रसखान- जहदजहल्लक्षणा  

  • जहां पर किसी शब्द का वाच्यार्थ अंशत: स्वीकृत किया जाता है और अंशत: बाधित होता है वहां जहदजहल्लक्षणा होती है।
  • इसी विशेषता के कारण इसे भाग त्यागलक्षणा भी कहते हैं।
  • रसखान के काव्य में जहदजहल्लक्षणा के भी उदाहरण मिलते हैं-

अरी अनोखी बाम, तूँ आई गौने नई।
बाहर धरसि न पाम, है छलिया तुव ताक मैं।[१]

'तुव ताक में' देख रहा है, इस वाच्यार्थ के होते हुए भी लक्ष्यार्थ यह निकल रहा है कि वह तुम्हें पकड़ना चाहता है। ध्वनि यह है कि तुम सावधान हो जाओ।

नीकें निहारि कै देखे न आँखिन, हौं कबहूँ भरि नैन न जागी।
मो पछितावो यहै जु सखी कि कलंक लग्यौ पर अंक न लागी।[२]

  • जहदजहल्लक्षणा के द्वारा यह चरितार्थ हो रहा है कि मैं बदनाम भी हुई किन्तु कृष्ण के आलिंगन का आनन्द भी नहीं प्राप्त हुआ।
  • रसखान के काव्य में लक्षणा शक्ति के अनेक सफल उदाहरण मिलते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुजान रसखान, 98
  2. सुजान रसखान, 138

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=रसखान-_जहदजहल्लक्षणा&oldid=223458" से लिया गया