श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 25 श्लोक 29-33  

दशम स्कन्ध: पञ्चविंशोऽध्यायः (25) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: पञ्चविंशोऽध्यायः श्लोक 29-33 का हिन्दी अनुवाद

ब्रजवासियों का हृदय प्रेम के आवेग से भर रहा था। पर्वत को रखते ही वे भगवान श्रीकृष्ण के पास दौड़ आये। कोई उन्हें हृदय से लगाने और कोई चूमने लगा। सबने उनका सत्कार किया। बड़ी-बूढ़ी गोपियों ने बड़े आनन्द और स्नेह से दही, चावल, जल आदि से उनका मंगल-तिलक किया और उन्मुक्त हृदय से शुभ आशीर्वाद दिये । यशोदारानी, रोहिणीजी, नन्दबाबा और बलवानों में श्रेष्ठ बलरामजी ने स्नेहातुर होकर श्रीकृष्ण को हृदय से लगा लिया तथा आशीर्वाद दिये । परीक्षित्! उस समय आकाश में स्थित देवता, साध्य, सिद्ध, गन्धर्व और चारण आदि प्रसन्न होकर भगवान की स्तुति करते हुए उनपर फूलों की वर्षा करने लगे । राजन्! स्वर्ग में देवता लोग शंख और नौबत बजाने लगे। तुम्बुरु आदि गन्धर्वराज भगवान की मधुर लीला का गान करने लगे । इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज की यात्रा की। उनके बगल में बलरामजी चल रहे थे और उनके प्रेमी ग्वालबाल उनकी सेवा कर रहे थे। उनके साथ ही प्रेममयी गोपियाँ भी अपने हृदय को आकर्षित करने वाले, उसमें प्रेम जगाने वाले भगवान की गोवर्द्धन-धारण आदि लीलाओं का गान करती हुई बड़े आनन्द से ब्रज में लौट आयीं ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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