महाभारत युद्ध सत्रहवाँ दिन  

महाभारत में कर्ण और अर्जुन का युद्ध

सत्रहवें दिन के युद्ध में प्रातःकाल कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आ डटे। इसी समय कर्ण ने देखा कि भीम कौरव सेना का संहार कर रहे हैं। भीम ने कर्ण पर भी एक बाण छोड़ा, जिससे कर्ण को मूर्च्छा आ गई। यह देख शल्य रथ को भगा ले गए।

दुशासन वध

कर्ण का रथ अदृश्य होते ही भीम और भी तेज गति से कौरवों का संहार करने लगे। दुर्योधन ने दु:शासन को भीम का सामना करने लिए भेजा। दोनों में भीषण संग्राम छिड़ गया। अवसर देखकर भीम ने दु:शासन के सिर पर गदा से प्रहार किया, उसके हाथ उखाड़ लिये तथा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसकी छाती फाड़कर उसका रक्त पीने लगे। इसी समय कर्ण की मूर्च्छा जागी। उन्होंने दुबारा युद्ध-क्षेत्र में प्रवेश किया और युधिष्ठिर को घायल कर दिया। उनका सारथी रथ भगा ले गया।

कर्ण वध

उधर अर्जुन संसप्तकों का संहार करके लौटे तो पता चला कि युधिष्ठिर रणक्षेत्र छोड़कर चले गए हैं। अर्जुन उन्हें देखने शिविर में चले गए। आज अर्जुन का सीधा मुक़ाबला कर्ण से था। वे एक-दूसरे के बाणों को काट रहे थे। अर्जुन ने कर्ण के सारथी शल्य को घायल कर दिया। कर्ण ने अग्नि-बाण छोड़ा तो अर्जुन ने जल-बाण। कर्ण ने वायु-अस्त्र चलाकर बादलों को उड़ा दिया। अर्जुन ने नागास्त्र छोड़ा, जिसके उत्तर में कर्ण ने गरुड़ास्त्र। कर्ण के इस अस्त्र की काट अर्जुन के पास "नारायणास्त्र" थी, परंतु मनुष्य-युद्ध में वर्जित होने के कारण अर्जुन ने उसे नहीं छोड़ा। कर्ण ने एक दिव्य बाण छोड़ा तो कृष्ण ने घोड़ों को घुटनों के बल झुका दिया। इसी समय कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस गया। कर्ण ने धर्म युद्ध के अनुसार अर्जुन से कुछ देर बाण न चलाने की प्रार्थना की, किन्तु अर्जुन ने कहा कि- "अभिमन्यु को मारते समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था।" कर्ण ने अर्जुन की छाती में एक ऐसा बाण मारा, जिससे वे अचेत से हो गए तथा इसी बीच अपने रथ का पहिया निकालने लगे। थोड़ी देर में अर्जुन को होश आया। कर्ण को निहत्था देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि- "यही समय है कर्ण पर बाण चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे।" अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही कौरवों में हाहाकार मच गया।[१]

रात्रि के समय दुर्योधन चिंताग्रस्त था। कृपाचार्य ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि- "अभी आप हैं, अश्वत्थामा हैं। मैं चाहता हूँ कि मामा शल्य को सेनापति बनाया जाए।" शल्य ने सेनापति होना स्वीकार कर लिया।


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