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रहिमन बात अगम्य की -रहीम  

‘रहिमन’ बात अगम्य की, कहनि-सुननि की नाहिं।
जे जानत ते कहत नहिं, कहत ते जानत नाहिं॥

अर्थ

जो अगम है उसकी गति कौन जाने? उसकी बात न तो कोई कह सकता है, और न वह सुनी जा सकती है। जिन्होंने अगम को जान लिया, वे उस ज्ञान को बता नहीं सकते, और जो इसका वर्णन करते है, वे असल में उसे जानते ही नहीं।


रहीम के दोहे

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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