श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 36 श्लोक 1-12  

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दशम स्कन्ध: षट्त्रिंशोऽध्यायः (36) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षट्त्रिंशोऽध्यायः श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! जिस समय भगवान श्रीकृष्ण व्रज में प्रवेश कर रहे थे और वहाँ आनन्दोत्सव की धूम मची हुई थी, उसी समय अरिष्टासुर नाम का एक दैत्य बैल का रूप धारण करके आया। उसका ककुद् (कंधे का पुट्ठा) या थुआ और डील-डौल दोनों ही बहुत बड़े-बड़े थे। वह अपने खुरों को इतने जोर से पटक रहा था कि उससे धरती काँप रही थी । वह बड़े जोर से गर्ज रहा था और पैरों से धूल उछालता जाता था। पूँछ खड़ी किये हुए था और सींगों से चहरदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता जाता था । बीच-बीच में बार-बार मूतता और गोबर छोड़ता जाता था। आँखें फाड़कर इधर-उधर दौड़ रहा था। परीक्षित्! उसके जोर से हँकड़ने से—निष्ठुर गर्जना से भयवश स्त्रियों और गौओं के तीन-चार महीने के गर्भ स्रवित हो जाते थे और पाँच-छह महींने के गिर जाते थे। और तो क्या कहूँ, उसके कुकुद् को पर्वत समझकर बादल उस पर आकर ठहर जाते थे । परीक्षित्! उस तीखे सींगवाले बैल को देखकर गोपियाँ और गोप सभी भयभीत हो गये। पशु तो इतने डर गये कि अपने रहने का स्थान छोड़कर भाग ही गये । उस समय सभी व्रजवासी ‘श्रीकृष्ण! श्रीकृष्ण! हमें इस भय से बचाओ’ इस प्रकार पुकारते हुए भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये। भगवान ने देखा कि हमारा गोकुल अत्यन्त भयातुर हो रहा है । तब उन्होंने ‘डरने की कोई बात नहीं है’—यह कहकर सबको ढाढ़स बँधाया और फिर वृषासुर को ललकारा, ‘अरे मूर्ख! महादुष्ट! तू इन गौओं और ग्वालों को क्यों डरा रहा है ? इससे क्या होगा । देख, तुझ-जैसे दुरात्मा दुष्टों के बल का घमंड चूर-चूर कर देने वाला यह मैं हूँ।’ इस प्रकार ललकारकर भगवान ने ताल ठोंकी और उसे क्रोधित करने के लिये वे अपने एक सखा के गले में बाँह डालकर खड़े हो गये। भगवान श्रीकृष्ण की इस चुनौती से वह क्रोध के मारे तिलमिला उठा और अपने खुरों से बड़े जोर से धरती खोदता हुआ श्रीकृष्ण की ओर झपटा। उस समय उसकी उठायी हुई पूँछ के धक्के से आकाश के बादल तितर-बितर होने लगे । उसने अपने तीखे सींग आगे कर लिये। लाल-लाल आँखों से टकटकी लगाकर श्रीकृष्ण की ओर टेढ़ी नज़र से देखता हुआ वह उनपर इतने वेग से टूटा, मानो इन्द्र के हाथ से छोड़ा हुआ वज्र हो । भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों सींग पकड़ लिये और जैसे एक हाथी अपने से भिड़ने वाले दूसरे हाथी को पीछे हटा देता है, वैसे ही उन्होंने उसे अठारह पग पीछे ठेलकर गिरा दिया । भगवान के इस प्रकार ठेल देने पर वह फिर तुरंत ही उठ खड़ा हुआ और क्रोध से अचेत होकर लंबी-लंबी साँस छोड़ता हुआ फिर उन पर झपटा। उस समय उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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