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− | ||[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। यहाँ विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि [[संविधान]] द्वारा 22 भाषाओं को '[[राजभाषा]]' की मान्यता प्रदान की गयी है। भारत में चार '[[भाषा-परिवार|भाषा परिवार]]' माने गये हैं- [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, | + | ||[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। यहाँ विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि [[संविधान]] द्वारा 22 भाषाओं को '[[राजभाषा]]' की मान्यता प्रदान की गयी है। भारत में चार '[[भाषा-परिवार|भाषा परिवार]]' माने गये हैं- [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, ऑस्ट्रिक और चीनी-तिब्बती। देश में इन [[भाषा|भाषाओं]] को बोलने वालों का प्रतिशत क्रमश: 73, 25, 1.3 और 0.7 है। भारत में 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिज़ोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा है। कुल मिलाकर देश में 58 भाषाओं में स्कूली पढ़ायी की जाती है। [[संविधान]] की '[[आठवीं अनुसूची]]' में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें 'राजभाषा' की संज्ञा दी गई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारतीय भाषाएँ]], [[भाषा-परिवार]], [[आठवीं अनुसूची]] |
− | {[[भारत]] में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषायी समूह है | + | {[[भारत]] में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषायी समूह है- |
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-चीनी-तिब्बती | -चीनी-तिब्बती | ||
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+ | ||'किरात' [[भारत]] की एक प्राचीन [[अनार्य|अनार्य जाति]] (संभवत: '[[मंगोल]]') थी, जिसका निवास-स्थान मुख्यत: [[हिमालय|पूर्वी हिमालय]] के पर्वतीय प्रदेश में था। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में [[किरात|किरातों]] का संबंध पहाड़ों और गुफ़ाओं से जोड़ा गया है और उनकी मुख्य जीविका आखेट बताई गई है। [[यजुर्वेद]] तथा [[अथर्ववेद]] में किरातों को [[पर्वत]] और कन्दराओं का निवासी बताया गया है। 'वाजसनेयीसंहिता' और '[[तैत्तिरीय ब्राह्मण]]' में किरातों का संबंध गुहा से बताया गया है। ऐसा जान पड़ता है कि कालांतर में किरात लोग अपने मूल निवास [[हिमालय]] से अतिरिक्त [[भारत]] के अन्य भागों में भी फैल गए थे। [[साँची]] ([[मध्य प्रदेश]]) के [[स्तूप]] पर किसी किरात भिक्षु के दान का उल्लेख है और [[दक्षिण भारत]] में [[नागार्जुनीकोंड]] के एक [[अभिलेख]] में भी किरातों का वर्णन हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[किरात]] | ||
− | {'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस दोहे के रचनाकार का नाम है? | + | {'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस [[दोहा|दोहे]] के रचनाकार का नाम है? |
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− | - स्वयंभू | + | -[[स्वयंभूदेव|स्वयंभू]] |
− | + [[देवसेन]] | + | +[[देवसेन]] |
− | - | + | -[[पुष्पदंत]] |
− | - कनकामर | + | -कनकामर |
+ | ||'देवसेन' [[प्राकृत भाषा]] में '[[स्यादवाद]]' और 'नय' का प्ररूपण करने वाले दूसरे [[जैन]] आचार्य थे। इनका समय दसवीं शताब्दी माना जाता है। [[देवसेन]] नय मनीषी के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्होंने नयचक्र' की रचना की थी। संभव है कि इसी का उल्लेख [[विद्यानन्द|आचार्य विद्यानन्द]] ने अपने 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक' में किया हो और इससे ही नयों को विशेष जानने की सूचना की हो। देवसेन की न्यायविषयक एक अन्य रचना 'आलाप-पद्धति' है। इसकी रचना [[संस्कृत]] के गद्य में हुई है। जैन न्याय में सरलता से प्रवेश पाने के लिये यह छोटा-सा [[ग्रन्थ]] बहुत सहायक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवसेन]] | ||
{चीनी-तिब्बती भाषा समूह की भाषाओं के बोलने वालों को कहा जाता है? | {चीनी-तिब्बती भाषा समूह की भाषाओं के बोलने वालों को कहा जाता है? |
०६:३०, ३१ जुलाई २०१३ का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
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