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− | हस्तिनापुर में एक विलास नामक धोबी रहता था। उसका गधा अधिक बोझ ढ़ोने से दुबला मरासू- सा हो गया था। फिर उस धोबी ने इसे बाघ की खाल ओढ़ा कर वन के पास नाज के खेत में रख दिया। | + | [[हस्तिनापुर]] में एक विलास नामक धोबी रहता था। उसका गधा अधिक बोझ ढ़ोने से दुबला मरासू- सा हो गया था। फिर उस धोबी ने इसे बाघ की खाल ओढ़ा कर वन के पास नाज के खेत में रख दिया। |
फिर दूर से उसे देख कर और बाघ समझ, खेत वाले शीघ्र भाग जाते थे। इसके अनन्तर एक दिन कोई खेत का रखवाला धूसर रंग का कंबल ओढ़े हुए धनुष बाण चढ़ा कर शरीर को ओढ़ कर एकांत में बैठ गया। | फिर दूर से उसे देख कर और बाघ समझ, खेत वाले शीघ्र भाग जाते थे। इसके अनन्तर एक दिन कोई खेत का रखवाला धूसर रंग का कंबल ओढ़े हुए धनुष बाण चढ़ा कर शरीर को ओढ़ कर एकांत में बैठ गया। | ||
उधर मन माना अन्न चरने से बलवान हुआ गधा, उसे देखकर गधा जान कर ढ़ेंचू- ढ़ेंचू स्वर में रेंकता हुआ उसके सामने दौड़ा। तब खेतवाले ने, रेंकने के शब्द से इसको गधा निश्चय करके सहज में ही मार डाला। | उधर मन माना अन्न चरने से बलवान हुआ गधा, उसे देखकर गधा जान कर ढ़ेंचू- ढ़ेंचू स्वर में रेंकता हुआ उसके सामने दौड़ा। तब खेतवाले ने, रेंकने के शब्द से इसको गधा निश्चय करके सहज में ही मार डाला। | ||
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१४:२४, ९ अक्टूबर २०१४ के समय का अवतरण
बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेत वाले की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।
कहानी
हस्तिनापुर में एक विलास नामक धोबी रहता था। उसका गधा अधिक बोझ ढ़ोने से दुबला मरासू- सा हो गया था। फिर उस धोबी ने इसे बाघ की खाल ओढ़ा कर वन के पास नाज के खेत में रख दिया।
फिर दूर से उसे देख कर और बाघ समझ, खेत वाले शीघ्र भाग जाते थे। इसके अनन्तर एक दिन कोई खेत का रखवाला धूसर रंग का कंबल ओढ़े हुए धनुष बाण चढ़ा कर शरीर को ओढ़ कर एकांत में बैठ गया।
उधर मन माना अन्न चरने से बलवान हुआ गधा, उसे देखकर गधा जान कर ढ़ेंचू- ढ़ेंचू स्वर में रेंकता हुआ उसके सामने दौड़ा। तब खेतवाले ने, रेंकने के शब्द से इसको गधा निश्चय करके सहज में ही मार डाला।