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पुनर्वसु नक्षत्र  

पुनर्वसु नक्षत्र

पुनर्वसु नक्षत्र (अंग्रेज़ी: Punarvasu Nakshatra) राशि चक्र का सातवां नक्षत्र है। यह राशि चक्र के 80 डिग्री 0 मिनट से 93 डिग्री 20 मिनट तक फैला हुआ है। इस शुभ नक्षत्र का तीन चौथाई हिस्सा मिथुन राशि में रहता है और अंतिम चौथाई हिस्सा कर्क राशि में रहता है। इसमें कैस्टर और पोलक्स समेत पांच तारे हैं। इस नक्षत्र का प्रतीक घर और धनुष या बो है। पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी बृहस्पति है। इस नक्षत्र के पहले तीन चौथाई अंश, जो मिथुन में आते हैं, का स्वामी बुध है। अंतिम एक चौथाई अंश, जो कर्क राशि में आता है, का स्वामी चंद्रमा है। इस नक्षत्र-समूह की स्वामिनी देवी अदिति है। इस नक्षत्र में माध्यमिक स्तर पर सत्व के साथ-साथ प्राथमिक और तृतीय स्तर पर रजस यानी सक्रियता की मात्रा भरी हुई है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के ख़ाली हिस्से में बांस के पेड़ को लगाते है।

नक्षत्र और इसका आकार

पुनर्वसु दो शब्दों से बना है, पुन: और वसु। पुनः का अर्थ है, बार-बार दोहराना और वसु का अर्थ है प्रकाश की किरण यानी आभूषणवसु आठ तेजस्वी वैदिक देवता हैं और सभी परोक्ष रूप में इस नक्षत्र से जुड़े हुए हैं। यदि पुनर्वसु को विश्लेषित करें तो इसका सीधा अर्थ निकलता है, किरणों की आवृत्ति। किरणें प्रकाश से निकलती हैं और इस शब्द का रहस्य यही है कि अगर किरणें लगातार निकलती रहें, तो वो अपने-आप प्रकाश में बदल जाती हैं। यह नक्षत्र-समूह अपने आप में सार्वभौमिक जीवन का प्रतीक है, जो किरणों या प्रकाश से ही संभव है। इस नक्षत्र का एक अर्थ यह भी है कि सारभूत आरंभिक जीवन के कुछ पहलू फिर से प्रकट हो जाते हैं जो विकासोन्मुख प्रक्रिया के लिए जरूरी है। वसु इस ब्रह्मांड के बहुत ही महत्वपूर्ण देवता हैं। सृष्टि के आरंभ में उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था। वसुओं की संख्या आठ है। जल, पृथ्वी, अग्नि, चंद्र, उषा, ध्रुव, वायु और प्रभा मानवीय और सार्वभौमिक सत्ता के पालन, पोषण और निरंतरता के लिए अनिवार्य तत्व हैं।[१]

चेतना को भी ऊर्जा सौर चिह्नों से ही मिलती है। अदिति, मातृदेवी बीज को आखिर में फलित होने देने के लिए आवश्यक वातावरण तैयार करती है। उसमें भी धन-संपत्ति प्रदान करने की अपार क्षमता है। अदिति भी पृथ्वी देवी है, जो सभी कुछ भरपूर मात्रा में देने में सक्षम है और साथ ही, सभी देवताओं की जननी है। इस नक्षत्र-समूह के दो प्रतीक हैं, एक धनुष है और दूसरा घर। धनुष धनुर्धारी और लक्ष्य के बीच एक संपर्क-सूत्र है। एक तरह से यह आरंभिक केंद्र है। धनुर्धारी यहां खड़ा है और लक्ष्यसंधान के लिए कही और जाना चाहता है। इस नक्षत्र-समूह का एक और प्रतीक घर है। इसका अर्थ भी यही है। घर का इस्तेमाल भी घर का मालिक आराम करने और खुद को ऊर्जा से भरने के लिए ही करता है ताकि वह अपना लक्ष्य हासिल कर सके। घर के मालिक को कार्यस्थल पर जाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ता है और काम खत्म करके घर लौटना होता है और अगले दिन के लिए तैयारी करनी होती है।

गुण व प्रेरक शक्ति

पुनर्वसु में मूल स्तर पर और तृतीय स्तर पर रजस गुणों का भंडार है। लेकिन माध्यमिक स्तर पर यह सत्व है। अगर हम इस नक्षत्र-समूह के पैटर्न का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि रजस गुण दोनों ही स्तरों पर जरूरी भूमिका अदा करता है। इसके प्राथमिक स्तर और तृतीय स्तर का नियंत्रण रजस गुणों से किया जाता है। यदि आठ वसुओं के गुणों का विश्लेषण करने का प्रयास करें तो एक बात हमारे दिमाग में आती है कि वसुओं का मूलभूत कार्य है भावी कार्यकलापों की व्यवस्था को स्थापित करना। उचित कार्यप्रणाली के बिना वांछित नतीजे प्राप्त नहीं किए जा सकते। माध्यमिक स्तर पर सत्व गुण कार्य करता है। गुणों का संपूर्ण विन्यास यह इंगित करता है कि आत्मा अपने निर्देशित कार्यकलापों से अलग-अलग स्तरों पर जाने के लिए तैयारी में जुटी है।

धनुष का प्रतीक इसी तथ्य को दर्शाता है। धनुर्धारी एक स्थान पर बैठा है और बाण से लक्ष्यसंधान कहीं और कर रहा है। यह मनुष्य न तो चैन से बैठा है और न ही संतुष्ट हो पा रहा है, लेकिन लगातार कुछ न कुछ करके कुछ हासिल करने की कोशिश में जुटा है। सत्व, रजस और तमस गुणों की यह श्रृंखला अपने बारे में ही बहुत कुछ बताती है। जब कोई अपनी यात्रा ज्ञान या विवेक की मदद से शुरू करता है तो कार्यकलाप अकर्ता स्तर पर ही होते हैं। अकर्ता की यह समझ अकर्मण्यता की ओर नहीं ले जा सकती।

जातक की ताकत

पुनर्वसु-बृहस्पति-बुध का संयोग अत्यंत प्रतिभाशाली और अद्वितीय मस्तिष्क को जन्म देता है। जो लोग इस संयोग में जन्म लेते हैं, वो धनुर्धारी और लक्ष्य के बीच आरंभिक मैदान के तौर में काम करने की क्षमता रखते हैं। जीवन में जो कुछ भी करना चाहते हैं उसके लिए उनका बाण अनिवार्यत एक पूर्ण संपर्कसूत्र कायम कर लेता है। उनमें एक ऐसी प्रेरक शक्ति होती है जो उनके लिए और भविष्य में उनके अनुयायी लोगों के लिए भी अनिवार्य स्थितियों और पृष्ठभूमि का निर्माण करती है। वो एक ऐसा उचित वातावरण बना लेते हैं जिनमें उनकी कोशिश सरलता से सुदृढ़ हो जाते हैं और उनकी इच्छाशक्ति को भी बल मिलता है। लेकिन उनके विचार और विवेक कोरे सिद्धांतवादी होने के कारण उन्हें कभी-कभी मुंह की भी खानी पड़ती है।

पुनर्वसु-बृहस्पति-चंद्र का संयोग उन्हें लगभग तैयारशुदा मंच देता है। जहां वो अपने जीवन का नाटक खेल सकते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के तीन चौथाई हिस्सों में पिछली राशि मिथुन व्याप्त है और एक चौथाई हिस्से में कर्क राशि है। अगर पुनर्वसु-बृहस्पति-बुध का संयोग कुछ ऐसी स्थिति में काम करता है, जहां हाइड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन का एक अणु मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाता हैं ताकि वो जलीय तत्व में परिवर्तित हो सके। बृहस्पति और चंद्रमा बहुत वेग से बिजली पैदा करने के लिए क्रमबद्ध हो जाते हैं ताकि वास्तव में पानी पैदा हो सके। मिथुन और कर्क की दो राशियों से पुनर्वसु की तुलना करते हैं तभी यह अंतर हो सकता है।[१]

क्षमताएँ

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक में एकाग्र होकर काम करने की असीम क्षमता होती है। उनके सामने लक्ष्य बहुत स्पष्ट होता है और पूरा ध्यान लक्ष्य को प्राप्त करना होता है। उसकी सारी शक्ति और समय अपने-आपको स्थिर करने में लगा होता है। वह बहुत ही सहजता से काम करते हैं और उसकी बुद्धि इतनी एकाग्र होती है कि उसको वांछित नतीजे प्राप्त करने में कोई भी कठिनाई महसूस नहीं होती। वह स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और आश्चर्यजनक नतीजे हासिल करके लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। वह उन लोगों का हमेशा ही ख्याल रखते हैं जिन्हें वह पसंद करते हैं और स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा ही प्रयत्नशील रहते हैं।

बहुत छोटी उम्र से ही इनका लक्ष्य बहुत स्पष्ट होता है। कुछ लोगों को उनकी योग्यता में संदेह हो सकता है लेकिन वह उन लोगों में नहीं होते जो आरंभिक विफलताओं से निराश होकर हथियार डाल देते हैं। इनको अपनी दूरदर्शिता को लेकर कोई संदेह नहीं होता, लेकिन जिस वातावरण में भी काम करते हैं, सबके लिए और बड़ी चुनौतियां सामने आ जाती हैं। वास्तविकता और दृष्टि में बहुत बड़ा अंतराल होता है और इनकी महानता इस बात में होती है कि यह इस अंतराल को भी बहुत खूबसूरती से भर लेते हैं। इसके दो कारण होते हैं- एक कारण तो यह है कि इनको लगता है कि इनके सपने चरितार्थ हो सकते हैं। दूसरा कारण यह है कि उन लोगों के लिए उचित वातावरण तैयार करना चाहते हैं, लेकिन उनमें दृष्टि का अभाव होता है।

कमजोरियां

केवल मन और बुद्धि से चलने की वजह से इनके सामने कई बाधाएं भी खड़ी हो सकती हैं। कभी-कभी विवेक और तर्क में संघर्ष होने के कारण इनके मन में काफी भ्रांति भी हो सकती है। कभी-कभी लोग इनको बर्दाश्त भी नहीं कर पाते हैं। कभी-कभी यह अपने नतीजों के प्रति इतने लापरवाह हो जाते हैं कि इनके प्रयास ही व्यर्थ हो जाते हैं। इनकी पसंद और नापसंद में इतना अंतर होता है कि इनके जीवन में बहुत गड़बड़ी हो सकती है। कभी-कभी कुछ लोग इनके अहंकार की वजह से या खुद को तीसमारखां समझने के कारण ही इनको बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।[१]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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