या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥ रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग़ तड़ाग निहारौं। कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥