संचयिता -रामधारी सिंह दिनकर  

संचयिता -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक संचयिता
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
ISBN 81-263-0871-0
देश भारत
भाषा हिंदी
प्रकार काव्य संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
विशेष ‘संचयिता’ कृति की विशेषता यह है कि यह न केवल पिछले एक दशक की कविताओं की श्रेष्ता को समाहित कर रही है, प्रत्युत श्रेष्ठों’ के संकलनों में से ‘श्रेष्ठतर’ का यह संकलन है।

संचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। संचयिता, दिनकर जी ने भारतीय ज्ञानपीठ के आग्रह पर तब संजोयी थी जब उन्हें उनकी अमर काव्यकृति उर्वशी के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस संकलन में दिनकर जी के प्रखर व्यक्तित्व के साथ उनकी व्यक्तिगत रुचि भी झलकती है। इन रचनाओं को लेकर वे देश के कोने-कोने में गये और अपनी ओजस्वी वाणी से काव्य-प्रेमियों को कृतार्थ करते रहे। उनके काव्य-प्रेमियों को आज भी देश के लाखों काव्य-प्रेमियों के मन में वैसी की वैसी ही बनी हुई है।

भूमिका

परवर्ती पीढ़ियों पर रामधारी सिंह दिनकर-काव्य की छाप निरन्तर पड़ती रहती है। छायावादोत्तर हिन्दी काव्य को समझने में ही नहीं वरन् आज के साहित्य के मर्म तक पहुँचने में भी काव्य के हर विद्यार्थी के लिए दिनकर-काव्य का गम्भीर अनुशीलन अनिवार्य है। पुस्तक के आरम्भ में ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह के अवसर पर दिनकर जी का दिया हुआ चिरस्मरणीय भाषण के जुड़ जाने से इस कृति की उपयोगिता और भी बढ़ गयी है।

विशेषता

‘संचयिता’ कृति की विशेषता यह है कि यह न केवल पिछले एक दशक की कविताओं की श्रेष्ता को समाहित कर रही है, प्रत्युत श्रेष्ठों’ के संकलनों में से ‘श्रेष्ठतर’ का यह संकलन है। दिनकर का काव्य विस्तार की दृष्टि से कालावधि को परिमापित करने की दृष्टि से, भाषागत, विषयगत प्रयोगों की दृष्टि से, गुणगत और प्रकृतिगत विविधता की दृष्टि से, तथा सर्वोपरि, साहित्यिक प्रभाव की दृष्टि से अदिवितीय है, अएद्भुत है, महत् है। पुरस्कार समारोह में समर्पित प्रशस्ति का साध्य इस प्रकार है : ‘‘श्री दिनकर ने छायावाद की अस्पष्ट और वायवीय विषय-वस्तु तथा रूपों विधानों वाली काव्य-परंपरा से अलग होकर आधुनिक हिन्दी कविता को एक ऐसी ओजमयी ऋतु भाषा-शैली दी जो पुनरुत्थानसील राष्ट्रीयता की अदम्य प्रेरणाओं को अभिव्यक्त करने में समर्थ हुई। वे हिन्दी साहित्य में एक अपूर्व घटना-तथ्य जैसे बनकतर आये, क्योंकि जिस सशक्तता से उनकी लेखनी ललकार और विद्रोह का झण्डा ऊँचा कर सकी, उसी से सुशान्त चिन्तन और गीतात्मक भाषा-शैली में मानव-मन के कोमल भावों को प्रकट करती आयी।[१]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संचयिता (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2013।

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