।  ~ महात्मा गांधी  
 
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है।  ~ महात्मा गांधी  
पंक्ति २७३: पंक्ति ६३३:
 
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है।  ~ विल्मट  
 
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है।  ~ विल्मट  
 
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है।  ~ डिजरायली  
 
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है।  ~ डिजरायली  
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है।  ~ नेहरू  
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* महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है।  ~ नेहरू  
 
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है।  ~ गेटे
 
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है।  ~ गेटे
  
पंक्ति २९७: पंक्ति ६५७:
  
 
===निंदा सहना===
 
===निंदा सहना===
* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली।  ~ वेदव्यास  
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* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत् पर विजय प्राप्त कर ली।  ~ वेदव्यास  
 
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर  
 
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर  
 
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है।  ~ कन्फ्यूशस  
 
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है।  ~ कन्फ्यूशस  
पंक्ति ३०४: पंक्ति ६६४:
  
 
===नीति का जानकार===
 
===नीति का जानकार===
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं।  ~ कल्हण  
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* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज़्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं।  ~ कल्हण  
 
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।  ~ वेदव्यास  
 
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।  ~ वेदव्यास  
 
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी  
 
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी  
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===न मित्र न शत्रु===
 
===न मित्र न शत्रु===
 
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं।  ~ वेदव्यास  
 
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं।  ~ वेदव्यास  
* महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती।  ~ भट्टाचार्य  
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* महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती।  ~ भट्टाचार्य  
 
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है।  ~ भट्टनारायण  
 
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है।  ~ भट्टनारायण  
* अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है।  ~ विमल मित्र  
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* अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है।  ~ विमल मित्र  
 
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस
 
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस
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===न पूछो जाति महात्मा की===
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* जाति से कोई पतित नहीं है। पतित वह है जो चोरी, व्यभिचार, ब्रह्महत्या, भ्रूण-हत्या आदि दुष्ट कृत्यों को करता है और उनको गुप्त रखने के लिए झूठ बोलता है।  ~ अज्ञात
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* कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता।  ~ कबीर
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* जातिवाद आत्मा और राष्ट्र, दोनों के लिए नुक्सानदेह है।  ~ महात्मा गांधी
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* संपूर्ण विश्व में केवल एक ही जाति है- मानव जाति। एक ही भाषा है- प्रेम की भाषा।  ~ सत्य साईं बाबा
  
 
===नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है===
 
===नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है===
 
* किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति।  ~ अरस्तू  
 
* किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति।  ~ अरस्तू  
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।  ~ वेदव्यास  
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* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।  ~ वेदव्यास  
 
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।  ~ धम्मपद  
 
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें।  ~ धम्मपद  
 
* ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन  
 
* ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन  
 
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस
 
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस
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===नम्रता ही मनुष्य का आभूषण===
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* विचार या भाव ही मनुष्य को उत्तेजित करते हैं, आदर्श ही लोगों को मृत्यु तक का सामना करने को तैयार करते हैं।  ~ विवेकानंद
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* बिना अपनी स्वीकृति के कोई मनुष्य आत्म-सम्मान नहीं गंवाता।  ~ महात्मा गांधी
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* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।  ~ संत तिरुवल्लवुर
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* दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता, जितना अपने को बचाता है।  ~ स्वामी रामतीर्थ
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* कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है।  ~ अज्ञात
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* संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती नहीं।  ~ वेदव्यास
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===निराश व्यक्ति को प्रलोभन मत दो===
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* निराश व्यक्ति को प्रलोभन मत दो।  ~ शेक्सपियर
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* दूसरे का अप्रिय वचन सुनकर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है।  ~ अज्ञात
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* दुखदायी अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्म का दोष नहीं देखता।  ~ नारायण पंडित
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* भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है।  ~ अष्टावक्र गीता
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* जिस प्रकार वासवृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है।  ~ अश्वघोष
  
 
===निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति===
 
===निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति===
पंक्ति ३३३: पंक्ति ७१४:
 
* नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।।  ~ नूरूद्दीन  
 
* नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।।  ~ नूरूद्दीन  
 
* किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है?  ~ बृहस्पति नीति सार  
 
* किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है?  ~ बृहस्पति नीति सार  
* अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।  ~ कल्हण  
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* अपने को विद्वान् मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।  ~ कल्हण  
 
* उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा।  ~ माघ  
 
* उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा।  ~ माघ  
 
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है।  ~ डिजरायली
 
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है।  ~ डिजरायली
पंक्ति ३४०: पंक्ति ७२१:
 
* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।  ~ तुकाराम  
 
* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है।  ~ तुकाराम  
 
* जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है।  ~ दयानंद  
 
* जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है।  ~ दयानंद  
* बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया।  ~ सोमदेव  
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* बल तथा कोश से संपन्न महान् व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया।  ~ सोमदेव  
 
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है।  ~ अज्ञात  
 
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है।  ~ अज्ञात  
  
पंक्ति ३४८: पंक्ति ७२९:
 
* बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है।  ~ व्यास  
 
* बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है।  ~ व्यास  
 
* गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए।  ~ कविता-कौमुदी  
 
* गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए।  ~ कविता-कौमुदी  
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===नैतिक शिक्षा देते समय संक्षेप में कहो===
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* प्रशंसा ऐसा विष है, जिसे अल्पमात्रा में ही ग्रहण करना चाहिए।  ~ बालजाक
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* नैतिक शिक्षा देते समय संक्षेप में कहो।  ~ होरेस
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* राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है।  ~ वाल्मीकि
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* मेहनत वह चाबी है जो किस्मत का दरवाज़ा खोल देती है।  ~ चाणक्य
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* श्रद्धा सामर्थ्य के प्रति होती है और दया असामर्थ्य के प्रति।  ~ रामचन्द्र शुक्ल
  
 
===नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है===
 
===नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है===
पंक्ति ३५४: पंक्ति ७४२:
 
* सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है।  ~ पिंगलि सूरना  
 
* सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है।  ~ पिंगलि सूरना  
 
* घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
 
* घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी  
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है।  ~ प्रेमचंद  
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* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह ज़िंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है।  ~ प्रेमचंद  
* गलती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं।  ~ रामतीर्थ  
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* ग़लती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं।  ~ रामतीर्थ  
 
 
==प==
 
===प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है===
 
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है।  ~ मौलाना रूम
 
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं।  ~ जॉर्ज हरबर्ट
 
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है।  ~ भारवि
 
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है।  ~ चाणक्य
 
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है।  ~ कालिदास
 
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है।  ~ गेटे
 
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
 
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
 
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स ऐंथनी फ्राउड
 
* जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं।  ~ वल्लभदेव
 
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
 
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है।  ~ विवेकानंद
 
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। केवल पुन: किया हुआ पुण्य ही बुद्धि को बढ़ाता है।  ~ वेदव्यास
 
 
 
===प्रेम में स्मृति का ही सुख है===
 
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे।  ~ प्रेमचंद
 
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं।  ~ रामचंद्र शुक्ल
 
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थ और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थ है, वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
 
* प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम-भाव नहीं, प्रेम सब कुछ सहन करता और मान लेता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* प्रेम एक बीज है जो एक बार जम कर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।  ~ प्रेमचंद
 
 
 
===प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है===
 
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरु जी
 
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे।  ~ प्रेमचंद
 
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
 
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* श्रद्धावान को कोई परास्त नहीं कर सकता। बुद्धिमान को हमेशा पराजय का डर लगा रहता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* संत मलिन चित्त वाले मनुष्यों को भी निर्मल कर देते हैं।  ~ अचित्यानंद वर्णी
 
* यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है।  ~ रूमी
 
 
 
===प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना===
 
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरुजी
 
* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है?  ~ दयाराम
 
* स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
 
 
 
===प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए===
 
* जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए।  ~ शेक्सपियर
 
* बंधन बहुत तरह के हैं, पर प्रेम की डोर से बंध जाना तो कुछ और ही है।  ~ अज्ञात
 
* संसार में स्नेह के बंधनपाश लोहे से भी बढ़कर कठोर होते हैं।  ~ बाणभट्ट
 
* अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है।  ~ माघ
 
* प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए।  ~ कालिदास
 
 
 
===प्रेम का एक कण संसार पर भारी===
 
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है।  ~ नारायण पंडित
 
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है।  ~ मुक्तिकोपनिषद्
 
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है।  ~ फरीदुद्दीन अत्तार
 
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है।  ~ स्वामी विवेकानंद
 
 
 
===प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है===
 
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें।  ~ रहीम
 
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा।  ~ सीगर
 
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं।  ~ गुरु रामदास
 
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है।  ~ शेक्सपियर
 
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे।  ~ अमृतलाल नागर
 
 
 
===प्रेम की शक्ति===
 
* जगत में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता।  ~ विवेकानंद
 
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है।  ~ तुकाराम
 
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय।  ~ बंकिमचंद्र
 
 
 
===प्रेम के बिना पृथ्वी क़ब्र है===
 
* बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे।  ~ अज्ञात
 
* प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी क़ब्र है।  ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
 
* जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं।  ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
 
* जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।)  ~ तुलसी
 
* हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट (कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास)  ~ कोलरिज
 
 
 
===प्रेम से शांत होता है वैर===
 
* संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है।  ~ धम्मपद
 
* तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं।  ~ भर्तृहरि
 
* व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं।  ~ अज्ञात
 
 
 
===प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है===
 
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है।  ~ हालसातवाहन
 
* सुरूप हो या कुरूप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है।  ~ अतिरात्रयाजी
 
* परस्पर न मिलते हुए, दूरस्थित प्राणियों में भी स्नेह देखा जाता है, जैसे सूर्य गगन तल में रहता है, परंतु नीचे पृथ्वी पर कमलिनी विकसित होती है। ~ नयनंदी
 
* प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है।  ~ महात्मा गांधी
 
 
 
===प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तो===
 
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो।  ~ खलील जिब्रान
 
* सीखे गए को भूल जाने पर भी जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है।  ~ स्किनर
 
* सब कुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है।  ~ योग वसिष्ठ
 
* दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है।  ~ विष्णु शर्मा
 
* वह वैभव, जिसका कभी पतन संभव न हो, साधुओं और फ़कीरों का ही है।  ~ हाफिज
 
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को खोज निकालती है। परंतु विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है।  ~ बेकन
 
 
 
===प्रेमी हृदय उदार होता है===
 
* प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं।  ~ प्रेमचंद
 
* जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है।  ~ गांधी
 
* जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है।  ~ वाल्मीकि
 
 
 
===प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है===
 
* प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है।  ~ बाणभट्ट
 
* अतिशय संपन्नता को पाकर भी गर्वरहित लोग किसी को तनिक नहीं भूलते।  ~ माघ
 
* यह स्त्री है, यह पुरुष है- यह निरर्थक बात है। वास्तव में तो सत्पुरुषों का चरित्र ही पूजा योग्य होता है।  ~ कालिदास
 
* सज्जन लोग रत्न पाकर उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने प्रसन्न उस रत्न को किसी निर्लोभ पात्र को देकर होते हैं।  ~ भास
 
* जो धर्माचरण करता है, जीव मात्र के प्रति तितिक्षा रखता है, जो अन्यों से तप्त किए जाने पर भी तप्त नहीं होता, वही मनुष्य श्रेय का पात्र है।  ~ मत्स्यपुराण
 
 
 
===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं===
 
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है।  ~ विमल मित्र
 
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है।  ~ उमाशंकर जोशी
 
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है।  ~ खलील जिब्रान
 
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है।  ~ बंकिमचंद्र
 
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है।  ~ ड्राइडेन
 
 
 
===प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है===
 
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता।  ~ कालिदास
 
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है।  ~ हालसातवाहन
 
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
 
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है।  ~ टामस फुलर
 
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन
 
 
 
===पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है===
 
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा।  ~ नवविधान
 
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो।  ~ तुकाराम
 
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है।  ~ स्वामी विवेकानंद
 
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है।  ~ शेख सादी
 
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ।  ~ एमर्सन
 
 
 
===पहले जैसी स्थिति===
 
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं।  ~ शेख फरीद
 
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है।  ~ लल्लेश्वरी
 
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन: ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते।  ~ लोकोक्ति
 
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है।  ~ एकनाथ
 
 
 
===प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है===
 
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे।  ~ महादेवी वर्मा
 
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है।  ~ एमर्सन
 
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है।  ~ शाह अब्दुल लतीफ
 
* प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है।  ~ बफां
 
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है।  ~ जॉन स्टुअर्ट मिल्स
 
 
 
===प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता===
 
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है।  ~ शाह अब्दुल लतीफ
 
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ अज्ञात
 
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे।  ~ महादेवी वर्मा
 
* प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता।  ~ कार्लाइल
 
 
 
===प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती===
 
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ वल्लभदेव
 
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती। जो परिश्रमी है, वही सब कुछ प्राप्त करता है।  ~ महादेवी वर्मा
 
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
 
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
 
* जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।  ~ मिल्टन
 
 
 
===प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क===
 
* आप दूसरों को तभी ऊपर उठा सकते हैं, जब आप स्वयं भी ऊपर उठ चुके हों।  ~ शिवानंद
 
* दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी फेंक कर आगे बढ़ जाती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
* प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है।  ~ विमल मित्र
 
* मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
 
 
==='प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'===
 
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है।  ~ अलंकारसर्वस्व
 
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं।  ~ भागवत
 
* 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है।  ~ आंगिरसस्मृति
 
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं।  ~ बोधिचर्यावतार
 
 
 
===परोपकार संतों का सहज स्वभाव===
 
* दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते हैं। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर होते रहते हैं।  ~ कालिदास
 
* सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
* परोपकार संतों का सहज स्वभाव है। वे वृक्ष के समान हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं।  ~ एकनाथ
 
* दूध से जला हुआ बालक दही को भी फूंक-फूंककर खाता है।  ~ अज्ञात
 
 
 
===परोपकार से पुण्य होता है===
 
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं।  ~ क्षेमेंद्र
 
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं।  ~ भर्तृहरि
 
* परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप।  ~ पंचतंत्र
 
* वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है।  ~ कालिदास
 
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन।  ~ आचार्य नारायण राम
 
 
 
===परोपकार का आचरण मत त्यागो===
 
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं।  ~ मत्स्य पुराण
 
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेमचंद
 
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
 
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है?  ~ सुप्रभाचार्य
 
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव
 
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है।  ~ भगवतीचरण वर्मा
 
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है।  ~ अश्वघोष
 
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है।  ~ महात्मा गांधी
 
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है।  ~ अज्ञात
 
 
 
===परोपकार ही धर्म है===
 
* परोपकार ही धर्म है, परपीड़न ही पाप।  ~ विवेकानंद
 
* छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है।  ~ वर्जिल
 
* भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते।  ~ रामतीर्थ
 
* दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो।  ~ काजी नजरुल इस्लाम
 
 
 
===परंपरा और विद्रोह===
 
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, परायी बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है।  ~ उड़िया लोकोक्ति
 
* जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
 
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
 
* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है।  ~ रामधारी सिंह दिनकर
 
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी जरूरत पड़ती है।  ~ गेटे
 
 
 
===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है===
 
* परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है।  ~ दिनकर
 
* परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है।  ~ राधाकृष्णन
 
* परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है।  ~ विद्यानिवास मिश्र
 
* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है।  ~ धम्मपद
 
 
 
===पत्नी और पति===
 
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है।  ~ बाल्जाक
 
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा।  ~ मदर टेरेसा
 
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं।  ~ रिचर्ड बाख
 
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं।  ~ ऑस्कर वाइल्ड
 
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है।  ~ हेलन रौलां
 
 
 
===परिवर्तन ही सृष्टि है===
 
* परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है।  ~ महात्मा गांधी
 
* परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद
 
 
 
===पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं===
 
* इस संसार को व्यापार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी है। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता हैं।  ~ विद्यापति
 
* सज्जन लोग स्वाभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं।  ~ बाणभट्ट
 
* मेरी भक्तिपूर्ण खोज ने मुझे 'ईश्वर सत्य है' के प्रचलित मंत्र की बजाय 'सत्य ही ईश्वर है' का अधिक गहरा मंत्र दिया है।  ~ महात्मा गांधी
 
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं। मगर ऐसे लोग तैरना भी नहीं सीखते।  ~ सरदार पटेल
 
 
 
===पूजा हमेशा गुण की होती है===
 
* गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं। ठीक वैसे ही जैसे पूर्ण चंद्रमा उतना वंदनीय नहीं है जितना निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा।  ~ चाणक्य
 
* जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है।  ~ भगवान महावीर
 
* सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं।  ~ अज्ञात
 
 
 
===प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें===
 
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
 
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
 
* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान
 
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
 
 
 
===पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है===
 
* बच्चों का हृदय कोमल थाला है, चाहे इसमें कटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* सद्बुद्धि वाले पुरुष को अल्प सुख एवं अधिक क्लेश वाला कार्य नहीं करना चाहिए।  ~ अचिन्त्यानन्द वर्णी
 
* मरुस्थल की मरीचिका जैसी लक्ष्मी बुद्धिमान को मोहित नहीं कर पाती।  ~ सोमदेव
 
* बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि।  ~ भल्लट भट्ट
 
* पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है।  ~ क्षेमेंद्र
 
 
 
===प्रसन्न देवता सद्बुद्धि देते हैं===
 
* जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है।  ~ वाल्मीकि
 
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, कर्म ही उसे हेय या पूजनीय बनाता है।  ~ चाणक्य
 
* राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं।  ~ अरस्तू
 
* देवता प्रसन्न होने पर कुछ नहीं देते, केवल सद्बुद्धि ही प्रदान करते हैं।  ~ श्री हर्ष
 
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है।  ~ कालिदास
 
 
 
===पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए===
 
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते। न वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों के हाथों ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आंखों से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान बिखेरता है।  ~ खलील जिब्रान
 
* दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं।  ~ एडिसन
 
* यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए।  ~ लाओ-त्से
 
* दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है।  ~ तुकाराम
 
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 
 
 
===पाना है, तो देना सीखो===
 
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल
 
* यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए।  ~ लाओ - त्से
 
 
 
===प्रतीक्षा भी सेवा===
 
* जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।  ~ मिल्टन
 
* काया के पिंजरे चाहे जितने रंगों के हों, पर मन का पंछी तो सबमें एक ही जैसा है।  ~ अमृतलाल नागर
 
* यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता।  ~ दयाराम
 
* जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता।  ~ प्रेमचंद
 
 
 
===पृथ्वी पर तीन चीजें व्यर्थ हैं===
 
* सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है।  ~ बालकृष्ण भट्ट
 
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते।  ~ वाल्मीकि
 
* वैराग्य के बिना कोई भी अपने संपूर्ण अंत:करण को परोपकार के काम में नहीं लगा सकता।  ~ विवेकानंद
 
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं - प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल।  ~ बल्लाल
 
 
 
===पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं===
 
* यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें जरूरत पड़ सकती है, संचित करते हो और जिनकी रखवाली करते हो।  ~ खलील जिब्रान
 
* मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान नहीं बन सकता।  ~ सुभाषचंद बोस
 
* छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं।  ~ नारायण पंडित
 
* कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है।  ~ मारन वेंकटय्या
 
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित। मूर्ख लोग ही पाषाण खंडों को रत्नों का नाम देते हैं।  ~ चाणक्यनीति
 
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है।  ~ महात्मा गांधी
 
 
 
===पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है===
 
* समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।  ~ भास
 
* मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।  ~ प्रेमचंद
 
* दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है।  ~ बाणभट्ट
 
* पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं।  ~ सोमदेव
 
* पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है।  ~ गालिब
 
 
 
===पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें===
 
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते।  ~ उमर खैयाम
 
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।  ~ मनुस्मृति
 
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है।  ~ ओलिवर वेंडल होम्स
 
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
 
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है।  ~ सत्य साईं बाबा
 
 
 
===पीड़ितों की सेवा===
 
* जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे।  ~ गौतम बुद्ध
 
* सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है।  ~ स्वामी शिवानंद
 
* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है।  ~ महात्मा गांधी
 
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती।  ~ विनोबा
 
 
 
===परिचय के पीछे स्वार्थ न हो===
 
* प्रियतम की स्मृति भक्तों का परम धन है जो ज्ञान उन्हें इस धन से वंचित करता हुआ रस शून्य बनाने की प्रेरणा देता है उनकी दृष्टि में वह सर्वथा घातक है।  ~ राम किंकर उपाध्याय
 
* पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है।  ~ महात्मा गांधी
 
* किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है।  ~ अज्ञात
 
 
 
===पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है===
 
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो।  ~ स्वामी रामतीर्थ
 
* जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है।  ~ महात्मा गांधी
 
* पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है।  ~ सुदर्शन
 
 
 
===पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं===
 
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं।  ~ अथर्ववेद
 
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं।  ~ ऋग्वेद
 
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।  ~ मनुस्मृति
 
 
 
===पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य बढ़ता है===
 
* भविष्यवाणी करने का एकमात्र मार्ग भविष्य को ढालने की शक्ति से संपन्न होना है।  ~ ऐरिक हॉफर
 
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ अज्ञात
 
* पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है।  ~ वेदव्यास
 
* धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है।  ~ अलेक्जेंडर पोप
 
 
 
===प्रार्थना===
 
* प्रार्थना तभी प्रार्थना है जब वह अपने आप हृदय से निकलती है।  ~ महात्मा गांधी
 
* दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं।  ~ विनोबा
 
* क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए।  ~ वेदव्यास
 
* गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता।  ~ सिसरो
 
* जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं।  ~ अज्ञात
 
 
 
===प्रार्थना धर्म का निचोड़ है===
 
* प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है।  ~ महात्मा गांधी
 
* मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं।  ~ श्रीमद्भागवत
 
* बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है।  ~ विनोबा
 
 
 
===प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है===
 
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं।  ~ जातक
 
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है।  ~ अज्ञात
 
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
 
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
 
* हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है।  ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
 
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है।  ~ अज्ञात
 
* वही अच्छी प्रार्थना है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है।  ~ कॉलरिज
 
 
 
===प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है===
 
* मन को विषाद ग्रस्त नहीं बनाना चाहिए। विषाद में बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ सांप बालक को काट खाता है, उसी प्रकार विषाद व्यक्ति का नाश कर डालता है।  ~  वाल्मीकि
 
* वृक्ष अपने सिर पर गर्मी सह लेता है लेकिन अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है।  ~ कालिदास
 
* विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे।  ~ सुदर्शन
 
* प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
 
 
===प्रत्येक सत्य, ईश्वरीय सत्य है===
 
* जितेंद्रिय पुरुष के मन में विघ्नकर वस्तुएं थोड़ा भी क्षोभ उत्पन्न नहीं कर सकती हैं।  ~ कालिदास
 
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों न निकला हो, ईश्वरीय सत्य है।  ~ सेंट एम्ब्रोस
 
* दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ हो जाते हैं।  ~ माघ
 
* जो जाति जितनी ही अधिक सौंदर्य प्रेमी है, उसमें मनुष्यता भी उतनी ही अधिक होती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
 
 
===पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है===
 
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है।  ~ चाणक्य
 
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
 
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
 
* जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है।  ~ सेनेका
 
 
 
===परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर===
 
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं।  ~ भतृहरि
 
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है।  ~ कालिदास
 
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है।  ~ भारवि
 
* मनुष्य परिस्थितियों के लिए सृष्टि नहीं है, बल्कि परिस्थितियां मनुष्य के लिए सृष्टि हैं।  ~ डिजरायली
 
* पागल बने बिना कोई महान नहीं हो सकता। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक पागल व्यक्ति महान होता है।  ~ सुभाषचंद्र बोस
 
* उद्यमी व्यक्ति योग्य न हो, तो भी सफलता प्राप्त कर लेता है।  ~ अज्ञात
 
 
 
===पश्चाताप करने पर पाप मिट जाता है===
 
* पापकर्म हो जाने पर जो सच्चे हृदय से पश्चाताप करता है, वह मनुष्य उस पाप से छूट जाता है। क्योंकि वह उसे नहीं दोहराने का निश्चय कर लेता है।  ~ वेदव्यास
 
* मूर्ख किसान का भी बीज अच्छे खेत में पड़ जाए, तो उसे अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है।  ~ विशाखदत्त
 
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे।  ~ मनुस्मृति
 
* निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।  ~ जातक
 
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है।  ~ नारायण पंडित
 
 
 
==फ==
 
===फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा===
 
* इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा।  ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
 
* शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता।  ~ अज्ञात
 
* संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान पाप है।  ~ लोकमान्य तिलक
 
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
 
 
==ब==
 
===बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है===
 
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
 
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
 
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
 
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी
 
 
 
===बुराई के बीज===
 
* बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर, निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य क़ानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा।  ~ स्वामी रामतीर्थ
 
* सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है।  ~ रामचन्द्र शुक्ल
 
* मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है।  ~ विवेकानंद
 
* जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता।  ~ महात्मा गांधी
 
 
 
===बिना विनय के विजय नहीं टिकती===
 
* अपने पिता और अपनी माता का आदर कर और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर।  ~ नवविधान
 
* बिना विनय के विजय नहीं टिकती।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
 
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है।  ~ कालिदास
 
* मधुर वचन बोलने वालों के पास दारिद्रय कभी नहीं फटकता।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या?  ~ भामह
 
 
 
===बिना त्याग के धन की शोभा नहीं===
 
* बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती।  ~ अग्नि पुराण
 
* रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना।  ~ महात्मा गांधी
 
* दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है।  ~ कालिदास
 
* लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को।  ~ इतिवुत्तक
 
* राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली।  ~ रामचंद्र शुक्ल
 
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
 
 
 
===बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है===
 
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना।  ~ वेदव्यास
 
* 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो।  ~ डिजरायली
 
* बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है।  ~ बेकन
 
* शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है।  ~ मनुस्मृति
 
* परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद
 
 
 
===बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत करें===
 
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कहें कि यदि वे मित्र बन जाएं तो आपको लज्जित न होना पड़े।  ~ शेख सादी
 
* कर्णि, नालीक और नाराच नामक बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, पर कटु वचन रूपी बाण नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है।  ~ वेदव्यास
 
* हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।  ~ वाल्मीकि
 
* जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं।  ~ ऋग्वेद
 
 
 
===बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है===
 
* जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संगृहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं- वहां मानो लक्ष्मी स्वयंमेव आई हुई है।  ~ चाणक्यनीति
 
* बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है।  ~ सत्य साईं बाबा
 
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
 
* लोक-निंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य-मार्ग में बाधक है तो उससे डरना कायरता है।  ~ प्रेमचंद
 
* वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल कर अपने मुख से शब्द निकालता है।  ~ महात्मा गांधी
 
 
 
===बुद्धिमान के पास ही बल है===
 
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।  ~ विष्णु शर्मा
 
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले।  ~ विमल मित्र
 
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो।  ~ कार्लाइल
 
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
 
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है।  ~ चाणक्य
 
 
 
===बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक===
 
* मनुष्य को कभी अपना अनादर नहीं करना चाहिए। जो स्वयं अपना अनादर करता है, उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता।  ~ वेदव्यास
 
* जिस प्रकार दीवाल पर फेंकी गेंद अपने ऊपर आ गिरती है उसी प्रकार दूसरे के लिए चाही हुई हानि अपने ऊपर आ पड़ती है।  ~ सोमदेव
 
* भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है।  ~ नारायण पंडित
 
* जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है।  ~ बाणभट्ट
 
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
* मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं।  ~ विलियम ब्लेक
 
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं।  ~ एमर्सन
 
 
 
===बलवान का बल उसकी विनयशीलता===
 
* बलवान का बल उसकी विनयशीलता में है। शत्रुओं को परिवतिर्त करने के लिए बुद्धिमान का शस्त्र यही है।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।  ~ शूद्रक
 
* दयालुता से दयालुता का और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
 
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल।  ~ बल्लाल
 
* समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है।  ~ चाणक्यनीति
 
 
===बेवकूफी से अश्रद्धा अच्छी===
 
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है।  ~ काका कालेकर
 
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हैं।  ~ समर्थ रामदास
 
* मनुष्य की श्रद्धा जितनी तीव्र होती है, उतनी ही अधिक वह मनुष्य की बुद्धि को पैनी और प्रखर बनाती है। जब श्रद्धा अंधी हो जाती है, तब वह मर जाती है।  ~ महात्मा गांधी
 
* मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है।  ~ मिलिंदप्रश्न
 
 
 
===बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं===
 
* कामों में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए, शीघ्रता कार्यविनाशिनी होती है।  ~ अज्ञात
 
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है।  ~ बाणभट्ट
 
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
* बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं। वास्तव में विद्वान वही हैं जो क्रियावान हैं।  ~ नारायण पंडित
 
 
 
==भ==
 
===भलाई का जीवन===
 
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता।  ~ उमर खैयाम
 
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है।  ~ प्रेमचंद
 
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है।  ~ आदिभट्टल नारायण दासु
 
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है।  ~ तिक्कना
 
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है।  ~ पब्लिलियस साइरस
 
 
 
===भलाई करने वाला भलाई सिखाता है===
 
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता।  ~ कालिदास
 
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है।  ~ हालसातवाहन
 
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
 
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है।  ~ टामस फुलर
 
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन
 
 
 
===भलाई करो इसी में कल्याण है===
 
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है।  ~ आदिभट्ल नारायण दासु
 
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है।  ~ तिक्कना
 
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है।  ~ प्रेमचंद
 
* जो मेरे साथ भलाई करता हे वह मुझे भला होना सिखा देता है।  ~ टामस फुलर
 
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता।  ~ उमर खैयाम
 
 
 
===भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं===
 
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं।  ~ बाल्मीकि
 
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है।  ~ हनुमान प्रसाद
 
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा।  ~ रवींद्रनाथ
 
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा।  ~ स्वेट मार्डेन
 
 
 
===भीतर शांति हो तो संसार शांत दिखाई देता है===
 
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है।  ~ योगवाशिष्ट
 
* मनुष्य जिस संगति में रहता है, उसकी छाप उस पर पड़ती है। उसका निज गुण छिप जाता है और वह संगति का गुण प्राप्त कर लेता है।  ~ एकनाथ
 
* संसर्ग से उत्पन्न होने वाले दोष एक के भी होने पर सभी साथियों के हो सकते हैं।  ~ भागवत
 
* जिनके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुखी ही है।  ~ वेदव्यास
 
 
 
===भूखा मनुष्य===
 
* जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं।  ~ तांड्य महाब्राह्मण
 
* केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी विद्वान की सर्वत्र प्रसिद्धि होती है।  ~ महाभारत
 
* संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है।  ~ पंचतंत्र
 
* अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए।  ~ चाणक्यनीति
 
* भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर सकता?  ~ हितोपदेश
 
 
 
===भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं===
 
* भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं। बुद्धिमान तो पुरुषार्थ के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं।  ~ योगवासिष्ठ
 
* मेधावी पुरुष, थोड़ी सी भी आग को फूंक मार कर बढ़ा लेने की भांति, थोड़े से मूल धन से अपने को उन्नत कर लेता है।  ~ जातक
 
* अपने उपाय से ही उपकारी का उपाय करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता।  ~ श्रीहर्ष
 
* प्राणी अकेले जन्म लेता है और अकेले मरता है। वह अकेले ही पुण्य और पाप का फल भोगता है।  ~ भागवत
 
* ठीक समय पर प्रारंभ की गई नीतियां अवश्य ही फल प्रदान करती हैं।  ~ कालिदास
 
 
 
===भाग्य साथ है तो थोड़ा पुरुषार्थ भी सफल===
 
* भय से तब तक डरना चाहिए जब तक भय नहीं आया। भय उत्पन्न हो जाने पर निर्भीक के समान रहना चाहिए।  ~ शौनकीयनीतिसार
 
* भाग्य की कल्पना मूढ़ लो ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं।  ~ योगवशिष्ठ
 
* जैसे बीज खेत में बोए बिना निष्फल रहता है, उसी तरह पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता।  ~ वेदव्यास
 
* जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा पुरुषार्थ भी सफल हो जाता है।  ~ शुक्रनीति
 
 
 
===भविष्य को वर्तमान ही ख़रीदता है===
 
* जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए।  ~ हरिकृष्ण प्रेमी
 
* हम ऐसा मानने की गलती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* भविष्य को वर्तमान ही ख़रीदता है।  ~ जॉनसन
 
* दूसरे को चुप करने के लिए पहले खुद चुप हो जाओ।  ~ सेनेका
 
* प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, मोह प्रतिदान चाहता है।  ~ अश्विनी कुमार दत्त
 
 
 
===भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां?===
 
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।  ~ विवेकानंद
 
* भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां?  ~ माघ
 
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं।  ~ खलील जिब्रान
 
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता।  ~ नारायण पंडित
 
* न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है।  ~ चाणक्य नीति
 
 
 
===भूतकाल स्वप्न और भविष्यकाल अनुमान===
 
* जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में समभाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है।  ~ वेदव्यास
 
* जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है।  ~ आचारांग
 
* भूतकाल स्वप्न है और भविष्य काल अनुमान है और वह समय जो वर्तमान है, उसे गनीमत समझ।  ~ फारसी लोकोक्ति
 
* सभ्यताओं का जन्म असाधारण रूप से कठिन परिवेशों में होता है, न कि असाधारण रूप से सरल परिवेशों में।  ~ आर्नोल्ड टायनबी
 
* दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है।  ~ विसुद्धिमग्ग
 
 
 
===भगवान तुम्हारे सामने है===
 
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है।  ~ विनोबा
 
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है।  ~ हनुमान प्रसाद
 
* भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा।  ~ सत्य साईं बाबा
 
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा।  ~ रवींद्र
 
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है।  ~ इमर्सन
 
 
 
==म==
 
===मनुष्य की चाहत===
 
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं।  ~ भारवि
 
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है।  ~ शरतचंद्र
 
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है।  ~ विनाबा भावे
 
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है।  ~ वृंद
 
 
 
===मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर===
 
* ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है।  ~ भर्तृहरि
 
* प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की।  ~ प्रेमचंद
 
* मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है।  ~ विवेकानंद
 
* मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है।  ~ वेदव्यास
 
 
 
===मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे===
 
* कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती।  ~ भवभूति
 
* ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है।  ~ शेक्सपियर
 
* प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है।  ~ महात्मा गांधी
 
* मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे।  ~ मारकस आंटोनियस
 
* जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है।  ~ अज्ञेय
 
 
 
===मनुष्य अकेला आता है===
 
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं।  ~ मत्स्य पुराण
 
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है?  ~ सुप्रभाचार्य
 
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव
 
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
 
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेम चंद
 
 
 
===मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है===
 
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।  ~ वेदव्यास
 
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है।  ~ वाल्मीकि
 
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
 
 
 
===मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं===
 
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
 
* मेरी सम्मति में इंसान 3 प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान
 
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
 
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है।  ~ भागवत
 
 
 
===मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता===
 
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि
 
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं।  ~ मिल्टन
 
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं।  ~ मज्झिम निकाय
 
* किसी के धन का लालच मत करो।  ~ ईशावास्योपनिषद्
 
 
 
===मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए===
 
* जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं।  ~ वेमना
 
* धन तो असमय के मेघ के समान अकस्मात आता है और चला जाता है।  ~ सोमदेव
 
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
 
* यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?  ~ कालिदास
 
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
 
* जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है।  ~ पानुगंटि
 
 
 
===मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है===
 
* पार्थिव सुख ही एक मात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद
 
* निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं।  ~ वेदव्यास
 
* दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में, दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है।  ~ विसुद्धिमग्ग
 
* मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
 
 
 
===मनुष्य केवल रोटी से जीवित नहीं रहता===
 
* मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न हुआ है, उसका अनुसरण करने के लिए नहीं।  ~ विवेकानंद
 
* मनुष्य केवल रोटी से जीवित नहीं रहता, अपितु विश्वास, प्रशंसा व सहानुभूति से जीता है।  ~ एमर्सन
 
* उचित पाबंदी को निभाकर चलना उतना ही कल्याणकारी है, जितना अनुचित पाबंदी को तोड़कर चलना।  ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
 
* धूल अपमानित की जाती है किंतु बदले में वह अपने फूलों की ही भेंट देती है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
 
 
 
===मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती===
 
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती।  ~ गुरु नानक
 
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है।  ~ टेनिसन
 
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।  ~ सोमदेव
 
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है।  ~ भागवत
 
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
 
 
 
===मन से सत्य शुद्ध होता है===
 
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।  ~ मनुस्मृति
 
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं।  ~ मज्झिमनिकाय
 
* शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए।  ~ शौनकीयनीतिसार
 
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता हे और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेदव्यास
 
 
 
===मन को शुभ संकल्प बनाओ===
 
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं।  ~ भागवत
 
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है।  ~ अलंकारसर्वस्व
 
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि।  ~ अज्ञात
 
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो।  ~ ऋगवेद
 
 
 
===मान-बड़ाई मीठी छुरी है===
 
* प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए।  ~ एडमंड बर्क
 
* देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता।  ~ ऋग्वेद
 
* तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
 
* ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो।  ~ गुरुनानक
 
* मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है।  ~ शिव
 
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है।  ~ उडि़या लोकोक्ति
 
 
 
===मुहब्बत रूह की खुराक===
 
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है।  ~ प्रेमचंद
 
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है।  ~ महात्मा गांधी
 
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं।  ~ रामचंद शुक्ल
 
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है।  ~ ठाकुर गोपालशरण सिंह
 
 
 
===महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें===
 
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है।  ~ महात्मा गांधी
 
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है।  ~ अज्ञात
 
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए।  ~ भागवत
 
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है।  ~ बाण
 
 
 
===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके===
 
* जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती।  ~ चाणक्य
 
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं।  ~ विष्णु शर्मा
 
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती।  ~ इत्तिवृत्तक
 
* मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं।  ~ गुरुदत्त
 
 
 
===महानता जिस क्षुद्रता में पलती है===
 
* महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* महानता जिस क्षुद्रता में पलती है, वह क्षुद्रता कभी महानता को समझती नहीं।  ~ रांगेय राघव
 
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना काम करना ही चाहिए।  ~ अपभ्रंश से
 
* ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा-सा काम भी बहुत उपकारी है और समय बीतने पर किया हुआ महान उपकार भी व्यर्थ हो जाता है।  ~ योगवशिष्ठ
 
 
 
===मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं===
 
* निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है।  ~ सोमदेव
 
* परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है।  ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
 
* जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है।  ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
 
 
 
===मनोरम बात दुर्लभ होती है===
 
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें।  ~ ऋग्वेद
 
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है।  ~ भारवि
 
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
 
* शील ही विद्वानों का धन है।  ~ सोमदेव
 
* खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
 
 
 
===माया नहीं मरती===
 
* अच्छी संतान इस लोक और परलोक, दोनों में सुख देती है।  ~ कालिदास
 
* मेरे मन के संकल्प पूर्ण हों। मेरी वाणी सत्य व्यवहार वाली हो।  ~ यजुर्वेद
 
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है।  ~ गांधी
 
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है।  ~ गेटे
 
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती।  ~ गुरु नानक
 
 
 
===मित्र और शत्रु तो बनाने से बनते हैं===
 
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते रहते हैं।  ~ नारायण पंडित
 
* यदि मैं अपनी चिंता न करूं, तो और कौन करेगा? किंतु यदि मैं केवल अपनी ही चिंता करूं तो मेरा अस्तित्व ही किसलिए है?  ~ मैक्सिम गोर्की
 
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में डोंगी की भांति डूब जाता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
 
* प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है।  ~ विमल मित्र
 
 
 
===मिल गया उस पर संतोष करो===
 
* संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सदा सुखमयी हैं, जैसे जूता पहनने वाले के लिए कंकड़ और कांटे आदि से दुख नहीं होता।  ~ भागवत
 
* जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है।  ~ हाफिज
 
* जिसमें न दंभ है, न अभिमान है, न लोभ है, न स्वार्थ है, न तृष्णा है और जो क्रोध से रहित तथा प्रशांत है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, और वही भिक्षु है।  ~ उदान
 
 
 
===मेरा मुकुट मेरे हृदय में है===
 
* दिन बीत जाने पर रात्रि की प्रतीक्षा की जाती है। कुशलपूर्वक प्रभात होने पर फिर दिन की चिंता होती है। भविष्य के अनिष्टों की चिंता करने वालों को शांति तो बीते समय का स्मरण करके ही मिलती है।  ~ भास
 
* राजन, यद्यपि कहीं-कहीं शीलहीन मनुष्य भी राज्य लक्ष्मी प्राप्त कर लेते हैं, तथापि वे चिरकाल तक उसका उपभोग नहीं कर पाते और मूल सहित नष्ट हो जाते हैं।  ~ वेदव्यास
 
* इस संसार में दो तरह के व्यक्ति दुर्लभ हैं, कौन से दो? उपकारी और कृतज्ञ।  ~ अंगुत्तरनिकाय
 
* मेरा मुकुट मेरे हृदय में है, न कि मेरे सिर पर। मेरा मुकुट न तो हीरों से जटित है और न ही रत्नों से। मेरा मुकुट दिखाई भी नहीं देता है। मेरे मुकुट का नाम है 'संतोष' और राजा लोग कदाचित ही इसे धारण करते हैं।  ~ शेक्सपियर
 
* देखादेखी करत सब, नाहिंन तत्व बिचारि। याकौ यह अनुमान है, भेड़ चाल संसार।।  ~ वृन्द
 
 
 
===मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है===
 
* भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
 
* उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।  ~ भट्टनारायण
 
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
 
* पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो।  ~ यूरोपिडीज
 
* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
 
 
===मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है===
 
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है।  ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
 
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
 
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो।  ~ शेख सादी
 
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।  ~ नवविधान
 
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं।  ~ भारवि
 
 
 
===मुक्ति शून्यता में नहीं, पूर्णता में है===
 
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो।  ~ तिरुवल्लुवर
 
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है।  ~ वेदव्यास
 
* पहले स्वयं पुरुषार्थ करना चाहिए, भगवान भी तभी मददगार होते हैं।  ~ यूरीपिडीज़
 
* मुक्ति शून्यता में नहीं, पूर्णता में है। पूर्णता सृष्टि करती है, ध्वंस नहीं।  ~ रवीन्द्रनाथ टैगोर
 
 
 
===मोह, लोभ का मूल है===
 
* मोह, लोभ का मूल है। लोभ, द्वेष का मूल है, और द्वेष पाप का मूल है।  ~ मज्झिम निकाय
 
* जिस विचार का सही समय आ जाता है, उसकी ताकत के आगे कोई सेना नहीं ठहर सकती।  ~ विक्टर ह्यूगो
 
* लोगों की धर्म तथा अधर्म की प्रवृत्ति में कारण राजा ही होता है।  ~ शुक्रनीति
 
* समय रूपी अमृत बहता जा रहा है, संभव है प्यास बुझाने का अवसर तुम्हें फिर न मिले।  ~ शंकर कुरुप
 
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है।  ~ भगिनी निवेदिता
 
 
 
===मोह प्रतिदान चाहता है===
 
* प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, मोह प्रतिदान चाहता है।  ~ अश्विनी कुमार दत्त
 
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो।  ~ महात्मा गांधी
 
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है।  ~ अज्ञात
 
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेद व्यास
 
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है।  ~ मुक्तिकोपनिषद
 
 
 
===मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है===
 
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
 
* वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है।  ~ कालरिज
 
* जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ न करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है।  ~ भवभूति
 
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।  ~ भास
 
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन नहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के हृदय प्रभावित नहीं कर सकते।  ~ गेटे
 
* प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं करता।  ~ जयशंकर प्रसाद
 
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।  ~ भास
 
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
 
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ- पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
 
 
 
  
 
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<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
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१०:५२, ११ फ़रवरी २०२१ के समय का अवतरण

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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 9, अनमोल वचन 10, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत

अनमोल वचन

जन के ऊपर कुछ नहीं

  • अत्याचारी के न्याय विवेक पर भरोसा करना राजनीति के विरुद्ध है। इतिहास इसका ज्वलंत प्रमाण है। ~ हिंदू पंच, बलिदान अंक
  • पापी की परिभाषा व्यक्ति के आचरण पर निर्भर करती है। अत्याचार करने वाले से सहने वाला अधिक पापी है। ~ कंचनलता सब्बरवाल
  • अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिन्हें वीरों को स्वीकार करना ही चाहिए। ~ श्रीराम शर्मा आचार्य
  • प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। ~ भगवतीचरण वर्मा

जागरण का अर्थ

  • जागरण का अर्थ है कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण होना और कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन का संग्राम। ~ जयशंकर प्रसाद
  • जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। ~ महात्मा गांधी
  • दु:ख में अपने स्वजनों को देखते ही दु:ख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए। ~ कालिदास

जहां धर्म है वहां जय है

  • विजयाभिलाषी जब तक जीवित रहता है तब तक बुद्धिमानों के उपदेश का पात्र होता है। ~ भट्टनारायण
  • जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। ~ वेदव्यास
  • धर्म का दान हमारे सारे दानों को जीत लेता है। धर्म रस सारे रसों को जीत लेता है। धर्म में प्रेम सारे प्रेमों को जीत लेता है। ~ धम्मपद
  • जिसमें यह चार परम श्रेष्ठ गुण नहीं हैं- सत्य, धर्म, धृति और त्याग, वह शत्रु को नहीं जीत सकता। ~ जातक
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

जहां स्वार्थ, वहां प्रेम नहीं

  • प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अचल निष्ठा ही महान् कामों की जननी है। ~ विवेकानंद
  • मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद्र बोस
  • स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त

जहां विनय है, वहां भय नहीं

  • जितना दिखाते हो, उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। ~ शेक्सपियर
  • नम्रता अगर किसी में स्वाभाविक न हो तो चिर आयु पाने पर भी वह नम्र नहीं हो सकता। ~ मुतनव्बी
  • जहां विनय है, वहां भय नहीं है। ~ कन्नड़ लोकोक्ति
  • अहंकार ने देवदूतों को शैतान में बदल दिया जबकि नम्रता मनुष्यों को देवदूत बनाती है। ~ सेंट ऑगस्टीन
  • जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ तत्वकथा
  • नम्रता एवं मधुर वचन ही मनुष्य के असली आभूषण हैं। ~ तिरुवल्लुवर
  • हम महान् व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं, जब हम नम्रता में महान् होते हैं। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता। ~ विनोबा

जिसके पास अपनी शक्ति नहीं, उसे भगवान

  • जिसके पास अपनी शक्ति नहीं, उसे भगवान भी शक्ति नहीं दे सकता। शक्ति आत्मा के अंदर से आती है, बाहर से नहीं। जो बाहर की शक्ति पर भरोसा करता है, वह अपने लिए काले दिनो को पुकारता है। ~ सुदर्शन
  • शक्ति का उपयोग परोपकार मेें करना चाहिए। शत्रु को पीडि़त कर देना मात्र ही शक्ति का सदुपयोग नहीं है। ~ अज्ञात
  • अपनी शक्ति को प्रकट न करने से शक्तिशाली पुरुष भी अपमान सहन करता है। काठ के भीतर रहने वाली आग को लोग आसानी से लांघ जाते हैं, किंतु जलती हुई अग्नि को नहीं। ~ पंचतंत्र
  • प्रतिबंधरहित शक्ति की भूख उपयोग से बढ़ती है। ~ जवाहरलाल नेहरू

जिसके पास भगवद्-भक्ति, वही धनी

  • जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है- वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है। ~ सुभाषचंद वसु
  • अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। ~ वेदव्यास
  • बिना दंभ के जो किया जाता है, वही धर्म है। ~ गरुड़पुराण
  • यदि धर्म लोक के विरुद्ध हो तो वह सुखकारी नहीं हो सकता। ~ देवीभागवत
  • भिक्षुओं! बेड़े की भांति पार जाने के लिए तुम्हें धर्म का उपदेश किया है, पकड़ कर रखने के लिए नहीं। ~ मज्झिमनिकाय

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है

  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन:-पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास
  • आकाश, पृथ्वी, दिशाएं, जल, तेज और काल- ये जिनके रूप हैं, उस महेश्वर को नमस्कार है। ~ शिवपुराण
  • जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। ~ विष्णु शर्मा
  • जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। ~ कार्लाइल
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स

जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता

  • जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। ~ रैदास
  • सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
  • जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। ~ विनोबा

जिसके सत्य विचार हैं, वे सत्यपुरुष हैं

  • सज्जन लोग स्वभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं। ~ बाणभट्ट
  • गुण का सच्चा मानदण्ड मन में स्थित है। जिसके सत्य विचार हैं, वे सत्यपुरुष हैं। ~ आइजक बिकरस्टाफ
  • जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं है। ~ वेदव्यास
  • सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। ~ सुत्तनिपात
  • सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा। ~ अश्वघोष

जिसका मन जिससे लग गया

  • प्रशंसा ऐसा विष है जिसे अल्प मात्रा में ही ग्रहण किया जा सकता है। ~ बालजाक
  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र

जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं

  • मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली- भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बड़कर संसार में कुछ भी नहीं है। ~ वेदव्यास
  • जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दु:ख देखा है, न सुख- वह संतुष्ट कहा जाता है। ~ महोपनिषद
  • जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं। ~ अज्ञात
  • संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता। ~ सुकरात

जिसने अपने आप को वश मे कर लिया

  • जिसने अपने आप को वश मे कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार मे नहीं बदल सकते। ~ महात्मा बुद्ध
  • आत्म विश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्म विश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद
  • जब मनुष्य स्वयं आत्मविश्वास खो बैठता है तो उसके पतन का सिरा खोजने से भी नहीं मिल पाता। ~ अज्ञात

जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे

  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • निकृष्ट व्यक्ति बाधाओं के डर से काम शुरू ही नहीं करते, मध्यम प्रकृति वाले कार्य का प्रारंभ तो कर देते हैं किंतु विघ्न उपस्थित होने पर उसे छोड़ देते हैं। इसके विपरीत, उत्तम प्रकृति के व्यक्ति बार-बार विघ्नों के आने पर भी काम को एक बार शुरू कर देने के बाद फिर उसे नहीं छोड़ते। ~ भर्तृहरि
  • जो मनुष्य तौल कर बातें नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। ~ सादी

जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह

  • जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है। ~ वेदव्यास
  • क्रोध और ग्लानि से सद्भावनाएं विकृत हो जाती हैं। जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल वस्तु को दूषित कर देती है। ~ प्रेमचंद
  • जब क्रोध नम्रता का रूप धारण कर लेता है, तो अभिमान भी सिर झुका लेता है। ~ सुदर्शन
  • क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दु:ख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी। ~ अज्ञात

जो शांति से सहन करता है, वही आहत होता है

  • ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। ~ विष्णुधर्मोत्तर पुराण
  • जो शांत भाव से सहन करता है, वही गंभीर रूप से आहत होता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दो व्यक्तियों के एक चित्त होने पर कोई कार्य असाध्य नहीं होता। ~ सोमदेव
  • यदि तुम में सहनशक्ति हो तो तुम्हें किसी बात की कमी नहीं होगी। ~ आदिभट्टल नारायणदासु
  • सहयोग प्रेम की सामान्य अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ~ रामतीर्थ

जो दूसरों का दोष सामने लाता है

  • दयालुता से दयालुता और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • जिस बात से एक की प्रशंसा होती है, उसी बात से दूसरा निंदित होता है। ~ जातक
  • वह जो दूसरों का दोष तेरे सामने लाता है, निश्चय ही तेरे दोष भी दूसरों के सामने ले जाएगा। ~ शेख सादी
  • संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है। ~ सत्य साईं बाबा
  • यदि तुम जगत् का उपकार करना चाहते हो तो जगत् पर दोषारोपण करना छोड़ दो, उसे और भी दुर्बल मत करो। ~ विवेकानन्द

जो लूटे जाने पर भी मुस्कुराता है

  • जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी
  • सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद
  • जो लूटे जाने पर भी मुस्कुराता है, वह चोर का कुछ चुरा लेता है। ~ शेक्सपियर
  • बुद्धिमान को स्वेच्छा से सही मार्ग पर चलना चाहिए। विवश होकर किसी बात को मानना मोहग्रस्त मूढ़ लोगों का काम है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

जवान और बूढ़े में फ़र्क़

  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स
  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर

जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है

  • जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। ~ प्रेमचंद
  • पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
  • साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्ती बिखेरने वाली हँसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। ~ रामचरण महेंद्र
  • साफ़ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। ~ नारायण पंडित
  • सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। ~ जेम्स एलेन

जीवन को सुंदर बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है

  • जीवन को सुंदर बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। ~ साने गुरुजी
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन, यह एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति
  • जीव के दो स्वभाव हैं- अपना-पराया। स्व और पर दोनों में भी जीव के अस्तित्व होने के कारण दूसरों के प्रति बुरी बात करना अनुचित है। ~ पानुगंटि
  • कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं। ~ प्रेमचंद
  • जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। ~ वाल्मीकि
  • वीरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवाह नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं। ~ प्रेमचंद
  • बिना विवेक के वीरता महासमुद्र की लहर में डोंगी सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र

जीवन अनंत है

  • जीवन अनंत है और मनुष्य की सार्मथ्य भी अनंत है। ~ यशपाल
  • अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दु:ख कोई नहीं है। ~ दांते
  • संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलन
  • पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं। ~ अज्ञात
  • जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। ~ अश्वघोष

जीवन विकास का सिद्धांत है

  • जीवन का रहस्य भोग में नहीं, अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है। ~ स्वामी विवेकानंद
  • जीवन विकास का सिद्धांत है, स्थिर रहने का नहीं। निरंतर विकसित होना स्थिर अवस्था में बने रहने की इजाजत नहीं देता। ~ जवाहरलाल नेहरू
  • जीवन एक प्रयोगशाला के समान है जिसमें मनुष्य निरंतर प्रयोग करता रहता है। ~ अज्ञात
  • जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद

जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश

  • यह सच है और सभी जानते हैं कि जैसे बुढ़ापे में बुद्धिमानी होती है, वैसे ही जवानी में नासमझी की काफ़ी गुंजाइश रहती है। ~ रमण
  • जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है। ~ प्रेमचन्द
  • यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। ~ अज्ञात
  • नदी की बाढ़, वृक्षों के फूल, चंद्रमा की कलाएं नष्ट होकर फिर से आ सकती हैं, लेकिन जवानी लौटकर नहीं आती। ~ रामानंद

जन्म से मुक्ति

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है क्योंकि वह ग़लती कर सकता है, और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद

जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। ~ रामकृष्ण परमहंस
  • आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। ~ चाणक्य
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात

जिसे तू मारना चाहता है

  • मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है। ~ महात्मा गांधी
  • उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं। ~ विष्णु शर्मा
  • व्यक्ति के अंतर्मन को परखना चाहिए। ~ दशवैकालिक
  • हंसमुख और बुद्धिमान चेहरा ही संस्कृति का लक्ष्य है। ~ एमर्सन
  • जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह भी तू ही है। ~ आचारांग

जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह

  • जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह यदि पहले सामाजिक उन्नति नहीं कर लेगा तो राजनीतिक उन्नति आकाश में महल बनाने जैसी होगी। ~ महात्मा गांधी
  • यदि राजसत्ता अत्याचारी हो तो किसान का सीधा उत्तर है- जा, जा, तेरे ऐसे कितने राज मैंने मिट्टी में मिलते देखे हैं। ~ सरदार पटेल
  • राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ जय प्रकाश नारायण
  • जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है। ~ वाल्मीकि

जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा जीवन भी होगा।

  • जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा। ~ श्रीमां
  • बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है। ~ सत्य साईं बाबा
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा और धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष
  • लघुता में प्रभुता निवास करती है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता। ~ दयाराम

जैसा लक्ष्य, वैसा ही जीवन

  • जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा। ~ श्रीमां
  • विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं। ~ अज्ञात
  • लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है। ~ वेदव्यास
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष

जैसे सभ्य मेहमान उठ कर जाता

  • रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज़्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज़ वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो
  • रिटायरमेंट के वक्त मैं ठीक उसी तरह जाना चाहूंगा जैसे किसी पार्टी से कोई सभ्य मेहमान उठ कर जाता है। ~ लियोंटाइन प्राइस
  • यकीन करें कि बुढ़ापा उम्र का सबसे शानदार दौर होता है। भले ही आप उस वक्त अपनी ज़िम्मेदारियों से निबट चुके होते हैं, पर तब आप फ्रंट सीट पर बैठकर उन कामों के नतीजे का मजा ले सकते हैं जो आपने सक्रिय होते हुए किए थे। ~ जेन एलेन हैरिसन
  • रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न
  • अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी ज़िंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन

जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं

  • पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। ~ चाणक्यनीति
  • न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका
  • जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि
  • अर्थ से ही अर्थ उसी प्रकार प्राप्त किया जाता है जिस प्रकार हाथी से हाथी प्राप्त किएजाते हैं। ~ कौटिल्य

जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती

  • माता के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी माँ को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। ~ वेद व्यास
  • कभी यह न सोचना कि तुम प्रेम का पथ निर्धारित कर सकते हो। क्योंकि प्रेम यदि तुमको उसका अधिकारी समझता है, तो तुम्हारी राह वह स्वयं निर्धारित करता है। ~ खलील जिब्रान
  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स ऐंथनी फ्राउड

जंगली पशु मनोरंजन के लिए हत्या नहीं करते

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड

जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है

  • वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुर
  • वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति
  • जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
  • विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफ़ी है। ~ महात्मा गांधी
  • किसी कार्य को संपन्न करने के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • अपने सम्मान, सत्य और मनुष्यता के लिए प्राण देने वाला वास्तविक विजेता होता है। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें। ~ दशवैकालिक

ज़्यादा कीमत नहीं तो कोई भी तजुर्बा अच्छा

  • सज्जनों का लक्षण यह है कि वे सदा दया करने वाले और करुणाशील होते हैं। ~ विनोबा भावे
  • किसी का रुपया वापस किया जा सकता है लेकिन सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण हैं, जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। ~ सुदर्शन
  • कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज़्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत
  • सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है। ~ रामकुमार वर्मा

झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है

  • यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। ~ राउपाख
  • सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। ~ हाफिज
  • झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। ~ विमल मित्र
  • स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। ~ अश्वघोष
  • यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो। ~ शेक्सपियर
  • जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है। ~ विनोबा भावे
  • तू ने स्वर्ग औरनरकनहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। ~ अज्ञात

झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने

  • झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने वाला होता है। ~ बंकिम चंद्र
  • संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर
  • लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है। ~ वाल्मीकि
  • जहां लुटेरो के चंगुल मे फंस जाने पर झूठी शपथ खाने से छुटकारा मिलता हो, वहां झूठ बोलना ही ठीक है। ऐसे मे उसे ही सत्य समझना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • झूठ बोलने वाला कभी भी श्रेष्ठ पद को नहीं पा सकता। ~ उपनिषद

झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन

  • पूर्ण मनुष्य वही है, जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी
  • प्रार्थी व्यक्ति को लक्ष्मी मिले या न मिले, किन्तु लक्ष्मी जिसे चाहे वह लक्ष्मी के लिए कैसे दुर्लभ हो सकता है। ~ कालिदास
  • मनुष्य को अपनी करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है। ~ सोमेन दत्त
  • झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है। ~ बेन जॉनसन
  • जड़ कट जाने पर वृक्ष का पालन भला कैसे हो सकता है। ~ शूद्रक

झुककर चलने वाला

  • राग मिलाने वाली वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
  • वृद्ध व्यक्ति जो झुककर चलता है, वह धरती में क्या खोजता चलता है? उसका जो यौवन रूपी रत्न खो गया है, उसे ही खोजता है कि शायद कहीं पर गिरा हुआ हो। ~ जायसी
  • काम करने वाला मरने से कुछ घंटे पूर्व ही वृद्ध होता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
  • राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। ~ वेदव्यास

झुकने वाले के सामने झुकें

  • झुकने वाले के सामने झुकें। संगति करने वाले के साथ संगति करें। ~ जातक
  • उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य अग्निवर्षी नहीं हो जाता। ~ अज्ञात
  • कोमल शब्द कठोर तर्क होते हैं। ~ टामस फुलर
  • दही में जितना दूध डालिए, वह दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • थोड़े से निर्दोष शब्दों में कहना जो नहीं जानते, वे ही अनेक शब्दों को कहने के इच्छुक होते हैं। ~ तिरुवल्लुवर
  • जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। ~ साने गुरुजी

डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है

  • डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। ~ प्रेमचंद
  • डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। ~ विनोबा भावे
  • तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। ~ चाणक्य

डॉक्टर आशावादी होते हैं

  • डॉक्टर असंख्य ग़लतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर
  • डॉक्टर ज़्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फ़र्क़ यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
  • डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
  • बीमारी से भी कहीं ज़्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत

डरा हुआ व्यक्ति

  • खुद डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्तक। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु खेल और मनोरंजन के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड

तीन प्रकार के इंसान

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह ग़लती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास

तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है

  • सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है। ~ अज्ञात
  • तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है। ~ शिव
  • संवेदनशील बनो पर निर्मल भी। प्रेमी बनो पर पवित्र भी। ~ बायरन
  • अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
  • ईश्वर को सिर झुकाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक

तृष्णा संतोष की बैरिन है

  • तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है। ~ सुदर्शन
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। ~ वेदव्यास
  • जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
  • त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है। ~ प्लूटार्क

तुम आगे बढ़े चलो

  • फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। ~ प्रेमचंद्र
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं, तब आयु रूपी नदी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर

तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम

  • अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • तपस्या धर्म का पहला और आखिरी क़दम है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
  • ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत् तृण है। ~ चाणक्य

ताकि दरवाज़े खुले मिलें

  • जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उड़िया लोकोक्ति

त्याग का सच्चा अर्थ

  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है? और जो इच्छा का बंधुआ है उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्यागी जहां रहे वही वन और वही भवन कंदरा है। ~ महाभारत
  • त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है। ~ विनोबा भावे
  • जिस देश में मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का लाभ भी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
  • जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है। ~ महात्मा गांधी

दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो

  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। ~ डेल कारनेगी
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। ~ रस्किन
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। ~ बाइबिल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। ~ कार्लाइल

दूसरों का भरोसा मत करो

  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। ~ अज्ञात
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। ~ महात्मा गांधी

दूसरों की महानता को गौरव देनी ही असली महानता है

  • विवाद और असहमति किसी भी क्रियाशील समाज की प्राणशक्ति हैं। ~ ह्युबर्ट हम्फ्री
  • स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद
  • दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन
  • धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में महान् धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव

दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है

  • कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट

दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो

  • दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो। ~ चाणक्य
  • जो महान् है, वह महान् पर ही वीरता दिखाता है। ~ नारायण पंडित
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
  • अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होते हैं। मुंह में रखकर चूसने के लिए नहीं। ~ वक्रमुख

दो प्रकार के सच

  • सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। ~ रामतीर्थ
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। ~ खलील जिब्रान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। ~ नवविधान

दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं

  • जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता। ~ वेदव्यास
  • मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माइल इबन् अबीबकर
  • वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
  • दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना। ~ शेख सादी

दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प

  • दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है। ~ माघ
  • जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख दु:ख परिणाम में मिलता है। ~ अज्ञात
  • दु:ख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
  • इस संसार में दु:ख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योगवाशिष्ठ
  • पार्थिव सुख ही एकमात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए, दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है। ~ शरतचंद

दुख में मिलते हैं ईश्वर

  • दु:ख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। ~ वेदव्यास
  • धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है। ~ तुलसीदास
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दु:ख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दु:ख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दु:ख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत

दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं

  • तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक क़दम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं। ~ खलील जिब्रान
  • दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है। ~ दिनकर
  • अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन

दुख का दर्शन

  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दु:ख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। ~ भानुदत्त
  • दु:ख स्वयं ही एक औषधि है। ~ विलियम कोपर
  • तुम्हारा दु:ख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। ~ खलील जिब्रान
  • दु:ख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दु:ख से दुखित न होने वाले उस दु:ख को ही दुखद कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर

दुख के भीतर मुक्ति है

  • ज़रूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
  • जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात
  • सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब
  • सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली
  • नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं। ~ भारवि

दुख या सुख सदा नहीं रहते

  • दु:ख या सुख किसी पर सदा नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभ नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
  • प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है। ~ आचारांग
  • सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दु:ख छीर्घकालिक। ~ बाणभट्ट
  • सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य को चाहिए कि वह दु:ख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े। ~ जातक

दुखी के प्रति करुणा

  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चित्त वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब है। ~ महोपनिषद
  • समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है। ~ गुरुजाडा अप्पाराव
  • एक पंथ बनाते ही तुम विश्वबंधुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबंधुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनका कर्म बोलता है। ~ विवेकानंद

दैव का भरोसा, कौन करता है

  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योगवासिष्ठ
  • पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। ~ वेदव्यास
  • भाग्य, पुरुषार्थ और काल तीनों संयुक्त हाकर मनुष्य को फल देते हैं। ~ मत्स्यपुराण
  • जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है। ~ शुक्रनीति

दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है

  • श्रद्धा उसी को मिलती है जो हृदय के गोत्र का होता है। ~ विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • दूध का आश्रय लेनेवाला पानी दूध हो जाता है। ~ चाणक्यसूत्राणि
  • दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न। ~ अरविन्द

दुनिया में दो ही ताकतें हैं

  • कलाकार अपनी प्रवृत्तियों से भी विशाल है। उसकी भाव-राशि अथाह होती है। ~ मैक्सिम गोर्की
  • कला विचार को मूर्ति में परिणित करती है। ~ एमर्सन
  • संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुसरण है। ~ सेनेका
  • मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है। ~ रस्किन
  • सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। ~ माइकल एंजिलो
  • दुनिया में दो ही ताकतें हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है। ~ नेपोलियन
  • कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है। ~ एमिल जोला

दीर्घायु होना सब चाहते हैं

  • सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दु:ख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात

दानशीलता हृदय का गुण है

  • दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन
  • दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं। ~ स्थानांग
  • दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। ~ जातक
  • प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। ~ विमानवत्थु

दान देकर उसकी चर्चा न करें

  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा
  • मूर्ख किसान का भी बीज अच्छे खेत में पड़ जाए, तो उसे अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है। ~ विशाखदत्त
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें। ~ मनुस्मृति
  • निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है। ~ जातक
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

दिन को प्रेम से प्रारंभ करो

  • सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है। ~ विवेकानंद
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद
  • दिन को प्रेम से प्रारंभ करो, दिन को प्रेम से भरो, दिन को प्रेम से बिताओ, दिन को प्रेम से समाप्त करो- यही परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है। ~ सत्य साईं
  • प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है। ~ उमाशंकर जोशी

दीनता मानसिक दुर्बलता है

  • दीनता उस मानसिक दुर्बलता को कहते हैं जो मनुष्य को दूसरे की दया पर जीने का प्रलोभन देती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • दुर्जन व्यक्ति बिना दूसरों की निंदा किए बिना प्रसन्न नहीं हो सकता। ~ अज्ञात
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • बुरों पर दया करना भलों पर अत्याचार है, और अत्याचारियों को क्षमा करना पीड़ितों पर अत्याचार है। ~ शेख सादी

दुष्टों का बल हिंसा है

  • दुष्टों का बल हिंसा है। राजाओं का बल दंड विधि है। स्त्रियों का बल सेवा है। लेकिन गुण वालों का बल क्षमा है। ~ विदुर
  • सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा। ~ वाल्मीकि
  • अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते। ~ वेदव्यास
  • सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो। ~ विनोबा भावे

दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
  • विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा ग़लत है। ~ अभिनंद

दीपक की सीख

  • निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। ~ महात्मा गांधी
  • जिस प्रकार दीपक दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है और अपने स्वरूप को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार अंत:करण दूसरी वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है और अपने आप को भी। ~ संपूर्णानंद
  • संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है। ~ कालिदास
  • ज्ञाताज्ञात पाप ही अंत:करण की मलिनता है। जब तक अंत:करण मलरहित, पापरहित नहीं होगा, तब तक वास्तविक दृष्टि का उदय नहीं होगा। ~ शंकराचार्य

धन का उपयोग

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स

धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है

  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। ~ हाल सातवाहन
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। ~ महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। ~ प्रेमचंद
  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। ~ वेमना

धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो

  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
  • मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। ~ वेदव्यास
  • हर व्यक्ति को जो चीज़ हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। ~ महात्मा गांधी
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। ~ विनोबा

धन की तीन गति- दान, भोग और नाश

  • दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। ~ भर्तृहरि
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। ~ कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। ~ भगदत्त जल्हण
  • संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। ~ विष्णु शर्मा

धन का अर्जन और रक्षण करो

  • संपत्ति तो जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था, शोक और राग के बीज का उत्तम अंकुर है। इसके प्रभाव में अंधा हुआ मानव मुक्ति के मार्ग को नहीं देख सकता। ~ देवीभागवत
  • धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरुवत होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शाड़ंधर-पद्धति
  • तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे। ~ महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं। ~ प्रेमचंद

धन आता-जाता रहता है

  • जैसे रथ का पहिया इधर-उधर नीचे-ऊपर घूमता रहता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है, वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। ~ ऋग्वेद
  • हे राजन्, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है। ~ कालिदास
  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास

धन पाला हुआ शत्रु

  • जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। ~ भगवान बुद्ध
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ एक चीनी कहावत
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। ~ गार्डनर
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। ~ सोलन
  • यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास

धन उसका है जो उपभोग करता है

  • वही व्यक्ति सबसे अधिक दौलतमंद है, जिसकी प्रसन्नता सबसे सस्ती है। ~ थोरो
  • नकद दौलत अल्लादीन का चिराग है। ~ बायरन
  • धन उसका नहीं जिसने उसे अर्जित किया है, और उसका भी नहीं जिसने उसे संचित रखा है। धन उसका है, जो उसका उपभोग करता है। ~ फ्रैंकलिन
  • जिस तरह तीतर अपने अंडों को नहीं सेता, उसी तरह बेईमानी से कमाने वाला व्यक्ति अपने धन का उपभोग नहीं कर पाता। और मृत्यु के बाद लोग उसे मूर्ख और कुटिल कह कर बुलाते हैं। ~ रस्किन बांड
  • धन अथाह समुद्र है, जिसमें इज्जत, अंत: करण और सत्य - सब कुछ डूब सकते हैं। ~ कोजले

धन उत्तम कर्मों से पैदा होता है

  • धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है। साहस, योग्यता, कीर्ति, वेग, दृढ़ निश्चय से बढ़ता है। चतुराई से फलता-फूलता है और संयम से सुरक्षित रहता है। ~ विदुर

धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है

  • हर व्यक्ति को जो चीज़ हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। ~ महात्मा गांधी
  • सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'
  • धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं। ~ दिनकर
  • जितने बंधे - बंधाए नियम और आचार हैं उनमें धर्म अंटता नहीं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

धर्म का पालन धैर्य से होता है

  • मुझे बताओ कि तुम किन लोगों के साथ रहते हो, मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो? ~ लॉर्ड चैस्टरफील्ड
  • एक बुराई दूसरी बुराई से उत्पन्न होती है। ~ टेरेंस
  • धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी
  • जो सचमुच मनुष्य है, वह विदोह करेगा, अन्याय के प्रति विदोह। ~ विमल मित्र
  • भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर

धर्म व्यवहार अधिक है

  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। ~ दुर्गा भागवत
  • मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है। ~ राधाकृष्णन
  • धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। ~ क़ुरान

धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं

  • वही बात बोलनी चाहिए जिससे न स्वयं को कष्ट हो और न दूसरों को ही। वस्तुत: सुभाषित वाणी ही श्रेष्ठ वाणी है। ~ थेरगाथा
  • धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय
  • जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है। ~ विष्णु शर्मा
  • न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विग्न करता है। ~ धनंजय

धर्म का अर्थ

  • धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। ~ विवेकानंद
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। ~ महात्मा गांधी
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। ~ प्रेमचंद्र

धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं

  • धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत् का सार है। ~ वाल्मीकि
  • जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद
  • धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ राधाकृष्णन

धोखा देने वाला धोखा खाता है

  • हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। ~ महात्मा गांधी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी
  • विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। ~ सोमदेव

धैर्य से होता है काम

  • सज्जनों की संगति होने पर दुर्जनों में भी सुजनता आ ही जाती है। ~ क्षत्रचूड़ामणि
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि

धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है

  • प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। ~ सुदर्शन
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। ~ विल्मट
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली
  • महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ नेहरू
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे

धीरज हो तो दरिद्रता भी शोभायमान

  • धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, घटिया भोजन भी गर्म होने से सुस्वादु लगता है और सुंदर स्वाभाव के कारण कुरूपता भी शोभा देती है। ~ चाणक्यनीति
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक करते हैं। ~ वेदव्यास
  • जो हानि हो चुकी है, उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है। ~ शेक्सपियर
  • शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शैनकीयनीतिसार

धीर पुरुष अस्थिर नहीं होता

  • अच्छे लोग जिस बात को अपने ऊपर लेते हैं, उसका निर्वाह करते हैं। ~ बिल्हन
  • अपना अहित करनेवाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं। ~ विष्णु शर्मा
  • तीर्थों के सेवन का फल समय आने पर मिलता है, किंतु सज्जनों की संगति का फल तुरंत मिलता है। ~ चाणक्य
  • सज्जन नारियल के समान ऊपर से कठोर, किंतु भीतर से कोमल होते हैं। ~ नारायण पंडित
  • वास्तव में धीर पुरुष वे ही हैं, जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता। ~ कालिदास

निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है

  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। ~ अज्ञात
  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। ~ कालिदास
  • नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। ~ सुदर्शन

निंदा सहना

  • जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत् पर विजय प्राप्त कर ली। ~ वेदव्यास
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। ~ कन्फ्यूशस
  • यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। ~ चाणक्य
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। ~ महात्मा गांधी

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज़्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

न मित्र न शत्रु

  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास
  • महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। ~ भट्टनारायण
  • अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
  • नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस

न पूछो जाति महात्मा की

  • जाति से कोई पतित नहीं है। पतित वह है जो चोरी, व्यभिचार, ब्रह्महत्या, भ्रूण-हत्या आदि दुष्ट कृत्यों को करता है और उनको गुप्त रखने के लिए झूठ बोलता है। ~ अज्ञात
  • कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर
  • जातिवाद आत्मा और राष्ट्र, दोनों के लिए नुक्सानदेह है। ~ महात्मा गांधी
  • संपूर्ण विश्व में केवल एक ही जाति है- मानव जाति। एक ही भाषा है- प्रेम की भाषा। ~ सत्य साईं बाबा

नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है

  • किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू
  • अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
  • ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन
  • नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस

नम्रता ही मनुष्य का आभूषण

  • विचार या भाव ही मनुष्य को उत्तेजित करते हैं, आदर्श ही लोगों को मृत्यु तक का सामना करने को तैयार करते हैं। ~ विवेकानंद
  • बिना अपनी स्वीकृति के कोई मनुष्य आत्म-सम्मान नहीं गंवाता। ~ महात्मा गांधी
  • नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। ~ संत तिरुवल्लवुर
  • दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता, जितना अपने को बचाता है। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
  • संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती नहीं। ~ वेदव्यास

निराश व्यक्ति को प्रलोभन मत दो

  • निराश व्यक्ति को प्रलोभन मत दो। ~ शेक्सपियर
  • दूसरे का अप्रिय वचन सुनकर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। ~ अज्ञात
  • दुखदायी अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्म का दोष नहीं देखता। ~ नारायण पंडित
  • भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता
  • जिस प्रकार वासवृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। ~ अश्वघोष

निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति

  • यदि कोई मनुष्य निश्चिंतताओं से प्रारंभ करेगा तो अंत संदेहों में होगा, लेकिन वह यदि वह संदेहों से प्रारंभ कर सके तो अंत में उसे निश्चिंततओं की प्राप्ति होगी। ~ बेकन
  • निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति होती है। ~ तुकाराम
  • निष्काम होकर नित्य अपना काम करनेवाले की गोद में ही उत्सुक होकर सफलता आती है। ~ भारवि
  • केवल वही व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य कर सकता है, जो पूर्णतया नि:स्वार्थी है। ~ विवेकानंद

नूर फ़कीर जानै नहीं

  • नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन
  • किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार
  • अपने को विद्वान् मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है। ~ कल्हण
  • उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली

निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है

  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद
  • बल तथा कोश से संपन्न महान् व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात

निष्कपट प्रेम

  • निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम्
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
  • बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। ~ व्यास
  • गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए। ~ कविता-कौमुदी

नैतिक शिक्षा देते समय संक्षेप में कहो

  • प्रशंसा ऐसा विष है, जिसे अल्पमात्रा में ही ग्रहण करना चाहिए। ~ बालजाक
  • नैतिक शिक्षा देते समय संक्षेप में कहो। ~ होरेस
  • राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है। ~ वाल्मीकि
  • मेहनत वह चाबी है जो किस्मत का दरवाज़ा खोल देती है। ~ चाणक्य
  • श्रद्धा सामर्थ्य के प्रति होती है और दया असामर्थ्य के प्रति। ~ रामचन्द्र शुक्ल

नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है

  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
  • मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
  • घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह ज़िंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। ~ प्रेमचंद
  • ग़लती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं। ~ रामतीर्थ
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