बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन  

1857 ई. का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों का प्रथम सशक्‍त विद्रोह था। 1857 ई. की क्रान्ति की शुरुआत बिहार में 12 जून, 1857 को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई। यहाँ 32वीं इनफैन्ट्री रेजीमेण्ट का मुख्यालय था एवं पाँचवीं अनियमित घुड़सवार सेना का मेजर मैक्डोनाल्ड भी यहीं तैनात था। इसी विद्रोह में लेफ्टीनेंट नार्मल लेस्ली एवं सहायक सर्जन 50 ग्राण्ट लेस्ली भी मारे गये। मेजर मैक्डोनाल्ड ने इस विद्रोह को निर्दयतापूर्ण दबा दिया एवं विद्रोह में सम्मिलित तीन सैनिकों को फाँसी पर लटका दिया गया। 3 जुलाई, 1857 को पटना सिटी के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष हो गया। शीघ्र ही पटना की स्थिति बिगड़ने लगी। पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने छपरा, आरा, मुजफ्फरपुर, गया एवं मोतिहारी में अवस्थित सेना को सख्ती से निपटने का निर्देश दिया। फलतः टेलर ने इस विद्रोह को बलपूर्वक दबा दिया। पीर अली के घर को नष्ट कर दिया गया। 17 व्यक्‍तियों को फाँसी की सजा दी गई थी।[१]

सैनिक विद्रोह

25 जुलाई, 1854 को मुजफ्फरपुर में भी अंग्रेज़ अधिकारियों की असन्तुष्ट सैनिकों ने हत्या कर दी। 25 जुलाई के दिन दानापुर छावनी के तीन रेजीमेण्टों ने विद्रोह कर आरा जाकर कुँअर सिंह के विद्रोहों में शामिल हो गय। सिगौली में भी सैनिकों ने विद्रोह कर अपने कमाण्डर मेजर होल्यस तथा उनकी पत्‍नी को मार डाला। 30 जुलाई तक पटना, सारण, चम्पारण आदि जिलों में सैनिक शासन लागू हो गया। अगस्त में भागलपुर में विद्रोह भड़क उठा था। विद्रोहियों ने गया पहुँचकर 400 लोगों को मुक्‍त कर लिया। राजगीर, बिहार शरीफ़ एवं गया क्षेत्र में छिटपुट विद्रोह शुरू हो गया। दानापुर के तीनों रेजीमेण्ट ने सैनिक विद्रोह कर जगदीशपुर के जमींदार वीर कुँअर सिंह के साथ शामिल हो गये थे।

बाबू कुँवर सिंह का योगदान

बाबू कुँअर सिंह के पूर्वज परमार राजपूत थे और उज्जैन से आकर शाहाबाद जिले में बस गये थे। कुँअर सिंह का जन्म सन्‌ 1780 ई. में भोजपुर जिले के जगदीशपुर गाँव में हुआ था। पिता साहबजादा सिंह एक उदार स्वभाव के जमींदार थे। वे अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनका विवाह देवयुँगा (गया) में हुआ था। उनके पूर्वज परमार राजपूत (जो उज्जैन से आकर शाहाबाद जिले में बस गये) थे। 25 जुलाई, 1857 को दानापुर में हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने विद्रोह शुरू कर दिया। वे इस समय 80 वर्ष के थे।

वीर कुँअर सिंह ने कमिश्नर टेलर से मिलने के आग्रह को ठुकराकर अपने लगभग 5,000 सैनिकों के साथ आरा पर आक्रमण कर दिया। आरा नगर की कचहरी और राजकोष पर अधिकार कर लिया। आरा को मुक्‍त करवाने के लिए दानापुर अंग्रेज़ एवं सिक्ख सैनिक कैप्टन डनवर के नेतृत्व में आरा पहुँचे। 2 अगस्त 1857 को कुँअर सिंह एवं मेजर आयर की सेनाओं के बीच वीरगंज के निकट भयंकर संघर्ष हुआ। इसके बाद कुँअर सिंह ने नाना साहब से मिलकर आजमगढ़ में अंग्रेजों को हराया। 23 अप्रैल 1858 को कैप्टन ली ग्राण्ड के नेतृत्व में आयी ब्रिटिश सेना को कुँअर सिंह ने पराजित किया। लेकिन इस लड़ाई में वे बुरी तरह से घायल हो गये थे। मरने से पूर्व कुँअर सिंह की एक बांह कट गई थी और जाँघ में सख्त चोट थी। 26 अप्रैल, 1858 को उनकी मृत्यु हुई। अदम्य साहस, वीरता, सेनानायकों जैसे महान गुणों के कारण उन्हें बिहार का सिंह कहा जाता है।

इंग्लैण्ड सरकार का प्रत्यक्ष नियन्त्रण

संघर्ष का क्रम उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया। उन्होंने शाहाबाद को अपने नियन्त्रण में बनाये रखा। 9 नवम्बर, 1858 तक अंग्रेजी सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर सकी थी। उसने कैमूर पहाड़ियों में मोर्चाबन्दी कर अंग्रेज़ सरकार को चुनौती दी। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार युद्ध जारी रखा। महारानी द्वारा क्षमादान की घोषणा के बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोहियों ने हथियार डाले। अमर सिंह सहित 14 आदमियों को क्षमादान के प्रावधान से पृथक रखा गया एवं इन्हें दण्डित किया गया। 1859 ई. तक ब्रिटिश सत्ता की बहाली न केवल बिहार बल्कि सारे देश में हो चुकी थी। कम्पनी शासन का अन्त हुआ और भारत का शासन इंग्लैण्ड की सरकार के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में आ गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन (हिंदी) web.bookstruck.in। अभिगमन तिथि: 07 जून, 2020।

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