"धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी" के अवतरणों में अंतर
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बनारस में कर्पूरपटक नामक धोबी रहता था। वह नवजवान अपने स्री के साथ बहुत काल तक विलास करके, सो गया। इसके बाद उसके घर के द्रव्य को चुराने के लिए चोर अंदर घुसा। उसके आँगन में एक गधा बँधा था और एक कुत्ता भी बैठा था। इतने में गधे ने कुत्ते से कहा -- मित्र, यह तेरा काम है, इसलिए क्यों नहीं ऊँचे शब्द से भौंक कर स्वामी को जगाता है ? कुत्ता बोला -- भाई, मेरे काम की चर्चा तुझे नहीं करनी चाहिये और क्या तू सचमुच नहीं जानता कि जिस प्रकार मैं उनके घर की रखवाली दिन रात करता हूँ, पर वैसा वह बहुत काल से निर्जिंश्चत होकर मेरे उपयोग को नहीं मानता है, इसलिए आजकल वह मेरे आहार देने में भी आदन कम करता है। क्योंकि बिना आपत्ति के देखे स्वामी सेवकों पर थोड़ा आदर करते हैं। | बनारस में कर्पूरपटक नामक धोबी रहता था। वह नवजवान अपने स्री के साथ बहुत काल तक विलास करके, सो गया। इसके बाद उसके घर के द्रव्य को चुराने के लिए चोर अंदर घुसा। उसके आँगन में एक गधा बँधा था और एक कुत्ता भी बैठा था। इतने में गधे ने कुत्ते से कहा -- मित्र, यह तेरा काम है, इसलिए क्यों नहीं ऊँचे शब्द से भौंक कर स्वामी को जगाता है ? कुत्ता बोला -- भाई, मेरे काम की चर्चा तुझे नहीं करनी चाहिये और क्या तू सचमुच नहीं जानता कि जिस प्रकार मैं उनके घर की रखवाली दिन रात करता हूँ, पर वैसा वह बहुत काल से निर्जिंश्चत होकर मेरे उपयोग को नहीं मानता है, इसलिए आजकल वह मेरे आहार देने में भी आदन कम करता है। क्योंकि बिना आपत्ति के देखे स्वामी सेवकों पर थोड़ा आदर करते हैं। | ||
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कुत्ता बोला -- जो काम अटकने पर सेवको से मीठी मीठी बातें करे वह तो निन्दित स्वामी है। | कुत्ता बोला -- जो काम अटकने पर सेवको से मीठी मीठी बातें करे वह तो निन्दित स्वामी है। | ||
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आश्रितानां भृतौ स्वामिसेवायां धर्मसेवने। | आश्रितानां भृतौ स्वामिसेवायां धर्मसेवने। | ||
पुत्रस्योत्पादने चैव न सन्ति प्रतिहस्तका:।। | पुत्रस्योत्पादने चैव न सन्ति प्रतिहस्तका:।। | ||
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गधा झुंझला कर बोला -- अरे दुष्टबुद्धि, तू बड़ा पापी है कि विपत्ति में स्वामी के काम की अवहेलना करता है। ठीक जिस किसी भी प्रकार से स्वामी जग जावे ऐसा मैं तो अवश्य कर्रूँगा। | गधा झुंझला कर बोला -- अरे दुष्टबुद्धि, तू बड़ा पापी है कि विपत्ति में स्वामी के काम की अवहेलना करता है। ठीक जिस किसी भी प्रकार से स्वामी जग जावे ऐसा मैं तो अवश्य कर्रूँगा। | ||
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०७:४३, ७ नवम्बर २०१७ के समय का अवतरण
धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।
कहानी
बनारस में कर्पूरपटक नामक धोबी रहता था। वह नवजवान अपने स्री के साथ बहुत काल तक विलास करके, सो गया। इसके बाद उसके घर के द्रव्य को चुराने के लिए चोर अंदर घुसा। उसके आँगन में एक गधा बँधा था और एक कुत्ता भी बैठा था। इतने में गधे ने कुत्ते से कहा -- मित्र, यह तेरा काम है, इसलिए क्यों नहीं ऊँचे शब्द से भौंक कर स्वामी को जगाता है ? कुत्ता बोला -- भाई, मेरे काम की चर्चा तुझे नहीं करनी चाहिये और क्या तू सचमुच नहीं जानता कि जिस प्रकार मैं उनके घर की रखवाली दिन रात करता हूँ, पर वैसा वह बहुत काल से निर्जिंश्चत होकर मेरे उपयोग को नहीं मानता है, इसलिए आजकल वह मेरे आहार देने में भी आदन कम करता है। क्योंकि बिना आपत्ति के देखे स्वामी सेवकों पर थोड़ा आदर करते हैं।
गधा बोला -- सुन रे मूर्ख, जो काम के समय पर माँगे वह निन्दित सेवक और निन्दित मित्र है।
कुत्ता बोला -- जो काम अटकने पर सेवको से मीठी मीठी बातें करे वह तो निन्दित स्वामी है।
आश्रितानां भृतौ स्वामिसेवायां धर्मसेवने।
पुत्रस्योत्पादने चैव न सन्ति प्रतिहस्तका:।।
क्योंकि आश्रितों के पालन- पोषण में, स्वामी की सेवा में, धर्म की सेवा करने में और पुत्र के उत्पन्न करने में, प्रतिनिधि नहीं होते हैं अर्थात् ये काम अपने आप ही करने के हैं, दूसरे से करान के योग्य नहीं हैं।
गधा झुंझला कर बोला -- अरे दुष्टबुद्धि, तू बड़ा पापी है कि विपत्ति में स्वामी के काम की अवहेलना करता है। ठीक जिस किसी भी प्रकार से स्वामी जग जावे ऐसा मैं तो अवश्य कर्रूँगा।
क्योंकि पीठ के बल धूप खाय, पेट के बल अग्नि तापे, स्वामी की सब प्रकार से वफ़ादारी और परलोक की बिना कपट से सेवा करनी चाहिए।
यह कह कर उसने अत्यंत रेंकने का शब्द किया। तब वह धोबी उसके चिल्लाने से जाग उठा और नींद टूटने के क्रोध के मारे उठ कर लकड़ी से गधे को मारा कि जिससे वह मर गया।