श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 64 श्लोक 41-44  

दशम स्कन्ध: चतुःषष्टितमोऽध्यायः (64) (उत्तरार्धः)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: चतुःषष्टितमोऽध्यायः श्लोक 41-44 का हिन्दी अनुवाद


इसलिये मेरे आत्मीयो! यदि ब्राम्हण अपराध करे, तो भी उससे द्वेष मत करो। वह मार ही क्यों न बैठे या बहुत-सी गालियाँ या शाप ही क्यों न दे, उसे तुम लोग सदा नमस्कार ही करो । जिस प्रकार मैं बड़ी सावधानी से तीनों समय ब्राम्हणों को प्रणाम करता हूँ, वैसे ही तुम लोग भी किया करो। जो मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन करेगा, उसे मैं क्षमा नहीं करूँगा, दण्ड दूँगा । यदि ब्राम्हण के धन का अपहरण हो जाय तो वह अपहृत धन उस अपहरण करने वाले को—अनजान में उसके द्वारा यह अपराध हुआ हो तो भी—अधःपतन के गड्ढ़े में डाल देता है। जैसे ब्राम्हण की गाय ने अनजान में उसे लेने वाले राजा नृग को नरक में डाल दिया था । परीक्षित्! समस्त लोकों को पवित्र करने वाले भगवान श्रीकृष्ण द्वारकावासियों को इस प्रकार उपदेश देकर अपने महल में चले गये ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=श्रीमद्भागवत_महापुराण_दशम_स्कन्ध_अध्याय_64_श्लोक_41-44&oldid=533333" से लिया गया