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{निम्ननिखित में किन दो के राजनीतिक दर्शन में यह मत व्यक्त किया गया है कि समितियां राज्य-संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-25,प्रश्न-21
+
{[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है?  
 
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-हॉब्स
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-[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]]
-रूसो
+
+[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]]
+उपर्युक्त दोनों
+
-[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]]
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
+
-[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]]
||हॉब्स और रूसो के राजनीतिक दर्शन में यह मत व्यक्त किया गया है कि समितियां राज्य-संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं।
+
||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है।
  
{'परंपरागत राजनीति विज्ञान' का निम्न में से कौन लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-71,प्रश्न-44
 
|type="()"}
 
-अमूर्त स्वरूप
 
-काल्पनिकता
 
-दार्शनिकता  पर बल
 
+तथ्यों के अध्ययन पर बल
 
||परंपरागत राजनीति विज्ञान तथ्यों के अध्ययन पर बल नहीं देता है बल्कि व्यवहारवाद नई पद्धतियों, नई तकनीकों, नए तथ्यों और एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास के अध्ययन पर बल देता है, द्वितीय महायुद्ध के पश्चात, परंपरागत राजनीति विज्ञान के विरोध में एक व्यापक क्रांति हुई, इसे 'व्यवहारवाद' का नाम दिया गया। व्यवहारवाद की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों और समाज विज्ञानों के बीच एक गुणात्मक निरंतरता है।
 
 
{जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभाजन किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-11
 
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+स्वसंबंधित एवं परसंबंधित
 
-प्रभावात्मक एवं निष्प्रभावात्मक
 
-धार्मिक एवं नास्तिक
 
-उपर्युक्त में कोई नहीं
 
||जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों को दो श्रेणियों स्वसंबंधित एवं परसंबंधित कार्यों में विभाजित किया मिल का मानना है कि स्वयं से संबंधित कार्यों पर कोई भी नियंत्रण नहीं होना चाहिए परंतु परसंबंधित कार्य, जो दूसरों को हानि तथा दु:ख पहुंचाते है, उन पर नियंत्रण होना चाहिए।
 
 
{अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कैबिनट के सदस्य जिम्मेदार होते हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-3
 
|type="()"}
 
+[[राष्ट्रपति]] के प्रति
 
-व्यक्तिगत रूप से विधायिका के प्रति
 
-सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति
 
-मतदाताओं के प्रति
 
||अध्यक्षात्मक प्रणाली में कैबिनेट के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार होते हैं। राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को नियुक्त करता है और उन्हें जब चाहे परच्युत करता है।
 
 
{[[भारत]] में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-21
 
|type="()"}
 
+जनता
 
-[[संविधान]]
 
-[[संसद]]
 
-संसद एवं राज्य-विधान सभा
 
||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। [[भीमराव अंबेडकर|डॉ. भीमराव अंबेडकर]] के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि [[भारतीय संविधान]] का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"।
 
 
{[[इंग्लैंड]] में लॉर्ड बेवरिज प्रतिवेदन ने जिस राज्य की अवधारणा को प्रकट किया था, वह था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-13
 
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-उदारवादी राज्य
 
-पंथनिरपेक्ष राज्य
 
-समाजवादी राज्य
 
+कल्याणकारी राज्य
 
||[[दिसंबर]], 1942 में इंग्लैंड में आधुनिक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा 'लॉर्ड विलियम बेवरिज प्रतिवेदन' के मध्य से प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट के माध्यम से पांच महाबुराइयों का अंत करने के लिए राज्य द्वारा कदम उठाने को कहा गया। ये पांच बुराइयां- कमी, बीमारी, अज्ञानता, गंदनी तथा आलस्य हैं। यह रिपोर्ड सरकार से नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, पर्याप्त शिक्षा, पर्याप्त आवास तथा पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने की मांग करती है।
 
  
{'अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-23
+
{'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-एडम स्मिथ ने
+
-[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से
-मार्शल ने
+
-[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से
-रॉबिंस ने
+
+[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से
+[[कार्ल मार्क्स]] ने
+
-कॉमनवेल्थ की सदस्यता से
||अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनीतिक क्षेत्र में कार्य मार्क्स द्वारा किया गया। 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत' (Theory of Surplus Value) मूलत: रिकार्डो के 'मूल्य का श्रम सिद्धांत' (Labour Theory of value) से प्रभावित है। मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत रिकार्डो के सिद्धांत का ही व्यापक रूप है। इसलिए रिकार्डो को अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का जनक माना जाता है। मार्क्स के अनुसार, "अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्यों का अंतर है जिसे एक मजदूर पैदा करता है और जो वह वास्तव में पाता है।"
+
||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था।
  
{यदि [[संविधान]] परम संप्रभु है, तो तात्कालिक संप्रभुता आरोपित है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-26,प्रश्न-22
 
|type="()"}
 
+राष्ट्र में
 
-निर्वाचक-गण में
 
-विधि निर्माता निकाय में
 
-शासक दल में
 
||यदि संविधान परम संप्रभु है तो तात्कालिक संप्रभुता संविधान का निर्माण करने वाले विधि निर्माता निकाय में आरोपित होगी।
 
  
{प्रभाव की एक विशेषता नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-72,प्रश्न-45
 
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+उसे देखा जा सकता है।
 
-उसे देखा नहीं जा सकता है।
 
-उसे महसूस किया जा सकता है।
 
-इसमें द्विसंबंध होता है।
 
||प्रभाव (Influence) की यह विशेषता है कि उसे देखा नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
 
  
{निम्न में कौन-सा कथन सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-12
+
{सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-समानता का अर्थ है व्यवहार व पुरस्कारों की पहचान
+
-सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन
-समानता का अर्थ है समान आय
+
-दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन
-समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सब मनुष्यों को समान बनाता है
+
+माडर्न कांस्टीट्यूशन
+समानता का अर्थ है कि अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो
+
-कैबिनेट गवर्नमेंट
||समानता का अर्थ है कि 'अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए सबको समान अवसर देने का प्रावधान हो'। वास्तविक समानता उस स्थिति का नाम है जिसमें देश के संविधान और कानूनों द्वारा न केवल समानता की घोषणा की जाए, वरन व्यवहार में उन परिस्थितियों की भी व्यवस्था की जाए जिनके आधार पर नागरिकों के द्वारा वास्तव में समानता का उपभोग किया जा सके। यह कार्य राज्य द्वारा सभी व्यक्तियों को व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर दिए जाने से पूरा होता है।
+
||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है।
  
{एक संसदीय सरकार में राज्य के प्रधान को है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-4
+
{यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-पूर्व शक्ति
+
+संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता
-सीमित शक्ति
+
-दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा
+नाममात्र की शक्ति
+
-लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा
-कोई शक्ति नहीं
+
-लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी
||संसदीय सरकार में [[राष्ट्रपति]] सांविधानिक अध्यक्ष होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रधान [[प्रधानमंत्री]] होता है। मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति शासनाध्यक्ष के पास होती है जबकि नाममात्र की कार्यपालिका शक्ति राज्याध्यक्ष के पास होती है। राज्याध्यक्ष देश का संवैधानिक प्रशासन होता है।
+
||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं।
 
 
{दबाव समूह की प्रमुख विशेषता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-22
 
|type="()"}
 
-अनिश्चित कार्यकाल
 
+प्रशासन में अरोक्ष भूमिका
 
-सर्वव्यापक प्रकृति
 
-संवैधानिक साधनों का आवश्यक रूप से प्रयोग
 
||दबाव समूह की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह राजनीति एवं प्रशासन में परोक्ष भूमिका निभाता है।
 
 
 
 
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१२:५६, १७ मार्च २०१८ के समय का अवतरण

1 भारतीय संविधान को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है?

तीसरी अनुसूची
चौथी अनुसूची
पांचवीं अनुसूची
छठीं अनुसूची

2 'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25

भारत-चीन वार्ता से
भारत-पाक वार्ता से
संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से
कॉमनवेल्थ की सदस्यता से

3 सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34

सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन
दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन
माडर्न कांस्टीट्यूशन
कैबिनेट गवर्नमेंट

4 यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25

संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा
लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा
लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी

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